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रेपो रेट और CRR क्या होता है.

कैश रिजर्व अनुपात (Cash Reserve Ratio or CRR) : रिजर्व बैंक के पास सीआरआर के रूप में राशि जमा करना वाणिज्यिक बैंकों के लिए कानूनी रूप से अनिवार्य है। कैश रिजर्व रेश्यो या नकद आरक्षित अनुपात बैंकों की जमा पूंजी का वह हिस्सा होता है, जिसे वह भारतीय रिजर्व बैंक के पास जमा करता है। अगर रिजर्व बैंक इसमें बढ़ोतरी करता है तो वाणिज्यिक बैंकों की उपलब्ध पूंजी कम होती है। जब बैकों में धन का प्रवाह ज्यादा हो जाता है, रिजर्व बैंक उस स्थिति में सीआरआर में बढ़ोतरी करता है । इससे रिजर्व बैंक, बैंकों पर नियंत्रण करता है साथ ही इसके माध्यम से मौद्रिक तरलता पर भी नियंत्रण किया जाता है। मुद्रास्फीति पर इसका सीधा प्रभाव होता है।
रेपो रेट : रिजर्व बैंक द्वारा वाणिज्यिक बैंकों को छोटी अवधि के लिए दिया जाने वाला कर्ज रेपो रेट कहलाता है। यदि रिजर्व बैंक रेपो रेट में बढ़ोतरी करता है तो इससे वाणिज्यिक बैंकों को अल्पकाल के लिए मिलने वाला कर्ज महंगा हो जाता है। इसकी भरपाई के लिए अमूमन वाणिज्यिक बैंक अपने विभिन्न कर्जों की दरों में बढ़ोतरी करते हैं।
रिवर्स रेपो रेट : वाणिज्यिक बैंक जिस दर पर रिजर्व बैंक के पास कम अवधि के लिए अपना पैसा जमा करते हैं, उस दर को रिवर्स रेपो रेट कहा जाता है।

आर्थिक त्सुनामी / सुनामी

लीजिये साहब न्यूटन जी का एक और सिद्धांत एक बार फिर से सही साबित हो गया. या यूँ कहू की सही सिद्ध होने के साथ साथ उसमे एक नया आयाम भी जुड़ गया. आज विश्व की अर्थव्यस्था को देखते हुए न्यूटन होते तो शायद ये कहते कि "जो चीज़ जितनी तेजी से ऊपर जाती है उससे ज्यादा तेजी से नीचे आती है - खासकर शेयर बाजार". अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि सेंसेक्स को 10 हज़ार से बीस हज़ारी होने में जहाँ 23 महीनों का समय लगा, वहीं बीस हज़ार से वापस दस हज़ार तक आने में सिर्फ़ नौ महीने लगे.

ये आर्थिक जगत में उठापठक का खेल शुरु हुआ अमरीका के सब प्राइम संकट से. इस संकट ने अभूतपूर्व स्थिति पैदा क दी. अमरीकी केंद्रीय बैंक के पूर्व गर्वनर एलन ग्रीन्सपैन की 'बाज़ार में पैसा छोड़ो' की नीति विफल साबित हुई और अमेरिका के पाँच सबसे बड़े इनवेस्टमेंट बैंक (गोल्डमैन, मोर्गन स्टेनली, मेरिल लिंच, लेहमन ब्रदर्स और बियर स्टर्न्स) में से तीन का तो नामोनिशान तक मिट गया.

देश की आर्थिक प्रगति का पहिया जो अपने पुरी गति के साथ २००७ और २००८ में घूम रहा था, और जिसने कई शेखचिल्ली नुमा हरे भरे ख्याली सब्ज बाग़ दिखाए थे वो सब एक तिलिस्म की तरह यकायक अंतर्ध्यान हो गए. ये विकास के राह पर तेजी से चलता पहिया अचानक अपनी गति खो बैठा और जोर का झटका, धीरे से नही जरा जोर से ही लगा.

वैश्विक मंदी की बढ़ती आशंका और कर्ज़ के अभाव में बुनियादी अर्थव्यवस्था की रफ़्तार धीमी पड़ने की आशंका के कारण अमरीका, यूरोप, दक्षिण पूर्वी एशिया के साथ -साथ भारत का बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज भी लगातार गोता लगा रहा है. जनवरी २००८ से दिसम्बर २००८ तक सेंसेक्स ने 21 हज़ार अंकों से लुढकते हुए साढ़े आठ हज़ार पर जा लुढ़का. जब दस जनवरी २००८ को सेंसेक्स 21 हज़ार के ऊपर ऐताहिसक उच्च स्तर पर था तब शेयर बाज़ार में सूचीबद्ध कंपनियो के शेयरों की कुल कीमत लगभग 27 लाख 74 हज़ार करोड़ रूपए थी. लेकिन साल का अंत आते आते ये कीमत घट कर अब आधी से कम हो चुकी है. कुछ बड़ी कंपनियों मसलन आईसीआईसीआई, यूनिटेक, डीएलएफ, क्रेडिट डेवलपमेंट बैंकों के शेयरों में 75 फ़ीसदी से ज़्यादा की गिरावट दर्ज हो चुकी है. कुल मिलाकर शेयर बाज़ार अब वहीं खड़ा दिखाई दे रहा है जहाँ तीन साल पहले था. सेंसेक्स की हालत तो कुछ भी ठीक है लेकिन जापान का सूचकांक पिछले 26 वर्षों के न्यूनतम स्तर पर है.

अमरीका से शुरु इस संकट ने पूरी दुनिया में कर्ज़ की समस्या पैदा कर दी क्योंकि नकदी अचानक इतनी कम पड़ गई कि बैंक या वित्तीय संस्थान ग्राहकों को पैसा देने से पहले ख़ुद अपनी स्थिति मज़बूत करना बेहतर समझ रहे हैं। भारत में हालाँकि बैंकों की हालत मज़बूत है लेकिन पहले से बढ़ी महँगाई और रूपए के डॉलर के मुक़ाबले ऐतिहासिक स्तर पर कमज़ोर होने के बाद नकदी की कुछ समस्या यहाँ भी दिखाई देने लगी. कुछ निजी भारतीय बैंकों को तो इस स्थिति का सामना इसलिए करना पड़ा क्योंकि उनकी विदेशी शाखाओं ने अमरीकी सब प्राइम बाज़ार में निवेश किया था जो डूब गया. इन सबका असर शेयर बाज़ार पर बुरे परिणाम छोड़ता नज़र आ रहा है.

विश्लेषकों के मुताबिक जब भारतीय शेयर बाज़ार शीर्ष पर था तब यहाँ विदेशी संस्थापक निवेशकों ने लगभग 12 लाख करोड़ रूपए लगाए हुए थे. सेंसेक्स को दस हज़ार से बीस हज़ार पहुँचने के दौरान विदेशी संस्थापक निवेशकों ने एक लाख करोड़ रूपए से अधिक का निवेश किया था. लेकिन अब तो उनका कुल निवेश ही सिर्फ़ चार लाख करोड़ रूपए के आस-पास बचा है.

जब बाज़ार उफ़ान पर था उस समय मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज की पूँजी सौ अरब डॉलर के पार निकल गई और अनिल भी उनके पीछे -पीछे रहे. लेकिन गिरावट के कारण मुकेश की पूँजी में 99 अरब डॉलर का नुकसान हो चुका है. उनके छोटे भाई अनिल अंबानी को लगभग 87 अरब डॉलर का नुकसान हुआ है. घाटे के मामले में दोनों बंधुओं ने आर्सेलर के मालिक लक्ष्मी मित्तल को भी पीछे छोड़ दिया है जिन्हें लगभग 68 अरब डॉलर का नुकसान हुआ है.

'पाँच करोड़ लोग बेरोज़गार हो जाएँगे'

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) का कहना है कि वैश्विक आर्थिक मंदी की वजह से इस वर्ष पाँच करोड़ से अधिक लोगों को नौकरी गँवानी पड़ सकती है.
संयुक्त राष्ट्र से जुड़े इस संगठन का कहना है कि इसकी वजह से दुनिया भर में बेरोज़गारी का आंकड़ा सात प्रतिशत तक पहुँच जाएगा जबकि इस समय यह छह प्रतिशत के करीब है.
आईएलओ का कहना है नौकरियों में होने वाली कटौतियों का सबसे बुरा असर विकासशील देशों पर पड़ेगा.
श्रम संगठन का कहना है, "अगर आशंका के अनुरूप मंदी की हालत और बुरी हुई तो दुनिया भर में बेरोज़गारी का संकट बहुत गंभीर हो जाएगा।"
आईएलओ के महानिदेशक हुआन सोमाविया ने कहा, "यह एक विश्वव्यापी संकट है जिसके समाधान के लिए सबको काम करना होगा, दुनिया भर में ग़रीबी निवारण की दिशा में किए गए कामों पर पानी फिर रहा है, मध्यमवर्ग की दशा बिगड़ रही है. "
हर सप्ताह दसियों कंपनियों में हज़ारों की तादाद में लोगों की छंटनी के समाचार आ रहे हैं, इस सप्ताह फ़िलिप्स, होमडिपो, आईएनजी और कैटरपिलर जैसी कंपनियों ने बड़ी छँटनियों की घोषणा की है.
पिछले वर्ष सबसे अधिक नई नौकरियों के अवसर एशिया में पैदा हुए, दुनिया भर की कुल नई नौकरियों का 57 प्रतिशत हिस्सा एशियाई देशों से आया.
आईएलओ का कहना है कि दुनिया भर में छाई आर्थिक मंदी की वजह से एशियाई देशों के नौकरी बाज़ार में बढ़ोतरी की जगह छँटनी का दौर शुरु हो चुका है.

एक दिन में 70 हज़ार नौकरियाँ गईं

विश्वव्यापी आर्थिक मंदी के कारण दुनिया भर में नौकरियों पर ख़तरा बढ़ गया है. सिर्फ़ सोमवार को सात बड़ी कंपनियों ने 70 हज़ार कर्मचारियों की छुट्टी कर दी है.

सबसे बड़ा फ़ैसला सब प्राइम संकट से जूझ रहे अमरीका में कंस्ट्रक्शन कंपनी कैटरपिलर ने लिया है. नुकसान उठा रही इस कंपनी में बीस हज़ार कर्मचारियों की छँटनी होगी.

यूरोप में इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पाद बनाने वाली फिलिप्स, इस्पात कंपनी कोरस और आईएनजी बैंक ने भी कर्मचारियों की छँटनी का फ़रमान जारी किया है. कैटरपिलर के मुख्य कार्यकारी अधिकारी जिम ओवेन्स का कहना है, "इसमें कोई शक नहीं कि वर्ष 2009 बहुत संकट भरा होगा." जिन कंपनियों ने कर्मचारियों की संख्या कम करने का फ़ैसला किया है, उनमें से अधिकतर के नतीजे अच्छे नहीं हैं और उन्होंने आने वाले समय में कारोबार गिरने का अंदेशा जताया है. कैटरपिलर के शुद्ध मुनाफ़े में साल की चौथी तिमाही के दौरान 32 फ़ीसदी गिरावट आई है.

नौकरियों पर मँडरा रहे ख़तरे की भनक को भुनाते हुए नए अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कॉंग्रेस से अपील की है कि वो 825 अरब डॉलर के आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज को जल्दी मंज़ूरी दे दे. इस पैकेज में कर दरें कम करने, आपात मदद और सरकारी निवेश बढ़ाने का प्रावधान है. ओबामा का कहना है, "छँटनी की संख्या के अलावा उन परिवारों को देखिए जो बर्बाद हो चुके हैं और जिनके सपने अधूरे रह गए." कैटरपिलर के अलावा अमरीकी टेक्नोलॉजी कंपनी टेक्सास इंस्ट्रूमेंट ने 3400 कर्मचारियों को हटाने का फ़ैसला किया है. मोबाइल चिप बनाने वाली इस कंपनी ने कहा है कि माँग घटने के कारण वो ये क़दम उठा रही है. अमरीकी दवा कंपनी फ़ाइज़र भी बीस हज़ार नौकरियाँ कम कर रही है. ऑटो कंपनी जनरल मोटर्स ने कहा है कि माँग नहीं रहने के कारण उसे मिशिगन और ओहियो के कारखाने बंद करने पड़े हैं, इसलिए वहाँ काम करने वाले दो हज़ार कर्मचारियों की छँटनी होगी. नीदरलैंड के बड़े बैंक आईएनजी ने सात हज़ार लोगों को हटाने का फ़ैसला किया है. स्टील कंपनी कोरस पहले ही 3500 कर्मचारियों को निकालने का फ़ैसला कर चुकी है जिनमें से 2500 ब्रिटेन की इकाई में काम करने वाले हैं।

विश्वव्यापी छँटनी
सिटी बैंक - 75,000
कैटरपिलर - 20,000
फ़ाइज़र - 20,000
आईएनजी- 7000
फिलिप्स - 6000
कोरस - 3500
होम डिपो- 7000
टेक्सा इंस्ट्रूमेंट- 3400
स्प्रिंट नेक्सटेल- 8000
जनरल मोटर्स- 2000

गणतंत्र दिवस और हम

लीजिये एक और गणतंत्र दिवस समारोह संपन्न हो गया। पिछले दशक की तरह देश की राजधानी दिल्ली के राजपथ पर आयोजित मुख्य समारोह में भारत ने अपनी सैन्य क्षमताओं और तरक्की की झाँकी पेश की। हर बार की तरह भारत में साठवाँ गणतंत्र दिवस कड़े सुरक्षा इंतज़ामों के बीच मनाया गया। दिवस समारोह के मौक़े पर केंद्र सरकार ने सुरक्षा के कड़े इंतज़ाम किए थे।

गृह मंत्रालय ने राज्यों के साथ साथ जनता को भी सतर्क रहने को कहा था | गृह मंत्रालय ने सभी राज्य सरकारों और जनता से अपील की थी कि वे गणतंत्र दिवस पर सतर्कता बनाए रखें | दिल्ली में परे क्षेत्र और राजपथ के आसपास के सभी रास्तों को पुलिस ने अपनी निगरानी में ले लिया था और लगभग 20 हज़ार सुरक्षाकर्मी तैनात किए गए थे या यूँ समझ लीजिये दिल्ली को एक छावनी में तब्दील कर दिया गया था। परेड को देखते हुए हेलीकॉप्टरों के ज़रिए निगरानी रखी जा रही थी और एंटी एयरक्राफ़्ट गन तैनात की गई थी। राजधानी में जगह-जगह पर नाकेबंदी थी. सीमावर्ती राज्यों से राजधानी क्षेत्र में प्रवेश कर रहे सभी वाहनों की तलाशी ली जा रही थी। यहाँ तक कि दिल्ली के कई रास्तों को गणतंत्र दिवस के उपलक्ष में आम यातायात बंद रखा गया था और दोपहर तक के लिए मैट्रो रेलों के आवागमन को भी रोक दिया गया था। ये कैसा समारोह है, जिसमे आम आदमी के यातायात को तो बंद कर दिया जाता है और दुनिया के देशो को हमारी सेन्य क्षमताओं से अवगत करवाया जाता है। मानता हूँ कि आज के दौर में जनता की सुरक्षा जरुरी है लेकिन क्या ये सुरक्षा साल में एक या दो ही दिन निश्चिंत करनी चाहिए। क्या सुरक्षा के नाम पर लोगो को घर में बंद हो कर बैठने को बोल देना चाहिए और ट्रेन, बस इत्यादि बंद कर देने ?

सुरक्षा देनी है तो ऐसी सुरक्षा हो जहाँ देश का हर नागरिक अपने रोजमर्रा के काम पर जाते हुए सुरक्षित महसूस कर सके। आज देश में हज़ार व्यक्ति पर एक पुलिस वाला है। हांगकांग में प्रति हज़ार व्यक्ति पर ४.७ मलेशिया में ३.४ और थाईलैंड में प्रति हज़ार व्यक्ति पर ३.३ पुलिस वाले है। पहले सबसे कम पुलिस, वो भी भ्रष्ट, फिर न उनके पास उचित प्रशिक्षण, न आधुनिक हथियार और उसमे से २५% (एक चोथाई) नेता लोगो की सेवा में लगा दी जाए तो आम आदमी को अपनी सुरक्षा ख़ुद ही करनी पड़ेगी।

पहले देश की सुरक्षा व्यवस्था चाक चोबंद करो, आम जनता में सुरक्षा की भावना पैदा करो ताकि फिर से कारगिल युद्ध और ताज/ओबेरॉय मुंबई में हुई घटनाओं की पुनरावृति न हो। उसके बाद अगर हम गणतंत्र या स्वाधीनता दिवस मनाये तो ज्यादा सार्थक होगा।


मानव शाकाहारी है या मांसाहारी ?

मनुष्य शाकाहारी है या मांसाहारी ये प्रश्न कई बार उठता है और हर तरफ के लोग अपनी बात सिद्ध करने के लिए तर्क वितर्क करते है. दरअसल मानव के विकास में भोजन मुख्यत काफी भिन्न है और मेरा ये मानना है की जो सभ्यता जहाँ पली वो उस जगह पर आसानी से उपलब्ध भोज्य पदार्थ को भोजन मानती चली गई. समुद्र किनारे लोगो को मछली का स्वाद लग गया तो रेगिस्तान में लोगो ने ऐसा बाजरा इत्यादि ऐसे धान उगाए जिसमे कम से कम पानी की आवशयकता पड़े. इस बहस को आगे बढ़ते हुए मैं यहाँ पर कुछ प्रमाण प्रस्तुत कर रहा हूँ. इंसान की तो मांसाहारी प्राणियो की आंते उनके शरीर के ३-६ गुनी होती है और शाकाहारी की १०-१२ गुनी, मांसाहारी के पेट में अम्ल शाकाहारियों से २० गुना ज्यादा होता है | मांसाहारी को फाइबर की जरुरत नही होती और उच्च कोलेस्ट्रोल से कोई तकलीफ नही होती लेकिन शाकाहारी को फाइबर चाहिए और कोलेस्ट्रोल दिक्कत देता है | मांसाहारी की लार acidic होती है और शाकाहारी की alkaline (क्षारीय), मांसाहारी जानवरों के पंजे और तीखे दांत होते है तथा सपाट मोलर दांत नही होते, शाकाहारी में उल्टा है | उपरोक्त सब गुणों से आदमी शाकाहारी प्राणी है





जहाँ तक मुझे ज्ञात है हिंदू धर्म की किसी धार्मिक पुस्तक में ये स्पष्ट तौर पर नही लिखा है कि हिन्दुओ को केवल शाकाहारी ही होना चाहिए | हाँ गौमांस अवश्य वर्जित है | हिंदू धर्म में शाकाहारी मान्यताओं के तीन मुख्य कारण है

१. अहिंसा (जीव के प्रति हिंसा अपराध है)
२ शुद्धता (भोजन प्रसाद का रूप है). शाकाहारी भोजन सात्विक होता है और मांसाहारी भोजन को तामसिक कहा गया है |
३ ये सोच की शाकाहारी भोजन दिमाग और आध्यात्मिक विकास में सहायक है |

वैदिक काल के ग्रन्थ जैसे महाभारत, भागवद पुराण, मनु स्मृति, छान्दोग्य उपनिषद में मांसाहार को निषिद्ध नही किया गया है | क्षत्रियो के लिए कुछ प्राणियो का शिकार करके खाना भी वर्जित नही है (शायद उस समय होने वाले युद्ध क्षेत्र में विकट परिस्तिथि को ध्यान में रख कर ऐसा कहा गया होगा) | वैष्णव पंथ के लोगो के लिए सात्विक भोजन का उल्लेख अवश्य है |

क्या भारत-पाक का युद्ध होना जरूरी है

ये सांप छछूंदर वाली स्थिति है. युद्ध में नुकसान हर पक्ष का होता है लेकिन ये कई बार एक मज़बूरी बन जाती है. रोज रोज घुट घुट कर मरने से बेहतर है एक बार आर पार युद्ध हो जाए और इस बार भुट्टो को नब्बे हज़ार कैदी दान देने की जरुरत नही है. आप पाकिस्तान पर तिरंगा फहरा सकते है लेकिन उससे क्या होगा एक कश्मीर ही कम है क्या हमारा खून पानी करने और हमारी बेइज्जती के लिए जो हम पाकिस्तान नाम के इस अंतर्राष्ट्रीय सरदर्द को अपने गले की हड्डी बन जाने दे. लेकिन अगर हम कुछ नही करते तो ये हमारे लिए शर्म और तौहीन की बात है. हमें सबसे पहले अपने घर को दुरुस्त तंदुरुस्त करना होगा. उसके बाद हमें उन शैतानी आतंकी ठिकानो पर हमला बोलना पड़ेगा जहाँ पर ये खुनी वहशी दरिन्दे पलते और बड़ते है. जब तक हम अपने घर को ठीक करते है तब तक पाकिस्तान को आर्थिक नुकसान पहुँचाना होगा. पाकिस्तान से व्यापारिक रिश्ते ख़त्म करके, पाकिस्तान से क्रिकेट से नाते तोड़ कर के, वहां के पंजाब प्रान्त को जो भारत से पानी मिलता है उसको बंद कर के. इस तरह से पाकिस्तान पर कुटनीतिक और आर्थिक दबाव बना कर के फिर युद्ध करे ताकि हताश दुश्मन जल्दी हथियार डाल दे| ऐसा नही है की हमारे नेताओ को ये समझ नही है लेकिन उनमे कुछ करने की इच्छाशक्ति की कमी है. वो इसलिए क्योंकि अगर इस तरह के मुद्दे हल हो गए तो ऐसे जाहिल अनपढ़ गंवार नेता जो जात के नाम पर देश की जनता को बाँट कर मलाई खा रहे है उनकी धोबी के कुत्ते की सी हैसियत हो जायेगी.

कैसे इक्का दुक्का सेना के जवानों को घंटो तक गोलाबारी में उलझाये रखते है ?

ये कोई ख़ास आश्चर्य की बात नही है। कारगिल में आतंकियों ने न केवल पक्के बंकर बना लिए थे बल्कि उनके पास छ महीनो का राशन भी जमा था. हाल ही में मैंने पढ़ा था कि भारत प्रशासित जम्मू-कश्मीर के पुंछ में मंधार के घने जंगल में सुरक्षा बलों और चरमपंथियों के बीच जारी मुठभेड़ को 60 घंटे से भी ज़्यादा वक्त हो चला है. इस इलाके में भीषण गोलीबारी चल रही है. मुठभेड़ जारी है. अभी तक सात लोगों की मौत हो चुकी है जिसमें चार चरमपंथी और तीन जवान बताए जा रहे हैं. 60 घंटे तक आतंकवादी कोई धुप में खड़े होकर नही लड़ते. वो अपने सारे इंतजाम पहले से करते है फिर सेना के जवानों को निशाना बनाते है. रही बात चीन की तो चीन कभी भी भारत का दोस्त नही रहा और पाकिस्तान जो उसके लिए पिद्दी सा देश है उसे वो अपना पिल्ला बना कर रखना चाहता है ताकि भारत पाक रिश्तो में इन्हे उलझा कर वो अपनी तेज आर्थिक गति को चालू रख सके. जब तक देश का नागरिक समझदार नही होता और दूरगामी परिणाम नही सोच सकने में समर्थ नही होता तब तक इन शिखंडी राजनेताओ का दंश इस देश को झेलना ही पड़ेगा.

क्या देश की आंतरिक सुरक्षा मजबूत है ?

मुझे व्यक्तिगत तौर पर नही लगता की देश की आंतरिक सुरक्षा कभी मजबूत हो पायेगी और इसका सबसे बड़ा कारण है हमारे देश में दीमक की तरह फैला हुआ भ्रष्टाचार. जब तक निगरानी वाले सूरज का पहरा गद्दारी रहेगा और जब तक सोने का हिरन हमारी देशभक्ति पर भारी रहेगा तब तक सुरक्षा में सेंध लगाना किसी भी रावन के लिए कतई मुश्किल नही होगा. अंधे के साथ साथ लूला, लंगडा, गूंगा और बहरा बना हुआ अपाहिज कानून और उसकी रक्षा करते ये नापुसंको की फौज जिसे हम नेता के नाम से भी जानते है इनके हाथो में देश की बागडौर देने वाली ये जनता सब नकारा और स्वार्थ से परिपूर्ण है. ये अदीर्घ दृष्टि लोग ये नही देखते की अगर जड़े मजबूत हुई तो पेड़ ख़ुद-ब-ख़ुद ही ठीक हो जाएगा. लोगो का ध्यान केवल पत्तियों पर रहता है. असल में लोग ये सोच ही नही सकते की उनकी सही तरक्की देश की तरक्की के साथ ही जुड़ी हुई है. सब को पहले अपना, फिर परिवार का भला करना होता है. देश इस लिस्ट में कही आता ही नही तो इस अनाथ से देश को कैसे सुरक्षित रखा जाए.

क्या के अंदर और बाहर स्थित आतंकवादी ठिकानों पर छापा मारकर उन्हें नष्ट कर देना चाहिए ?

समझ में नही आता कि बार बार की गद्दारी को भारत क्यों सह जाता है, सीमा से ज्यादा संयम भी कायरता कहलाता है. डा कलाम को सलाम जो इस कीचड वाली राजीनीति में कमल के समान इस कीचड में होते हुए भी इस गंदगी से ऊपर उठे रहे. हमारे देश के कर्णधारो की ग़लत नीतियों का खामियाजा आज हम सब लोग भुगत रहे है. पाकिस्तान जिसको भूतपूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री सुश्री मेडलिन अलब्राईट ने अपने लेख में "एक अंतर्राष्ट्रीय माइग्रेन (सरदर्द)" कहा है, वो देश है जो आर्थिक, मानसिक और सामाजिक रूप से दिवालिया हो चुका है. इससे प्रत्यक्ष युद्ध करके खून बहाने से कई गुना बेहतर है की इसकी कमजोर होती स्तिथि पर प्रहार किया जाए, इससे एक परोक्ष युद्ध छेड़ दिया जाए. आंतकवादी कैम्पों को सेना की बजाये दुसरे भाड़े के टट्टू ही नष्ट कर दे, इनको आपस में उलझा कर अपना स्वार्थ सिद्ध किया जा सकता है. हिमाचल प्रदेश और जम्मू से पाक जा रही नदियों का रुख मोड़ कर पाक के सबसे उपजाऊ प्रान्त पंजाब को रेगिस्तान बनाया जा सकता है. फिर देखो ये नालायक पड़ोसी ख़ुद कैसे खुटने रगड़ते हुए आयेंगे भारत से दया की भीख मांगने.

क्या एक और कारगिल जैसा युद्ध होगा ?

नही इस देश में इतनी जुर्रत नही है की पाकिस्तान से टक्कर ले सके. भारत बयानबाजी के आगे और कुछ नही कर सकता. अगर पड़ोसी मित्र ने हमला कर भी दिया तो हमारा ये देश अपनी सेना के बहादुरों को शहीदी के नाम पर मरवाएगा और अंत में दुश्मन के लोगो को जिन्दा ही दुश्मन को वापस सौंप कर के भारत में ओपरेशन विजय मनायेगा. प्रधानमंत्री मनमोहन के बयान के एक दिन ही बाद पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने मुल्तान में रविवार को कहा कि संदिग्ध चरमपंथियों को अमरिका के हवाले करने और भारत की माँग को एक समान नहीं देखा जा सकता है. शाह कुरैशी का कहना था कि पाकिस्तान मुंबई हमलों के बारें में तभी कुछ करेगा जब भारत की ओर से उसे कुछ भी अधिकारिक रुप में प्राप्त होगा. अब हमारे प्रधामंत्री या उनका कार्यालय इस बात के लिए जल्द ही तैयार हो जाएगा की चरमपंथियों पर पाकिस्तान में ही मुकदमा चले. ठीक भी है क्योंकि इन रावणों की संतानों को भारत लायेगे तो फिर कोई कंधार काण्ड होगा और हमें उग्रवादियों को हवाई जहाज में बैठा कर उनके घर छोड़ कर अपनी नाक कटवानी पड़ेगी.