टेलीपैथी दो व्यक्तियों के बीच विचारों और भावनाओं के उस तबादले को कहते हैं जिसमें हमारी पांच ज्ञानेंद्रियों का इस्तेमाल नहीं होता. यानी इसमें देखने, सुनने, सूंघने, छूने और चखने की शक्ति का इस्तेमाल नहीं होता है. टेलीपैथी शब्द का सबसे पहले इस्तेमाल 1882 में फ़्रैड्रिक डब्लू एच मायर्स ने किया था. कहते हैं कि जिस व्यक्ति में यह छठी ज्ञानेंद्रिय होती है वह जान लेता है कि दूसरों के मन में क्या चल रहा है. यह परामनोविज्ञान का विषय है जिसमें टेलीपैथी के कई प्रकार बताए गए हैं. लेकिन इसे प्रमाणित करना बड़ा मुश्किल है. इस क्षेत्र में बहुत से प्रयोग हो चुके हैं लेकिन संशय करने वालों का तर्क है कि टेलीपैथी के कोई विश्वसनीय वैज्ञानिक प्रमाण नहीं मिल सके हैं. कुछ लोग टैक्नोपैथी की बात करते हैं. उनका मानना है कि भविष्य में ऐसी तकनोलॉजी विकसित हो जाएगी जिससे टेलीपैथी संभव हो. इंगलैंड के रैडिंग विश्वविद्यालय के कैविन वॉरिक का शोध इसी विषय पर है कि किस तरह एक व्यावहारिक और सुरक्षित उपकरण तैयार किया जाए जो मानव के स्नायु तंत्र को कंप्यूटरों से और एक दूसरे से जोड़े. उनका कहना है कि भविष्य में हमारे लिए संपर्क का यही प्रमुख तरीक़ा बन जाएगा.
टेलीपैथी क्या होती है
Posted by
Bhavesh (भावेश )
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Wednesday, February 04, 2009
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