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आधुनिक कॉरपोरेट मैनेजमेंट और श्रीमाद्भाग्वाद गीता

महाभारत की पृष्टभूमि में महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित श्रीमदभगवद गीता को केवल एक धर्म ग्रन्थ कहना सूरज को दिया दिखलाने के समान है। आज हर रोज की भाग दौड़ में त्रस्त हुआ मनुष्य जब खुद को असहाय और असहज पाता है तो ऐसे में,श्रीमद्भगवद्गीता एक या ग्रन्थ न होकर, मनुष्य को, सफलता पूर्वक जीवन जीने की कला सिखाने वाली संजीवनी का काम करती है.

आज आप और हम, अर्जुन बन कर, अनवरत हर रोज अपने जीवन की महाभारत लड़ रहे है. हमारे इस शरीर रूपी रथ में पांच घोड़े जो है वो हमारी पाँच ज्ञानेन्द्रिय (आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा) है. ये इन्द्रियाँ हर वक्त रूप, रस, श्रवन, गंध और स्पर्श में फँस कर भटकने को लालायित रहती है. ऐसे में हमारी बुद्धि ही हमारी सारथी (भगवान श्री कृष्ण) का काम करती है और मन के वशीभूत हुए इन चंचल घोड़ो को सही मार्ग पर प्रेरित करने के प्रयास में लगी रहती है। महाभारत की तर्ज पर आज अच्छाई के प्रतीक पांडव गिनती के चार पांच ही रह गए है पर बुराई के प्रतीक कौरव आज सर्वत्र और सहस्त्र मात्रा में है.

फ़ैसला करने में सक्षम लोग आज या तो धृतराष्ट्र के समान स्वयं ही अंधे हो चुके है, या गांधारी की तरह आँख पर पट्टी बाँध कर कानून की मूर्ति के रूप में विराजमान है। जो लोग देखने में असमर्थ नही है वो पुत्र मोह में शर्त त्याग कर द्रोण बन कर बुरे का साथ देने को अमादा है।

जिस तरह श्रीमाद्भाग्वाद गीता आज के मानव के व्यक्तिगत जीवन में प्रासंगिक है, ठीक उसी तरह ये आज के आधुनिक कोर्पोरेट युग के लिए भी ज्ञान का भण्डार है। आइये देखे की श्रीमद्भगवद्‌गीता से आज का मेनेजर और प्रबंधन क्या क्या शिक्षा ले सकता है।

श्रीमद्भगवद्‌गीता के अठारह अध्याय मुख्यत तीन भागो में विभाजित किये गए है।

  • अध्याय एक से छह को कर्मयोग कहा गया है जहाँ निस्वार्थ कर्म के द्वारा अनुशासन की प्रशंसा की गई है।
  • अध्याय सात से बारह ज्ञानयोग की श्रेणी में आता है जहाँ स्व-ज्ञान के द्वारा अनासक्ति को समझाया गया है।
  • अंतत अध्याय तेरह से अट्ठारह भक्तियोग के सूत्र को प्रतिपादित करता है जहाँ ईश्वर की दया प्राप्त करने के लिएसम्पुर्ण समर्पण की बात कही गई है.

साफ़ सपाट लफ्जो में कर्म के द्वारा ही ज्ञान अर्जित किया जा सकता है, और ज्ञानी ही भक्ति कर सकता है.






अध्यायसारांशव्यापार में प्रासंगिकता
प्रबंधककंपनी
1. अर्जुनविषादयोगआत्मसंदेह : स्वजनों के समुदाय में गुरुजन, ताऊ-चाचे, लड़के और दादा, मामा, ससुर, पौत्र, साले आदि को देखकर मोह से व्याप्त हुए अर्जुन का कायरता, स्नेह और शोक के सागर में डूब कर युद्ध न करने का निश्चय करनाअत्यधिक विश्लेषण में समय नष्ट कर, अवसर आने पर हथियार डाल देना. केवल मात्रात्मक विश्लेषण ही कारोबार में सफलता का मापक नहीं है.
2. सांख्ययोगआध्यात्म की अवस्था : मृत्यु केवल एक भ्रम है. इच्छा शक्ति, भौतिक पदार्थो का भोग करते हुए, अविनाशी आत्मा एक शरीर से दुसरे शरीर को वस्त्र की तरह बदलती है. "ये मैं हूँ" और "ये मेरा है" के इन, व्यक्तिगत भ्रामक, अहम् से मुक्ति जरुरी है.बार बार के प्रबंधन के बदलने के पश्च्यात भी कंपनी चालू रहती है. व्यापर को अविरल चलते रहने के लिए उत्तराधिकारी के चयन में नियमति रूप से ज्ञान का हस्तांतरण चलता रहता है. दिवालिया, विलय, अधिग्रहण कंपनी के होते है, व्यक्तिगत नहीं.
3. कर्मयोगअपने समस्त कर्म को सिर्फ भगवान् के लिए करता हुआ व्यक्ति स्वयं भी समस्त भोगो को प्राप्त करता है, और साथ ही दुसरो के लिए भी प्रेरणादायक बन सकता है.अपनी खास योग्यता को समय की मांग के अनुसार ढाल कर अपने करियर को खास ऊंचाई पर ले कर जाना.सामूहिक सामाजिक जिम्मेदारियों का निर्वाह करते हुए अपने और अपने आस पास के समाज के विकास में भागिदार होना.
4. ज्ञानकर्मसंन्यासयोगगुरु के बिना मार्गदर्शन संभव नहीं है. निष्काम कर्म की मंजिल ज्ञानोपार्जन है.आजन्म अध्ययन में लीन रहना.उद्योग की नई तकनीक में प्रासंगिक रहते हुए अवसर को बाँटना, ताकि विदेशी प्रतिद्वन्द्वीयो से मुकाबला सरल हो सके.
5. कर्मसंन्यासयोगकार्य शुद्धि. कर्ता और कार्य को अलग अलग कर के देखना और हर कार्य के फल को ईश्वर प्रदत्त मान कर ग्रहण करना. फल का हिस्सा सबको मिलेगा, ये मानते हुए, सबके कल्याण के लिए अपने कार्य में, लीन होना. समय के अनुसार बदलते हुए और अपने को नवीन रखते हुए, विश्वास के साथ सहयोगी भाव से प्रतिस्पर्धा करना.
6. आत्मसंयमयोगचिंता के द्वारा बुद्धि को स्थिर कर मोक्ष की और अग्रसर होना महत्वपूर्ण कार्य सूचक (Key Performance Indicators / KPI) का निरंतर मूल्यांकन करते रहना.रणनीति का सरंचनात्मक रूप से क्रियान्वन करना पर हमेशा एक बैकअप तैयार कर के रखना .
7. ज्ञानविज्ञानयोगपृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार ये आठ प्रकार से विभाजित प्रकृति (अन्धकार) ही सब कुछ है जब तक उसे पुरुष (तेज) प्रकाशित नहीं कर्ता. तीन प्रकार के गुणों से

ही तत्व और भ्रमजाल का निर्माण होता है.
हक़ीक़त से परे मत हो, अपनी सीमा पहचानो और उसी दायरे में रह कर अपना कार्य संपन्न करो.अपनी ताकत, कमजोरी, अवसर और आशंकाओ (Strength, Weakness, Opportunities, Threat) को पहचानो.
8. अक्षरब्रह्मयोगपरम तत्व में विलय हो जाना. बार बार जन्म मरण के चक्र से मुक्त होकर मोक्ष की और अग्रसर होना. परिवार, कार्य, समाज में सामंजस्यता बैठाते हुए सफल जीवन की और अग्रसर होना. विभिन्न इकाइयों को मिल जुल कर संगठन के सामूहिक लक्ष्य की और अग्रसर होना.
9. राजविद्याराजगुह्ययोगसमर्पण : अधम व्यक्ति भी अगर सच्चे मन से प्रभु शरण में आता है तो प्रभु उसे नहीं त्यागते ।पवित्र इरादे से कार्य करना विद्या का सही उपयोग है.गुणवत्ता के साथ उत्पाद पर फोकस करते हुए, अपने ग्राहक, कर्मचारियों के प्रति संवेदनशील और ईमानदार रहना.
10. विभूतियोगअनुग्रह : सम्पूर्ण आध्यामिक ज्ञान का केंद्र भगवान् है. जो भगवान् से प्यार करता है उसकी सब भ्रान्ति मिट जाती है और वो खुशहाली की और अग्रसर होता है.सही मार्गदर्शन के लिए सलाह हमेशा उपलब्ध है, उसे इस्तेमाल करने में मत हिचकिचाओ . बाजार की बदलती मांग के अनुसार प्रासंगिक रहे, क्योंकि परिवर्तन संसार का नियम है.
11. विश्वरूपदर्शनयोगएक रूप : श्री कृष्ण ने अर्जुन के सामने अपने कई विभिन्न रूप का दर्शन दिया, जिसमे पूरा ब्रम्हांड समाया था. सब कार्य में ईश्वर को मध्य में रख कर सर्वत्र भगवद्बुद्धि हो जाना और अपराध करने वाले में भी वैरभाव नहीं रखना बड़ा सोचना, अपने व्यापर का विश्व भर में विस्तार करने में प्रयासरत रहना
12. भक्तियोगश्रेष्ठ गुण : विश्वसनीय व्यक्ति सदा मित्र, शत्रु, सहनुभूति, संवेदना, स्तुति और निंदा में सम रहता है. सुख उसे ख़ुशी नहीं दे सकता और दुःख उसे परेशान नहीं कर सकता. वो हर परिणाम को

ईश्वर का प्रसाद मान कर ग्रहण करता है.
शिष्टता का परिचय सभ्य समाज में आवश्यक है. छोटे समय में हुए नफा या नुकसान से ज्यादा विचलित न होकर, पूर्ण निष्ठा से अपना कर्म करते रहे.
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञविभागयोगअनासक्ति : मैले वातावरण के होते हुए भी जिस तरह गगन स्वच्छ रहता है, ठीक वैसे ही विशुद्ध रूप में ईश्वर भी सभी प्राणियों में शुद्ध रूप से निवास करते है.साथ में काम करते हुए भी प्रत्येक के निजता का सम्मान करे मिल जुल कर अपने अहं को दूर रखते हुए निर्मल मन से व्यवसाय को आगे ले जाए
14. गुणत्रयविभागयोगज्ञानी विद्वान् से बेहतर है. गुणातीत पुरुष अटल और निष्पक्ष हो जाता है. निष्कपट मन से ये मान कर कार्य करना कि असंभव कुछ भी नहीं होता. अनेकता में एकता. व्यापार को निर्विघ्न चलाने के लिए स्वतंत्र विचारों वाले व्यक्ति के प्रति धैर्य का भाव.
15. पुरुषोत्तमयोगआत्मा : प्रभु प्रत्येक व्यक्ति के शारीर में आत्मा के रूप में विराजमान है. आत्मा शरीर के धारण करने से लेकर वैकुण्ठ गमन तक सब के साथ रहती है.पद के साथ ही प्रतिष्ठा आती है. पद छूटने पर वो प्रतिष्ठा, मान और सम्मान नही रह जाता. व्यापार करने के तौर तरीको से कंपनी की साख बनती है.
16. दैवासुरसम्पद्विभागयोगदैवीय और आसुरी प्रकृति : प्रत्येक मनुष्य में सत, रज और तम गुण होते है. गुणों के बाहुल्यता और न्यूनता से ही व्यक्ति देव, मानव और पशु तुल्य कहलाता है.अपने निज स्वार्थ के लिए दुसरे सह कर्मियों का नुकसान मत करो.कंपनी में सभी कर्मचारियों के लिए सामान कानून लागु हो, सभी को एक तराजू पर तोलो और कार्यप्रणाली की नियमित समीक्षा करते रहो.
17. श्रद्धात्रयविभागयोगभरोसा : प्रत्येक को अपनी पूजा में भरोसा हो क्योंकि भरोसे के बिना कोई भी आध्यात्मिक उन्नति मुमकिन नहीं है. भरोसे के बिना कोई भी कार्य संभव नहीं है इसलिए मार्गदर्शक बनकर अपने सहकर्मियों का भरोसा जीतो भी.प्रबंधन उद्देश्य के साथ करो.
18. मोक्षसंन्यासयोगत्याग : निष्ठापूर्वक अपने कार्य को करने के साथ मन, वाणी और बुद्धि पर संयम करके प्रत्येक व्यक्ति पूर्णता को प्राप्त कर सकता है. गीता का ज्ञान केवल उसी के लिए है जिसकी इसमें श्रद्धा हो.सभी बाते सभी कर्मचारियों के लिए नहीं होती. केवल जरुरत के मुताबिक उतनी ही सुचना उसी को प्रसारित करो जो इसे समझ सके और इससे लाभान्वित हो सके.



किसी भी चर्चा को बहस बनने से कैसे रोके

हम लोग प्रतिदिन अपने व्यक्तिगत और व्यावसायिक पेशे में अन्य लोगो से चर्चा करते है । ये सर्वविदित है की वार्तालाप में सम्मिलित हर व्यक्ति का अपना एक़ दृष्टिकोण होता है. हर व्यक्ति अपने फायदे को इस चर्चा में सबसे ऊपर रख कर चर्चा में हिस्सा लेता है. ऐसे में एक को नुकसान पहुंचा कर दुसरे को फायदा देने की प्रवर्ती हावी होती है। एक ऐसा रास्ता जिसमे दोनों पक्षों की जीत हो इसके प्रयास कम ही किये जाते है. इसीलिए अक्सर चर्चा बहस में तब्दील हो जाती है। जरुरी नहीं की ऐसी चर्चा केव व्यवसाय सम्बन्धी हो, ये चर्चा घरेलु या व्यक्तिगत भी हो सकती है जो तत्काल बहस में बदल जाती है। जिसका नतीजा सब पक्षों की हार होता है।

इन चर्चाओ को बहस बन कर सबके हारने की बजाये कैसे इसमें से सबको जीत दिलाने वाली स्थिति की तरफ बढने का प्रयास किया जाये, यही मैंने अपने इस लेख के द्वारा समझाया गया है।

प्रसिद्ध लेखक डेल कार्नेगी के अनुसार किसी भी बहस से बचने का सबसे अच्छा तरीका है की उसमे शामिल ही मत हो | लेकिन ये रबार मुमकिन नहीं हो पाता चाहते हुए भी हम बहस में उलझ जाते है जिसके परिणाम अक्सर कारात्मक ही होते है। आगे बढने से पहले ये जरुरी है की हम बुनियादी तौर पर चर्चा और बहस में अंतर को समझे. आइये चर्चा और बहस में फर्क पर एक नज़र डालते है।





































चर्चा
बहस
चर्चा में शामिल प्रत्येक व्यक्ति जीतता हैबहस में शामिल प्रत्येक व्यक्ति हारता है
सामने वाला व्यक्ति समस्या सुलझाने में हमारा भागीदार है सामने वाला व्यक्ति हमारा विरोधी है और उसको हराना है
हम विचारो का आदान प्रदान करते है, अन्य विकल्प तलाशते है और उन विकल्प के नफा नुकसान को तोलते हैहम अपनी बात पर अड़ जाते है, लकीरे खींच देते है और विपक्ष पर आक्रामक रवैया अपनाते है
हम दुसरे व्यक्ति का नजरिया समझने की कोशिश करते है और उस व्यक्ति के दृष्टिकोण को तलाशते है जिसे हमने पहले कभी नहीं सोचा सर्वप्रथम तो हम विरोधी को सुनते ही नहीं है, और अगर सुनते भी है तो उसकी बात में कमजोर और विवादित मुद्दे ढूंढ़ने के लिए
हम मुद्दे पर ज्यादा जानकारी प्राप्त करने की कोशिश करते है. उस मुद्दे पर अपना और सामने वाले का नजरिया समझने की कोशिश करते है हम किसी भी नए तर्क को सुनने को तैयार ही नहीं है और अपने विचार पर अड़ जाते है
हमें लोगो का सहयोग अपेक्षित होता है, न की उनकी मूक सहमतीहम अपनी बात को श्रेष्ट और विरोधी की बात को कमजोर सिद्ध करने में लग जाते है.
हम सामने वाले पर व्यक्तिगत आरोप न लगाकर एक सभ्य सामाजिक दायरे में रह कर अपनी असहमति प्रकट करते है.अगर हम बहस को जीत भी जाते है तो भी एक मित्र या बिज़नस पार्टनर खो ही देते है



चर्चाओ को बहस बनाने से रोकने के कुछ कारगर कदम :

  • वाद विवाद से बचे : किसी भी चर्चा में दलीले पेश कर तर्क वितर्क न करे. सभ्य बने. जितनी आप अपने विचारो की कद्र करते है उतना ही सम्मान सामने वाले के विचारो को दे. बिना आक्रामक मुद्रा अपनाए, निश्चयात्मक रहे।
  • मुद्दों में दिलचस्पी रखे, न की कोई पूर्वनियोजित स्तिथि पर अड़ जाए : मसलन पहले ऐसा कुछ किया था तो ऐसा हुआ था इसलिए हर बार ऐसा ही होगा ये नहीं सोचे बल्कि ये देखे की पिछली असफलता से कैसे दूर रहा जाए.
  • स्पष्ट और सम्बंधित प्रश्न पूछे : मुद्दों से सम्बंधित प्रश्न पूछे और प्रश्न भी स्पष्ट हो जिनका उत्तर "हाँ" या "ना" में नहीं हो. जैसे क्या आपको मेरा ये प्रस्ताव स्वीकारीय है ? पूछने की बजाये ये पूछे कि "आपको मेरा प्रस्ताव कैसा लगा ?" जिससे सामने वाले को जवाब देने की आज़ादी मिले.
  • यदि आप गलत है तो स्वीकार कर ले : नयी जानकारी प्रकाश में अपनी राय को बदलने में अहं को बीच में मत आने दे. नए तथ्यों को समझ कर अपनी राय बदलना समझदारी और परिपक्वता की निशानी है.
  • यदि आप सही है तो सामने वाले को नीचा दिखने का प्रयास नहीं करे : ध्यान रखे आपका ध्येय लोगो का विश्वास जीतना है न कि उनको नीचा दिखाना. आप अगर यहाँ दरियादिली दिखायेंगे तो शर्तिया आपका फायदा कही ज्यादा होगा.
  • सुने : ध्यान पूर्वक सामने वाले व्यक्ति को सुने और बीच में टोके नहीं. वक्ता के हाव, भाव, इशारो को अपने दिल, दिमाग, कान और आँखों से सुने और देखे. केवल उन शब्दों पर मत जाए जो आपके कान में पड़ रहे है.
  • नजरिया समझे : प्रत्येक व्यक्ति जो कुछ भी करता है, उसमे उसका एक नजरिया होता है। उस नजरिये को समझे. अगर आप पहले से ही उस व्यक्ति की आलोचना में लग जायेंगे तो संभव है को वो अपनी बात को और भी कड़ाई से रखे और अप्रसन्न हो अपनी बात पर अड़ जाए. इसके बजाये उसकी बात में छुपे हुए कारण को खोजे हो सकता है आपको उस नजरिये की जड़ तक पहुँच जाए.
  • सहमती बनाये : अक्सर हम लोगो से सिद्धान्तक रूप से सहमत होते है पर उनकी कार्य प्रणाली से नहीं. हमें उस कार्य को दुसरे तरीके से करना ज्यादा अच्छा लगता है. ऐसे में आम सहमती बनाये और सामने वाले व्यक्ति को एक मुसीबत या मुद्दे को हल करने वाला एक साथी समझे न की अपना कोई मित्र या शत्रु.

बस इन बातो पर गौर फरमाएं और देखे आप कैसे जीवन की रह में सफलता की तरफ बढ़ते है. और हाँ अपना कुछ समय निकल पर इस लेख पर अपने विचार अवश्य वक्त करे. यदि किसी कारण से आपके पास समय का आभाव है तो निम्नलिखित विकल्प में से एक चुन कर अपनी प्रतिक्रिया मुझ तक अवश्य पहुचने का कष्ट करे. (चित्र : साभार गूगल)

अगली कड़ी में : आधुनिक कॉरपोरेट मैनेजमेंट और श्रीमाद्भाग्वाद गीता

बातचीत का मनोविज्ञान

शब्दों का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से हमारे ऊपर भौतिक और रासायनिक प्रभाव पड़ता है. आप किसी छोटे बच्चे को तुतला कर बोलते हुए देखते है तो अनायास ही आपको उस पर प्यार आ जाता है. कोई आपकी तारीफ करता है तो आपके चेहरे पर एक मुस्कान आ जाती है और कोई अपशब्द बोल दे तो चेहरा लाल हो जाता है.

यद्यपि हम और आप सभी लोग हर रोज कितने ही लोगो से बात करते है लेकिन क्या आप जानते है कि बातचीत करना अपने आप में एक बहुत बड़ी कला है. नेता और अभिनेता प्रजाति के लोग अक्सर बातचीत की इस कला में काफी दक्ष होते है और ये कला कुछ हद तक उन लोगो को दुसरो से अलग सफलता के नए मुकाम तक पहुचाने में मदद करती है.

एक सिमित परिधि के रहते, अक्सर देखा गया है की छोटे शहरो के बच्चे, महानगरो के बच्चो के मुकाबले, बातचीत की इस विधा में उन्नीस रह जाते है. चूँकि बातचीत करना एक कला है इसलिए थोडा सा ध्यान देकर हर व्यक्ति न केवल अपनी बात सही ढंग से कह सकता है बल्कि सामने वाले व्यक्ति का नजरिया भी ज्यादा अच्छी तरह से समझ सकता है और अपने व्यक्तित्व में निखार ला सकता है.

हम जब भी कोई वाक्य बोलते है तो हम शब्दों से तथ्य, मतलब (अर्थ), भाव और इरादे से में एक या एक से अधिक चीज़ अपने वाक्य के द्वारा दर्शाते है.

"सड़क दुर्घटना हो गई है" कहने को तो ये सीधा सा वाक्य है लेकिन अगर जिस तरह से इसे बोला जाता है उससे इसके भिन्न भिन्न मतलब निकल सकते है. उदहारण के तौर पर :

कुछ गाड़ियाँ सड़क पर आपस में टकरा गई है (तथ्य)
गाड़ियों की टक्कर से उसमे सवार लोगो को चोट लगी होगी (मतलब)
उफफ्फ्फ्फ़ तत्काल घायलों के लिए कुछ करना चाहिए (भाव)
अभी एम्बुलेंस और पुलिस को फ़ोन सूचित करो (इरादा)

श्रोता कई बार वक्ता को केवल इसलिए नहीं समझ पाता क्योंकि वो ढंग से सुन ही नहीं रहा होता है. उसका ध्यान या तो बँटा हुआ होता है या कही और ही लगा होता है. लेकिन कई बार श्रोता इसलिए भी नहीं समझ पता क्योंकि वो वक्ता के वाक्य का तात्पर्य नहीं समझ पाता. वो उस स्तर पर नहीं बैठ कर सुन रहा होता है जिस स्तर पर वक्ता बोल रहा होता है. मसलन वक्ता वो तथ्यों को समझ लेता है पर भाव नहीं समझ पाता. श्रोता और वक्ता के वार्तालाप को विभिन्न स्तर पर समझ कर देखे.















































वक्ता का तात्पर्यश्रोता का कर्त्तव्यश्रोता के प्रश्नश्रोता का उद्देश्य
तथ्यसुचना प्रसारित करना सुचना को समझना और स्पष्टीकरण करनाकौन, क्यों, कब, कहाँ, क्या, कैसे सुचना का दिमाग में ठीक वैसा ही चित्र बनाना जैसा वक्ता कहना चाह रहा है.
मतलबश्रोता को समझानापुरे परिवेक्ष को संक्षिप्त भाव से समझनाक्या मैं सही समझ रहा हूँ ?
क्या आप ये ही समझाना चाह रहे है ?
समझने का प्रयास करना और वक्ता को इसका भरोसा दिलाना.
भावभावनात्मक तौर पर श्रोता से जुड़ना.वक्ता के हाव, भाव और उच्चारण के तरीके पर ध्यान देना इससे आपके दिल पर क्या बीत रही है / आपको कैसा लग रहा है. वक्ता की भावनाओ को समझ कर उनसे जुड़ना
इरादाउसकी जरुरत पर ध्यान दो.ध्यान से सुनने के बाद सोच समझ कर समाधान पर ध्यान केन्द्रित करना इस परिस्तिथि में क्या करना चाहिए और किससे मदद मिल सकती है. जाने की सामने वाला व्यक्ति क्या पाना चाहता है.



कबीर दास जी ने भी कहा है "कागा काको धन हरै, कोयल काको देत, मीठा बोल सुनाय के, जग अपनी करि लेत" तो मित्रो ये शब्दों का चयन और समझ का फेर ही है जो अर्थ का अनर्थ कर देता है. इस लेख से अगर किसी एक को भी प्रेरणा मिले और उसके व्यक्तित्व में अच्छे के लिए परिवर्तन होता है तो मैं समझूंगा की इस को लिखने में लगा मेरा समय सार्थक गया.

अगली कड़ी में : किसी भी चर्चा को बहस बनने से कैसे रोके ?

दोहरे चरित्र वाला देश का तथाकथित प्रजातंत्र

दृश्य एक :
दिनांक : १७ दिसम्बर २००९.
स्थान : किंग क्रोस स्टेशन, इंग्लैंड.
समय :सुबह के दस बजकर पेंतीस मिनिट.
दस बजकर पैतालीस मिनिट पर इसी किंग्स क्रोस स्टेशन से चलकर नोरफ्लोक के किंग लिन स्टेशन तक जाने वाली रेल गाड़ी प्लेटफॉर्म नंबर ग्यारह पर खड़ी है. तभी इस गाडी के प्रथम श्रेणी के डिब्बे में इंग्लैंड की ८३ (तेरासी) वर्षीया महारानी एलिज़ाबेथ अपने एक सुरक्षाकर्मी के साथ पौंड £४४.४० का टिकट खरीद कर सफ़र करने के लिए बिना किसी तामझाम के, आम आदमी के साथ सफ़र करने के लिए चढ़ती है. महारानी जो अपने क्रिसमस या बड़े दिन की छुट्टी मनाने जा रही थी, उन्होंने एक आम व्यक्ति की तरह खिड़की के पास की सीट पर जगह ली और फिर वही से बैठ कर गाड़ी के चलने का इंतज़ार करने लगी. गाड़ी सही समय पर चली और समय पर ही अपने गंतव्य स्थान पर पहुंची. गाडी के गंतव्य स्थान पर पहुँचने के बाद महारानी अपनी सीट पर ही बैठी रही, उन्होंने सब लोगो के उतरने का इंतज़ार किया और उसके बाद वो उतर कर अपनी कार से सात मील दूर अपने महल पहुँच गई. महारानी और उनके परिवार वालो ने पहले भी कई बार ट्रेन ली है और बकिंघम पैलेस के प्रवक्ता के अनुसार रानी और उनका शाही परिवार साल में कई बार नियमित रेल सेवा का उपयोग आम आदमी की तरह करता है.

दृश्य दो :
स्थान : इंदिरा गाँधी हवाई अड्डा.
समय : सुबह के ११:३०.
मेरी घरेलु उड़ान एक घंटे की देर से चलने की उद्घोषणा हो रही है. तभी देखा करीब दस बारह बंद गेट की तरफ बड़े जा रहे थे. उनमे से कुछ हवाई अड्डे के कर्मचारी थे जिनके गले में टेग था. इन सबके बीच में एकदम नज़र पड़ते ही देख की आज़ाद भारत के सरकार की पंद्रहवीं लोकसभा के मंत्रीमंडल में सड़क परिवहन एवं राजमार्ग में मंत्री जी कुर्ते पायजामे में चल रहे है. साथ में एक दो शायद IAS अफसर रहे होंगे जो फाइल और एक छोटा बैग पकडे पकडे चल रहे थे. थोडा आगे बढ़ते ही एक आदमी ने इशारा किया और गेट पर खड़े सिपाही ने तत्काल गेट का दरवाजा खोल कर सावधान की मुद्रा में खड़ा हो गया. विमानतल पर उतरते ही एक SUV आ गई और किसी ने दरवाजा खोल दिया. नेताजी बात करते हुए एक कदम आगे ही बढे थे की वो समझ गया साहब दूसरी तरफ बैठना चाहेंगे और तत्काल दूसरा दरवाजा भी स्वत ही खुल गया. साहब ने आसन ग्रहण किया और एक व्यक्ति आगे बैठ गया. SUV विमान की तरफ बढ़ने लगी ही थी की तभी एक वेन आ गई और विमतल के कर्मचारी उस में सवार हो कर साहब को विमान में बैठने के लिए उस SUV के पीछे पीछे हो लिए.

दृश्य तीन :
दिल्ली जाने वाला विमान अब उड़ान भरने को तैयार है. यात्रियों से निवेदन की तुरंत सुरक्षा जांच करवा के विमान की और प्रस्थान करे. एक घंटे बाद भी विमान वही खड़ा है. पता चलता है की नेताजी बस आ ही रहे है. यानि विमान में सवार सौ पचास लोगो के समय की कोई कीमत नहीं है. अगर उन्हें आगे कोई फ्लाईट लेनी है और वो लेट हो रहे है तो बस प्रार्थना करे की आगे वाली फ्लाईट भी लेट हो जाए क्योंकि नेताजी का सवाल है. हाल ही में तो संसद ने नेता और उसके परिवार को मुफ्त यात्रा का प्रावधान भी कर दिया है, जैसे की हवाई जहाज न होकर उनके बाप का कोई ख़रीदा हुआ बंधुआ मजदूर है . फिर ऐसे में अगर एयर इंडिया ५५०० करोड़ के घाटे में चलती है तो क्या आश्चर्य है.

दृश्य चार :
गुडगाँव से दिल्ली में प्रवेश करने वाला टोल टैक्स. आधे घंटे की लाइन में गाड़ियाँ बम्पर से बम्पर लगा कर अटी पड़ी है. आम आदमी को पैसे दे कर प्रवेश करने में बीस से पच्चीस मिनिट का समय लग रहा है. लेकिन इस दौरान एक दर्जन लाल और नीली बत्ती वाली गाडिया साइरन देती हुई आती है और, शायद बिना पैसे दिए हुए (सरकारी गाड़ी होने की वजह से), आराम से निकल जाती है.

कभी कभी सोचता हूँ, कि क्या इंग्लैंड की तरह, हमारे देश के महामहिम या फिर टुच्चे छाप नेता अकेले या फिर अपने लाव-लश्कर के साथ कभी आम आदमी की तरह ट्रेन या हवाई यात्रा कर सकते है. यहाँ यह बतलाना जरुरी है की सोनिया गाँधी ने जब एक बार मवेशी या इकोनोमी क्लास में सफ़र किया था जब जहाज की तीन पंक्तिया सुरक्षा की दृष्टी से खाली रखी गई थी. फिर दिमाग में आता है की अगर इन लोगो को अगर आम आदमी के तरह सफ़र करना पड़े तो नेता बनने से क्या फायदा. हमारे देश में नेता होने का मतलब है, जनता से दूर होकर, सारे सरकारी संसाधन अपनी बपौती समझ कर उनका दुरूपयोग करना. ये नेता तो चुनावी सभा में भी हेलीकाप्टर से जाते है और फिर भाषण की ऐसी बाढ़ ले आते है की बस जीतते ही मक्खन की तरह सड़क बनवा देंगे. मुगालते में जनता वोट दे देती है. मक्खन ये खा जाते है और सड़के इनके विभाग के सरकारी अफसर. नतीजा वोही ढ़ाक के तीन पांत.

क्या इंग्लैंड की रानी को सुरक्षा की फ़िक्र नहीं है या फिर वहां पर आतंकवादी हमले नहीं करते ? अवश्य करते है और अक्सर वहां हमले करने वाले अपने नापाक इरादों को अंजाम देने से पहले ही पकड़ लिए जाते है. क्योंकि वहां पर फिर भी न्याय है, कानून है. पुलिस का काम जनता की रक्षा करना है न की हमारे देश की तरह मंत्रियो से सांठ गाँठ कर अपना उल्लू सीधा करना और आम आदमी को त्रस्त करना.

देश में आज भी राज्य का मुख्यमंत्री तक अपने काफिले में साईंरन वाली गाडिया, पुलिस और डॉक्टर की टोली तक को साथ ले कर चलता है. सोचो, डॉक्टर की जरुरत अस्पातल में भर्ती मरीज को ज्यादा है या फिर मुख्यमंत्री को अपने काफिले में अपना रुतबा दिखने के लिए. हमारे राष्ट्रपति को आम आदमी से जुड़ने की बजाये सुखोई विमान में बैठने में अधिक दिलचस्पी है. चाहे इसके लिए उन्हें कुछ दिन ट्रेनिंग ही क्यों न लेनी पड़े और इसके लिए वायु सेना के डिविजन को अन्य कामो से मुक्त क्यों न किया जाए.

कहने को इंग्लैंड में अभी भी राजशाही है पर वहां राजा तो प्रजा के साथ चल रहा है. वो रेल गाडी के समय पर आ रहा है न कि रेल को उसके समय पर चलने को बाध्य किया जा रहा है. और हमारे यहाँ प्रजातंत्र जहाँ, सिर्फ कहने भर को, प्रजा का तंत्र चलता है. अब आप किसे प्रजातंत्र कहेंगे और किसे राजशाही.

शायद अभिशप्त है इस देश के नागरिक ऐसे दोहरे चरित्र वाले प्रजातंत्र से.

हम सबने ऐसा कटु अनुभव अपनी जिन्दगी में अवश्य किया होगा. इस दोहरे चरित्र वाके प्रजातंत्र पर आपकी क्या राय है ?