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वक़्त नहीं - इस भाग दौड़ भरी जिन्दगी में

हर ख़ुशी है लोगों के दामन में,
पर एक हंसी के लिए वक़्त नहीं.
दिन रात दौड़ती दुनिया में,
ज़िन्दगी के लिए ही वक़्त नहीं.

माँ की लोरी का एहसास तो है,
पर माँ को माँ कहने का वक़्त नहीं,
सारे रिश्तों को तो हम मार चुके,
अब उन्हें दफ़नाने का भी वक़्त नहीं.

सारे नाम मोबाइल में हैं,
पर दोस्ती के लिए वक़्त नहीं
गैरों की क्या बात करें,
जब अपनों के लिए ही वक़्त नहीं.

आँखों में है सपने बड़े,
पर सोने का वक़्त नहीं,
दिल है ग़मों से भरा हुआ,
पर रोने का भी वक़्त नहीं,

पैसों की दौड़ में ऐसे दौड़े,
की थकने का भी वक़्त नहीं,
पराये एहसासों की क्या कद्र करें,
जब अपने सपनो के लिए ही वक़्त नहीं,

तू ही बता ऐ ज़िन्दगी,
इस ज़िन्दगी का क्या होगा,
की हर पल मरने वालों को,
जीने के लिए भी वक़्त नहीं .......

हिंदी प्रश्नावली

हाल ही में जब मैंने पडोसी देश के गणित के प्रश्न पत्र का नमूना दिया तो उस पर कुछ मिश्रित सी प्रतिक्रिया हुई थी. इस बार अपने मोती यानी हिंदी प्रश्नावली आपके समक्ष रख रहा हूँ. इसे पढ़कर अपनी प्रतिक्रिया देने का प्रयास करे.



१. अमेरिकी फिल्म स्टार ब्रेड पिट्ट और बॉलीवुड की हिरोइन विद्या बालन ने शादी कर ली. शादी करते ही उनके घर बहुत सारे बच्चे पढने के लिए आ गए. बतलाइए क्यों ?

क्योंकि ब्रेड पिट्ट से शादी के बाद विद्या का पूरा नाम विद्यापीठ हो गया.



२. राहुल गाँधी बहुत परेशान था. एक दिन वो अपनी माँ के पास जा कर बोला, माँ में आपकी वजह से कुंवारा रह गया और मेरी शादी नहीं हो रही है.
सोनिया : क्यों बेटा ऐसी क्या बात है ?

राहुल : क्यों क्या, देखो हर तरफ लिखा है सोनिया गाँधी को बहु मत दो.



३. ब्रूस ली एक महान व्यक्ति था. लेकिन उसकी बहन के बच्चा होने के बाद ब्रूस ली एक बिलकुल साधारण आदमी बन गया. बतलाइए क्यों ?

क्योंकि अब वो मामू ली बन गया.



४. संता : यार अगर में काफी पी लेता हूँ तो मुझे नींद नहीं आती.
बंता : अच्छा, लेकिन मेरे साथ उल्टा है, अगर में नींद ले लेता हूँ तो काफी नहीं पी सकता.



५. एक दिन रावन एक डिस्को में गया और वहां जा कर बेहोश हो गया. बतलाइए क्यों ?

क्योंकि वहां पर लिखा था "Entry Fee Rs. 2500 per head"



६. गौतम (Gautam) को औतम (Autam) किसने बनाया.

कैलाश खेर ने. कैसे सोचो सोचो.....
उसके नाम से "G" ले कर ......
(तेरे नाम से "G" लूँ)



७. एक दिन एक आदमी ने अपने नौकर को प्रिया गोल्ड बिस्किट लेने भेजा तो वो पाकिस्तान चला जाता है. बतालिये क्यों ?

अरे भाई क्योंकि प्रिया गोल्ड बिस्किट - हक से मांगो



८. एक नदी पर एक ब्रिज या पुल बना हुआ था. उस पर बहुत सारी लडकियां खड़ी थी. सब की सब एक ही लड़के की दीवानी थी. बतलाइए वो लड़का कौन था.

वो और कोई नहीं किसना है. क्यों
क्योंकि वो है अलबेला मद नैनो वाला,
जिसकी दीवानी ब्रिज की हर बाला.


९. अगर आप कही जा रहे हो और बिल्ली रास्ता काट जाए तो इसका क्या मतलब होता है.

इसका मतलब होता है की बिल्ली भी कही जा रही है.



१०. पत्नियों की नज़र में हिदुस्तानी पति चांदी के होते है और अमेरिकन पति सोने के. बतलाइए क्यों ?

क्योंकि हिन्दुस्तानी पत्नी अपने पति को Ag कह कर संबोधित करती है. (लाटिन में चांदी को अर्जेन्टम कहते है और रसायन शास्त्र में चांदी को Ag से दर्शाया जाता है.)
वही अमेरिकां पत्नी अपने पति को Au कह कर संबोधित करती है. (लाटिन में सोने को ओरम कहते है और रसायन शास्त्र में चांदी को Au से दर्शाया जाता है.)



११. एक नेता चुनाव हार गया. परिणाम आने पर पता चला की उसे किसी ने वोट ही नहीं दिया. ऐसा क्यों ?

क्योंकि उसे कार्यकर्ता चुनाव क्षेत्र में जाते थे और कहते थे "मत दो"

पाकिस्तानी गणित

जय हिंद..................

ये अपने पडोसी देश के बोर्ड की परीक्षा में पूछने लायक गणित के एक पर्चे का नमूना है. जिस कदर उस देश के हालत है, उसको खास ध्यान में रख कर ये परचा तैयार किया गया है। वैसे कहने को तो हमारे देश में भी लालू, पासवान, कोड़ा, माया जैसे नेताओ की जमात के रहते हालात कुछ खास अच्छे नहीं है, लेकिन फिर भी कुछ तो बात है कि "हस्ती मिटती नहीं हमारी"। खैर साहिब, हमारी अपनी फिर कभी, आज जरा पडोसी देश के गणित प्रश्न पत्र पर एक नज़र :

गणित प्रश्न पत्र
कुल समय : तीन घंटे
कुल अंक : १००
सभी प्रश्न अनिवार्य है.

कृपया निम्नलिखित निर्देश ध्यान से पढ़े :
i) नक़ल नहीं करते पाए जाने पर, छात्र को गोली से उड़ा दिया जाएगा.
ii) सही समय पर आने वाले छात्र को जबरदस्ती अल कायदा संगठन में भर्ती करवा दिया जायेगा (बम फोड़ने में टाइमिंग की काफी जरुरत होती है)
iii) एके - ४७ और हथगोले साथ में नहीं रखने दिए जायेंगे. अलबत्ता छात्र छुरी, कट्टा और एन्थ्राक्स बम का पैकेट आत्मरक्षा में अपने पास रख सकते है.


१. अब्दुल को खून के इल्जाम में जेल की सजा हो गई है. अब्दुल के घर पर सात बीवियां है. अब्दुल ने अपने पैसे को इस प्रकार बांटा है की सबसे छोटी और नई बीवी को सबसे ज्यादा हिस्सा और सबसे पुरानी को सबसे कम हिस्सा मिलता है और हर बीवी को अपनी पिछली प्रतिद्वंदी से दुगुना पैसा मिलता है. अब्दुल के घर में अब ५४४०० रूपये है. उसकी सबसे पुरानी बीवी को हर महीने जीविका चलाने के लिए ८०० रूपये चाहिए. बतलाइए अब्दुल कब जेल तोड़ कर आये ताकि उसकी किसी भी बीवी को फाकाकशी न करनी पड़े.


२ करीम एक ड्रग्स व्यापारी है. उसके यहाँ चरस, हशीश, हेरोइन और अफीम की कीमत क्रमश ७०, ८०, ९० और १०० रूपये है. हर ग्राहक जो पचास ग्राम से ज्यादा ड्रग्स लेता है. करीम उसे २० रूपये की छुट देता है. अगर रहीम को कुल ३७ रूपये की छुट मिलती है तो बतलाइए उसने कुल कितनी ग्राम चरस खरीदी थी.


३ इमरान हर ओवर में पांच बार गेंद से छेड़खानी करता है. हर बार वो गेंद को अपने स्वरुप से .०२% विकृत कर देता है. भारत और पाकिस्तान के खिलाफ एक दिवसीय मैच में, जिसमे इमरान ने ९.३ ओवर गेंदबाजी की है, उसमे कुल गेंद कितनी विकृत हो चुकी होगी.


४. अगर पाकिस्तान में एक स्थाई लोकतान्त्रिक सरकार की सम्भावना का समीकरण X exp3 +X exp2 -16 = i से निकाला जाता है तो x का मान कितना होगा.


५. मोहम्मद की एक कंपनी है जिसका नाम है "अल अल्लाह अपहरण, फिरौती और मर्डर प्राइवेट लिमिटेड". उसे हर रोज फ़ोन पर ३० ग्राहकों को धमकाना होता है. उसके ३५% ग्राहक मुंबई की बॉलीवुड के है, ३०% ग्राहक दिल्ली के व्यापारी है, २५% चेन्नई के क्रिकेट खिलाडी है और १०% कोलकाता के दुकानदार है. अगर मोहम्मद के शहर कराची से मुंबई, दिल्ली, चेन्नई और कोलकाता में अंतरराष्ट्रीय फ़ोन कॉल की दरे ४५, ४२, ४८, ५० रूपये प्रति मिनिट है और मोहम्मद के एक महीने के टेलीफ़ोन का बिल १४,४४० रूपये है तो ये बतलाइए उस महीने उसने कितने फ़िल्मी कलाकारों को धमकी दी.


६. लश्कर ए तैयबा को अपने कैम्प में प्रशिक्षण देने के लिए प्रत्येक आतंकवादी को एक एके-४७, एक एके-४९, एक रोकेट लांचर, एक पैकेट आरडीएक्स के बम का की जरुरत होती है. प्रत्येक एके-४७ की कीमत $४००, एके-४९ की कीमत $५५०, बाज़ुका रोकेट लांचर की कीमत $२५०, और एक पैकेट आरडीएक्स बम की कीमत $२५ है. लश्कर ए तैयबा हर साल अपने यहाँ २१९० लोगो को प्रशिक्षित करता है जिनमे से ३५% का कौर्ट मार्शल हो जाता है. लश्कर ए तैयबा के इस कैंप को चलाने के लिए पाकिस्तान सरकार को हर साल कितना खर्चा पड़ेगा. साथ ही ये भी बतलाइए की अमेरिका, जो पाक को ८०% विदेशी सहायता मुहैया करवाता है, पाकिस्तान सरकार को उससे कुल कितनी भीख मांगनी पड़ेगी.


७. अगर पक्तुनिस्तान एक सप्तभुज है, तो ओसामा बिन लादेन संशोधन के उपयोग में पाई प्रमेय को मानते हुए पक्तुनिस्तान का ज्यामितीय क्षेत्रफल बतलाइये. (पाई का मान ३.१४ की बजाये ७८६ मानिये)


८. अनसुलझी समस्या "त्रिकोण का द्विभाजन", जिसमे इस त्रिकोण का नाम कश्मीर है, को परकार और बिना चिन्ह वाली स्केल की सहायता से विस्तार से समझाइये.


९. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की गोली लग कर मरने की सम्भावना ८०% है. पाकिस्तान के सेना के मुखिया की हत्या की सम्भावना ८३% है. एक ऐसा व्यक्ति जो पाकिस्तान की सेना का मुखिया होने के साथ साथ देश का प्रधानमंत्री भी हो तो उसकी गोली से हत्या होने की संयुक्त सम्भावना कितनी होगी.


१०. द्रास कारगिल के १५० किलोमीटर उत्तर में है. द्रास से एक घौरी मिसाइल कारगिल की तरफ छोड़ी जाती है. उस समय हवा दक्षिण-पश्चिम में बह रही है. हवा की गति ठीक मिसाइल की गति के बराबर ही है. (मिसाइल की गति हवा की गति के सापेक्ष है) . मिसाइल छोड़ने वाली टीम, उस मिसाइल को उड़ान के दौरान उत्तर दिशा में निर्बाधित रूप से चलने देने का फैसला लेती है. क्या ये मिसाइल अपने जीवन काल में कभी कारगिल पहुँच पाएगी (या पाकिस्तान के घर में ही काम में आ जायेगी).
यदि हवा कि गति मिसाइल की गति से "क" गुना ज्यादा है तो क्या क्या परिद्रश्य हो सकते है. (ज्ञात रहे यहाँ "क" का मान एक, एक से कम या एक से अधिक भी हो सकता है). तीनो परिस्तिथियों में मिसाइल का प्रक्षेप पथ का नक्षा बना कर बताये.

मनोभ्रंश प्रश्नोतरी

नीचे दिए हुए पाँच प्रश्न आपका प्रत्यक्ष ज्ञान, तार्किक शक्ति और भौद्धिक क्षमता की त्वरितता को मापने के लिए है.

प्रश्न सरल और साधारण भाषा में है इसलिए तुरंत उत्तर अपेक्षित है. अगर आपको अपनी क्षमता का सही आंकलन करना है तो बिना समय व्यर्थ किया, प्रश्न पढ़ते ही तुरंत उत्तर देने का प्रयास करे.
तो चलिए शुरू करते है और मिल कर खेलते है (उफ़ यहाँ पर कहना होगा चलिए मिल कर देखते है) की कौन कितना समझदार है...


तो ये रहा आपका पहला सवाल आपके कंप्यूटर के स्क्रीन पर :

पहला प्रश्न

आप एक रेस प्रतियोगिता में प्रतियोगी है. आपने द्वितीय स्थान पर दौड़ रहे प्रतियोगी को ओवरटेक कर लिया है. अब आपका रेस में कौनसा स्थान है ?











उत्तर :


अगर आपने कहाँ की अब आप रेस में सबसे आगे प्रथम स्थान पर गए है तो अफ़सोस मित्र ये बिल्कुल गलत है.
अरे भाई आपने दुसरे स्थान पर दौड़ रहे प्रतियोगी को ओवर टेक कर लिया तो अब आप उसकी जगह यानी दुसरे स्थान पर दौड़ रहे हो.

चलिए कोई गल (बात) नहीं. अभी दिल्ली दूर है. ये दूसरा प्रश्न और उम्मींद है की इस बार गलती नहीं होगी और उतना समय भी नहीं लगेगा जितना पहले प्रश्न को हल करने में लगा था. ठीक है ....

ये रहा आपका दूसरा सवाल आपके कंप्यूटर के स्क्रीन पर :



दूसरा प्रश्न

अभी
भी हम ज्यादा दूर नहीं गए है और अभी तक इसी रेस में है. लेकिन अब की बार आपने रेस में दौड़ रहे आखिरी व्यक्ति को ओवर टेक कर लिया. अब दौड़ में आप अपना स्थान बतलाये ?











उत्तर :


ओफ्फो
क्या कहाँ आपने. आप पीछे से दुसरे नंबर पर गए.
अफ़सोस इस बार भी आप पिछले बार की तरह गलत है.
अरे जरा सोचिये वो रेस में आखिरी व्यक्ति था, फिर आप उसको ओवर टेक कैसे कर सकते हो क्योंकि उसके पीछे तो कोई था ही नहीं तभी तो वो आखिरी था.



तीसरा प्रश्न

ये
अंकगणित का छलीय प्रश्न है. सारी गणना आपको अपने दिमाग में ही करनी है.
पेपर, पेंसिल या केलकुलेटर का इस्तेमाल बिल्कुल वर्जित है.
अरे कोशिश तो कीजिये

1000 में 40 जोड़े. अब इसमें फिर से 1000 जोड़े. अब कुल में 30 जोड़े. इस संख्या में फिर से 1000 जोड़े. अब इसमें 20 जोड़े. एक बार फिर से 1000 जोड़े. अब इसमें 10 जोड़ कर बतलाये की कुल संख्या कितनी हुई ?











उत्तर :


अगर
आपका उत्तर 5000 है तो अफ़सोस ये गलत उत्तर है।सही उत्तर है 4100. यकीन नहीं आता तो केलकुलेटर का इस्तेमाल करके जांच कर लीजिये



चौथा प्रश्न

मेरी
के पिता के पांच लड़कियां नाना, नेने, निनी, नोनो, .... है. पांचवी लड़की का नाम क्या होगा ?











उत्तर :

क्या
कहाँ आपने मेरी के पिता से पूछे
या आपने कहाँ की पांचवी बेटी का नाम नुनु है.

जी नहीं पांचवी बेटी का नाम मेरी है (कृपया प्रश्न पुन पढ़े)



और अब आखिरी प्रश्न.

इस
बार कोई गलती मत करना क्योंकि ये आखिरी मौका है अपना ज्ञान सिद्ध करने का.
चलिए सीधे प्रश्न पर आते है.

एक गूंगा एक दुकान में दातुन खरीदने जाता है. वो अन्दर जाता है और दुकानदार को अपने दांत मांजने का इशारा
कर के समझा देता है. दुकानदार उसको मंजन या दातुन दे देता है.
ठीक उसी समय उसी दुकान में एक अँधा आता है जिसको अपने लिए धुप का चश्मा लेना है. बतलाइए वो दुकानदार को कैसे समझाए की उसे क्या चाहिए.











उत्तर
:


जी
नहीं वो अपने हाथ आँख पर रख कर चश्मा नहीं बनाएगा. वो अपना मुंह खोलेगा और बोल देगा की उसे धुप चश्मा चाहिए. वो अँधा है गूंगा नहीं .....

अगर आपको अपने कार्य में सोचने के लिए पैसे दिए जाते है तो कृपया करके इस प्रश्नावली के नतीजे अपनेनियोक्ता (इम्प्लोयेर) को मत बतालना......

जय हो

जो कभी गलती नहीं करे उसे भगवान् कहते है,
जो गलती कर के मान जाए उसे
इंसान कहते है,
जो गलती कर के भी न माने उसे शैतान कहते है,
जो एक भी गलती को माफ़ न करे उसे तालेबान कहते है,
जो बार बार हर बार गलती करे उसे पाकिस्तान कहते है,
जो गलती करने वालो का फायदा उठाये उसे अमेरिकान कहते है,
जो हर बार बेवकूफों से थप्पड़ खा कर उसकी गलती को माफ़ कर दे उसे हिन्दुस्तान कहते है।
जय हो !!!

ताज और कसाब

कसाब और उसके साथियो ने होटल ताज पैलेस पर हमला ऐसे ही किया था. उन्हें पता था की इस आतंकी घटना को अंजाम देने के बाद भारत देश की सरकार उनकी खातिरदारी वैसी ही करेगी जैसी की ताज महल होटल में होती है. आइये एक नज़र डाले और देखे की ताजमहल और ताज होटल मुंबई पर हमला करने वाले कसाब में क्या क्या समानताये है.

जिस प्रकार ताज महल को शाहजहाँ बनाया था ठीक उसी प्रकार कसाब को हमारे आज के हरामखोर नेताओ ने बनाया है. ताज महल को मुमताज की याद में बनाया गया है और कसाब को २६ नवम्बर २००८ की उस भयावह रात को शहीद हुए उन एक सौ अस्सी लोगो की शहादत को याद रखने के लिए जिन्दा रखा गया है.

ताज के पर्यवेक्षण में तीन मुख्य निर्माता अब्दुल करीम मामूर खान, मक्रामत खान और उस्ताद अहमद लाहौरी थे, कसाब को भी जिन्दा पकड़ने के लिए मुंबई पुलिस के तीन बहादुरों हेमंत करकरे, विजय सलास्कर और अशोक कामटे को अपनी बलि देनी पड़ी थी.

ताज के खर्चे में उस समय के करीब ३.२ करोड़ रूपये खर्च हुए थे और कसाब के ऊपर अब तक अनुमानित ३१ करोड़ रूपये खर्च हो चुके है. इसमें से ३० करोड़ से तो मंत्रियो संतरियों और बाबुओ की जेब गरम हुई होगी). जहाँ देश में आज आम आदमी दिन के ८५ रूपये नहीं कमा पाता वही सरकार आम आदमी की मेहनत की कमाई के इस पैसे के टैक्स से एक दुर्दांत वहशी दरिन्दे को जिन्दा रखने के लिए रोज ८.५ लाख रूपये खर्च कर रही है. अगर कसाब को पांच सितारा होटल में एक साल तक रखा जाता तो कुल खर्चा इस सरकारी खर्चे के लगभग दो प्रतिशत के बराबर होता. चौकिये नहीं ये कोई आश्चर्य की बात नहीं है. देश में जहाँ लोग भूख से मर रहे है, आत्महत्या कर रहे है वहां अफज़ल और कसाब जैसे जहरीले सांपो को दिल्ली न केवल दूध पिला कर पाल पोस रही है बल्कि उनको मेहमानों के जैसे मटन बिरयानी खिलाई जा रही है. इसे देख कर तो ऐसा ही लगता है की देश में गुमनाम आम नागरिक से तो आतंकवादी का वर्तमान और भविष्य कई गुना अच्छा है.

जिस तरह ताज महल को सम्पूर्ण भारत और एशिया से लाई गई सामग्री से निर्मित किया गया था ठीक उसी प्रकार मुंबई हमलो को निर्बाध रूप से क्रियान्वन करने के लिए देश के कई हिस्सों से जयचंदों ने सामग्री के रूप में होटल के नक़्शे, मोबाइल, सिम इत्यादि मुहैया करवाए थे. और पडोसी देश ने अपने और उसके मित्र देश चीन तथा अफगानिस्तान में निर्मित गोला, बारूद, बंदूके दे कर सहयोग किया था.

ताज महल को बनाते वक़्त निर्माण सामग्री के परिवहन के लिए एक हज़ार हाथियों का इस्तेमाल किया गया था. देश पर हुए इस हमले से निपटने के लिए भी हज़ार कमांडो और अर्ध सैनिक बलों का इस्तेमाल किया गया.

ताज महल के निर्माण में बीस हज़ार मजदुर लगे थे और करीब इतने ही पुलिस वाले मुंबई की सडको पर हमले के बाद दिखाई दिए थे.

जिस प्रकार ताजमहल इमारत समूह रक्षा दीवारों से परिबद्ध है, ठीक उसी प्रकार सरकार ने आर्थर रोड जेल को भी तथाकथित रूप से आमूलचूल सुरक्षा से परिपद्ध कर दिया है. (तथाकथित सुरक्षा इसलिए क्योंकि सरकार के अलावा किसी को इस बात का भरोसा नहीं है की वहां कोई आतंकवादी नहीं जा सकता, अब तक अगर कोई आतंकवादी वहां नहीं गया तो इसलिए नहीं क्योंकि सुरक्षा अभेद है बल्कि शायद इसलिए की पडोसी मुल्क में बैठे कसाब के कई बापों में से अब वो किसी के काम का नहीं रहा और उन बापों में से किसी को भी अब उसकी कोई जरुरत नहीं होगी.)

हम लोग अपनी आँख बंद कर, दुनिया को अँधा समझ लेते है. कब तक हम प्रजातंत्र के नाम पर नपुंसक बने बैठे रहेंगे. क्यों हम अन्य देशो से नहीं सीखते. चीन को देखो वो इतनी प्रगति क्यों कर रहा है. इसका ये वाकया एक सीधा सा उदाहरण है. 'सान्लू' जो पिछले साल सितम्बर तक चीन की सबसे बड़ी पाउडर दूध विक्रेता कम्पनी थी उसने मिलावटी दूध पाउडर बेचा जिससे छ चीन में बच्चो की मृत्यु हो गई. घटना मीडिया में आते ही कंपनी पर इतने केस हुए की उस कंपनी का दिवाला निकल गया. और इस घटना के एक साल के बाद इस साल नवम्बर में चीन की अदालत ने आम लोगों की सुरक्षा को ख़तरे में डालने और मेलेमाइन से विषाक्त पाउडर दूध सप्लाई करने के आरोप में दो लोगों को मृत्यु दंड दिया और १९ अन्य लोगों को जेल की सज़ाएं दी. उधर छ बच्चो को मिलावटी दूध बेच कर मारने वालो को फांसी हो गई है और इधर हम दो सौ लोगो को निर्ममता से मौत के घाट उतारने वाले और कई हजारो को हताहत करे वाले वहशी दरिन्दे को मेहमान बनाये रख प्रजातंत्र की लाश पर सेक कर रोटियां और अपनी बोटियाँ खिला रहे है. जब तक देश की बागडोर ऐय्याश और भ्रष्ट नेताओ के हाथो में रहेगा तब तक कोड़ा सरीखे नेता हजारो करोड़ खाते रहेंगे और डकार भी नहीं लेंगे. देश में लाल किले पर हमला, कंधार काण्ड, अक्षरधाम हमला, समझौता बम ब्लास्ट, मुंबई ब्लास्ट, मुंबई ट्रेन हमले, जयपुर, वाराणसी बम ब्लास्ट होते रहेंगे और लोग हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे. मुंबई में हर बड़े हमले के बाद अगले दिन लोग घर से अपनी रोजी रोटी के लिए निकलते है और हमारे अभिनेता और नेता प्रजाति के लोग इसे मुंबई की जीवट शैली (स्पिरिट ऑफ़ मुंबई) कह कर बड़ी बेशर्मी से अपना पल्ला झाड लेते है. क्या ये मुंबई की स्पिरिट है या फिर मुंबईवासियों की मज़बूरी की हर रोज सर पर मंडराता हुआ खतरा देखते हुए भी पेट की खातिर उन्हें मजबूर हो घर से बहार निकलना पड़ता है ये जानते हुए भी की उनका शहर विकसित देशो के अन्य बड़े शहरो के मुकाबले कई गुना ज्यादा असुरक्षित है. हमारी इस नाकामी पर इसके सिवा और क्या कहा जा सकता है की बस... जय हो !!!

हमारा असली दुश्मन कौन है

अगर देश में ये प्रश्न पूछा जाए कि "आप किसे देश का असली दुश्मन समझते है" तो ज्यादातर लोगो का उत्तर होगा, पाकिस्तान, देश के नेता, कसाब, अफजल. लेकिन क्या ये असली दुश्मन है. ये जानने से पहले २४ नवम्बर से लेकर एक पखवाड़े तक देश में हाल में और पूर्व में हुई मुख्य दुर्घटनाओं पर एक नज़र डाले. जिन घटनाओं ने देश को हिला कर रख दिया और आजकल हम उस दिन मोमबत्ती जला कर अपनी संवेदनाएं प्रकट कर अपने कर्तव्य से इतिश्री कर लेते है.

पिछले हफ्ते २६/११ को, "राष्ट्रीय शर्म दिवस पर", देश पर हुए आंतकी हमलो को एक साल पूरा हो गया. कुछ लोगो ने मोमबत्ती जला कर पिछले साल इसी दिन आतंकवाद के भेंट चढ़े शहीदों को याद किया, कुछ नेता सरीखे लोगो ने वोट के लिए जनता के बीच जा कर के अपने तथाकथित दुःख के ड्रामे का इजहार किया. देश में कुछ लोगो ने इस समय इस घटना को याद किया, कुछ ने शिल्पा शेट्टी की शादी की बारीकियों को चस्के ले कर पढ़ा तो कुछ ने मीडिया में राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल की सुखोई में बैठ कर उड़ान भरने को इतिहास रचने की संज्ञा को तवज्जू दी. कई लोग ऐसे भी थे जिन्होंने उस दिन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा के राजकीय अतिथि सत्कार और रात्रि भोज पर देख कर गुस्सा किया.
देश में कही नम आँखों में श्रद्धांजलि थी, कही मौन शोक संवेदनाएं तो कही क्षोभ कि क्यों अब तक कसाब को देश का मेहमान बना कर उसकी मिजाजपुर्सी की जा रही है. देश का नागरिक आज भी अच्छी तरह से जानता है कि देश में फ़ोर्स वन बन जाने से देश का नागरिक कोई विशेष सुरक्षित नहीं हुआ है. फ़ोर्स वन उन खामियों को शायद कुछ हद तक कम कर सके जो चुक २६/११ के हमले में आतंकियों से लोहा लेते समय हमारे सुरक्षा बलों से हुई थी. शायद इनके पास स्वचालित हथियार भी हो (वो बात अलग है कि जरुरत के वक़्त वे हथियार चलने लायक पाए जाते है या नहीं). लेकिन तब तक आतंकवादी अब इनसे एक कदम और आगे बढ़ चुके होंगे. ये चूहे बिल्ली का खेल यूँ ही चलता रहेगा. आम आदमी की बलि चढ़ेगी और नेता लोग सुरक्षा के नाम पर दोनों हाथो से लुटते हुए, अनाप शनाप पैसा बनाने का कोई मौका नहीं छोड़ेंगे.

२६/११ की बरसी के ठीक एक दिन पहले, 17 वर्षों की जाँच और 48 बार अवधि बढ़ने के बाद अंतत , ये लिब्रहान नाम का एक भुत, जिन्न की तरह बोतल से बहार निकल कर आ गया. लिब्राहन के इस भुत के बहार आने के समय पर कई अटकले लगाईं जा रही है. जब यह रिपोर्ट आई तब बिखरे हुए विपक्ष ने गन्ना किसानों के मामले में गज़ब का समन्वय दिखा रहे था और सभी दल एक स्वर में बोल रहे थे. मधु कोड़ा के भ्रष्टाचार का मामला झारखंड चुनावों के बीच छाया था, साथ ही स्पेक्ट्रम घोटाला भी केंद्र का सिरदर्द बना हुआ था. चूँकि ये रिपोर्ट जून में जस्टिस लिबरहान ने सरकार को सौंपी थी. फिर सरकार ने ये रिपोर्ट पिछले सत्र में क्यों पेश नहीं की. नवम्बर के सत्र के शुरु होते ही इसे क्यों नहीं पेश किया गया. ये सवाल बेशक सोचने पर मजबूर कर देते है. इस रिपोर्ट में भी कई रहस्यमय बाते भी है. उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव अतुल गुप्ता ने हाई कोर्ट में हलफ़नामा देकर कहा था कि अयोध्या विवाद से जुडी 23 फा़इलें गृह विभाग के एक विशेष कार्याधिकारी सुभाष भान साध के पास थीं जिनकी मृत्यु हो चुकी है और ये फाइले गुम हो गई है. खोजबीन करने पर से पता चलता है कि सुभाष भान साध की मृत्यु 30 अप्रैल 2000 को दिल्ली में जिस कथित रेल दुर्घटना में हुई थी उस पर उनके परिवार ने संदेह ज़ाहिर करते हुए सुनियोजित हत्या का आरोप लगाया था. सुभाष ने अस्पताल में अपने रिश्तेदारों को बताया था कि उसे दिल्ली स्थित तिलक ब्रिज स्टेशन के पास चलती ट्रेन से धक्का दिया गया था. हाईकोर्ट ने दिल्ली पुलिस को पूरे मामले की जांच के आदेश दिए थे. लेकिन अभी तक दिल्ली पुलिस की रिपोर्ट नही आई है. दूसरी और जहाँ रिपोर्ट में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को दोषी ठहराया गया है वही कमीशन के अधिकारियो का कहना है कि वाजपेयी को कभी भी कमीशन ने पूछताछ के लिए तलब ही नहीं किया फिर उन्हें दोषी कैसे ठहराया जा सकता है.
अभी आम आदमी इन उलझी हुई गुत्थियों के बारे में कुछ सोचे इससे पहले २/३ दिसम्बर की वो भयावह रात आ गई जिसे आप और हम भोपाल गैस त्रासदी के नाम से जानते है. आज से पच्चीस साल पहले सन १९८४ में, दिसंबर की उस सर्द आधी रात में बेख़बर सो रहे भोपाल के बेगुनाह और मासूम लोगों को, कार्बाइड का ज़हर जिसे मिथाइल आइसोसाइनेट भी कहते है ने इंसानों को कीट-पतंगों की तरह मारकर, हजारो हँसते खेलते व्यक्तियों को लील लिया था. भोपाल गैस दुर्घटना में मरने वालों की संख्या 25 वर्षों में बढ़कर न जाने कितनी हो गई है. मगर 25 साल में कही कोई इंसाफ़ नहीं हो पाया है और अब तक एक भी गुनहगार को सज़ा नहीं हुई है.
भोपाल के वरिष्ट पत्रकार श्री राजकुमार केसवानी जी ने, इस दुर्घटना के करीब तीन साल पहले, नौ महीने की जी-तोड़ कोशिशों के बाद ये पाया था कि कार्बाइड का वह कारखाना एक बिना ब्रेक की गाड़ी की तरह चल रहा था. सुरक्षा के सारे नियमों की धज्जियां उड़ाता हुआ. १९ सितंबर, १९८२ को उन्होंने अपने साप्ताहिक अख़बार ‘रपट’ में लिखा ‘बचाइए हुज़ूर, इस शहर को बचाइए’. एक अक्तूबर को फिर लिखा ‘भोपाल ज्वालामुखी के मुहाने पर’. आठ अक्तूबर तो चेतावनी दी ‘न समझोगे तो आख़िर मिट ही जाओगे.’ जब देखा कोई इस संभावना को गंभीरता से नहीं ले रहा तो तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह को पत्र लिखा और सर्वोच्च न्यायालय से भी दख़ल देकर लोगों की जान बचाने का आग्रह किया. देश में आज तक आम आदमी के लिए कुछ हुआ है जो अब होता. नतीजा वही ढाक के तीन पात. अफ़सोस न कुछ होना था, और न ही कुछ. हाँ, हुआ तो बस इतना कि विधानसभा में सरकार ने इस ख़तरे को ही झुठला दिया और कार्बाइड को बेहतरीन सुरक्षा व्यवस्था वाला कारखाना क़रार दिया. उन्होंने फिर हिम्मत जुटाई और 16 जून, 1984 को देश के प्रमुख हिन्दी अख़बार ‘जनसत्ता’ में फिर यही मुद्दा उठाया. एक बार फिर सेइसकी अनदेखी हुई.

अभी भोपाल गैस त्रासदी को शायद दो तीन दिन लोग याद रखेंगे तब तक "बाबरी मस्जिद" को ढहाने के पंद्रह साल पुरे हो जायेंगे. उसके पीछे पीछे ११ दिसम्बर को संसद पर हुए हमले की बरसी आजाएगी.

तो कुल मिला कर सोचने वाली बात ये है कि असल में देश में आम आदमी का दुश्मन कौन है. क्या वो दुश्मन पाकिस्तान है, कसाब है, यूनियन कार्बाइड है, नेता है, हरामखोर सरकारी अफसर और बाबु है, समाज है, (अ)न्याय पालिका या (अ)न्याय की कुर्सी पर मरे हुए एक मूर्ति की तरह बैठे हुए ये तथाकथित न्यायमूर्ति है. आखिर हमारा असली दुश्मन है तो है कौन. मेरा मानना है कि ये उपरोक्त सब तो केवल कारण है जो हमारी उदासीनता का फायदा उठा कर हमारा इस्तेमाल कर रहे है. हमारा असली दुश्मन और कोई नहीं बल्कि हमारी अपनी अनुरागहीनता (उदासीनता) है

देश में कही भी कोई भी आदमी अपना काम निकलवाने के लिए रिश्वत देने में संकोच नहीं करता. अभी भी सन १८०० के कानून और १९५० के समय से चल रही फाइलों में रिकॉर्ड रखे जाते है हेराफेरी आसानी से हो सके. आम जनता बैठ कर तमाशा देखती है.आज पढ़ा लिखा आदमी वोट देने नहीं जाता क्योंकि वो इतना त्रस्त हो चूका है कि उसे लगता है कुछ बदलने वाला नहीं. वो चुनाव के दिन को छुट्टी का दिन मान कर वोट देने के बजाये पिकनिक जाना या घर पर आराम करना पसंद करता है. वोट देने वाले अक्सर वोट बैंक होते है जिनको आसानी से नोट या जात पांत का लालच दे कर ख़रीदा जा सकता है. ये ही कारण है की आज राजनीति में गुंडे मवाली आ गए है और जब गंजो के सर नाख़ून उग आये तो फिर तो "भारत भाग्य विधाता" के अलावा और कुछ गाया भी नहीं जा सकता है. उदासीनता के हालत ये है कि आदमी अपनी और अपने परिवार का पेट भरने के अलावा और कुछ न सोचता है और न ही सोचना चाहता है. वो ये मानने को तैयार नहीं है की अगर एक अच्छे समाज की नीव रख दी जायेगी तो उसकी और उसके आने वाली पीढ़ी की कई मुसीबते स्वत ही ख़त्म होजाएँगी.

भ्रष्टाचार और हम

जुलाई से सितंबर २००९ (2009) यानि वित्तीय वर्ष की दूसरी तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था ७.९ (7.9) प्रतिशत की दर से बढ़ी. ये दर अब तक घोषित ६.३ (6.3) प्रतिशत सालाना वृद्धि के अनुमान से कहीं ज़्यादा है. सरकार के मुताबिक ये ग़ौरतलब है कि ये वृद्धि दर पिछले चार दशकों के सबसे ख़राब मॉनसून और कमज़ोर कृषि क्षेत्र के बावजूद है. यहाँ कितनी आसानी से सरकार ने बाहरी कारणों को तो गिना दिया पर ये बतलाना भूल गए की, अगर आम आदमी एक बार के लिए केंद्रीय बैंक की ब्याज दर आदि जटिल वाणिज्यिक पैमानों को भूल भी जाए तो ये कैसे भूल सकता है की इस ७.९ प्रतिशत पर बढ़ रही अर्थव्यवस्था में उसका पसीने का योगदान शामिल है. और अगर देश में कोढ़ की तरह व्याप्त भ्रष्टाचार को निकाल दे तो ये दर कहाँ से कहाँ पहुंच सकती है.

देश की अर्थव्यवस्था ७.९ (7.9) प्रतिशत की दर से बड़ी है तो केवल देश वासियों का और आम आदमी के योगदान के कारण. ये तरक्की वोट बैंक या जात पांत के नाम पर बरगला कर वोट लुटने वाले लुटेरो के बूते पर कतई नहीं हुई है. उन सब ने तो देश को जो चुना लगाया है उनको देख और सुन कर इन्सान तो क्या अगर भगवान् भी कही हो तो रो पड़ेगा.

आउटलुक पत्रिका में छपे एक लेख के अनुसार देश में १९९२ से अब तक देश में ७३ (73) लाख करोड़ रूपये भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गए है. ये धांधली का पैसा हमारे देश के ५३ (53) लाख करोड़ के सकल घरेलु उत्पाद से २७% (27%) ज्यादा है. भ्रष्टाचार के प्रति हम लगभग पूर्ण रूप से उदासीन है और देश ने आज इस कैंसर रूपी रोग के साथ रहना अपनी नियति मान लिया है. लेकिन अगर इस पैसे का सही जगह उपयोग होता तो शायद देश की तस्वीर ही कुछ और होती. क्या आप जानते है भ्रष्टाचार के इतने पैसे से :

देश में तीस लाख रूपये के लागत से २.४ (2.4) करोड़ प्राथमिक चिकित्सा केंद्र खोले जा सकते थे. यानि देश के हर गाँव में ३ चिकित्सा केंद्र.

पांच लाख रूपये प्रत्येक की लागत से १४.६ (14.6) करोड़ निम्न / मध्य वर्गीय मकान बन सकते थे.

३.०२ (3.02) करोड़ रुपयों की लागत से २४.१ (24.1) केंद्रीय विद्यालय बन सकते थे जिसमे प्रत्येक में कक्षा छ से बारह तक के दो खंड या सेक्शन हो सकते थे.

सम्पूर्ण भारत देश के परिधि को ९७ (97) बार चक्कर काटते हुए १४.६ (14.6) लाख किलोमीटर की सड़क बन सकती थी.

हर साल १,२०० (1,200) करोड़ रूपये व्यय करके, देश की पचास प्रमुख नदियों की अगके १२१ (121) सालो तक सफाई हो सकती थी.

२,७०० (2,700) करोड़ रूपये के लागत से ६०० (600) मेगा वाट के २,७०३ (2,703) कोयले के पॉवर प्लांट लग सकते थे.

८१,१११ (81,111) करोड़ रूपये खर्च करके, ९० (90) नारेगा जैसी योजनाये चलाई जा सकती थी.

६०,००० (60,000) करोड़ रूपये खर्च करके, देश के सारे किसानो के ऋण १२१ (121) बार माफ़ किये जा सकते थे.

देश के प्रत्येक नागरिक को करीब ५६,००० (56,000) रूपये दिए जा सकते थे. या या फिर गरीबी की रेखा के नीचे रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को एक लाख अस्सी हज़ार रूपये दिए जा सकते थे.

७० (70) करोड़ लोगो को ७० (70) करोड़ नैनो दी जा सकती थी या २८० (280) करोड़ लैपटॉप बांटे जा सकते थे.


झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा को प्रवर्तन निदेशालय, सतर्कता विभाग और आय कर विभाग के संयुक्त दल का कोड़ा चल चूका है. १९९० (1990) में एक खदान मजदूर रहे इस आदमी ने जिस पैमाने पर भ्रष्टाचार किया है उसे देखते हुए तो इसे देशद्रोही करार देना चाहिए और देशद्रोहियों को मिलने वाली सजा से भी बदतर अगर कोई सजा हो तो वो इसे मिलनी चाहिए. पर अगर गौर से देखा और सोचा जाए तो ये तो देश में व्यप्त भर्ष्टाचार के समुद्र की एक छोटी सी मछली है. इस मछली के पकड़ में आने का एक कारण ये है की इसे देश की बड़ी या छोटी, राष्ट्रीय या प्रादेशिक पार्टी का वरद हस्त नहीं प्राप्त है. इसके समक्ष और इससे कई बड़ी बड़ी मछलियाँ कृषि मंत्री, क्रिकेट बोर्ड का अध्यक्ष, पूर्व रेल मंत्री, पूर्व रक्षा मंत्री, आन्ध्र प्रदेश, बिहार जैसे राज्यों के पूर्व मुख्यमंत्री या उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बन कर देश के कई हज़ार करोड़ रूपये डकार चुकी है. ये इन्सान के भेष में कुछ ऐसे आदमखोर है जिनका आम जनता से लेकर सत्ता के गलियारों में सबको पता है, नहीं पता है तो बस केवल कानून को. कानून अपनी आँख पर काली पट्टी बांध कर के अँधा होने का नाटक कर रहा है और ये काले कारनामे कर के देश को गर्त में धकेल रहे है.

खदान मजदुर से लेकर सत्ता के शिखर पर और अब सलाखों तक का सफ़र के दरमयान २००३ से २००६ तक झारखण्ड का खनन मंत्री और राज्य की खनन सम्पदा का नियंत्रक मधु कोड़ा पर दो हज़ार करोड़ से अधिक की सम्पति बनाने का आरोप है. मधु के नजदीकी मनोज पुनमिया ने मुंबई स्थित बालाजी बुलीयों बाज़ार नाम की कंपनी के यूनियन बैंक ऑफ़ इंडिया खातो में २००८ और २००९ में करीब एक हज़ार करोड़ रूपये जमा करवाए जिसमे से पांच सौ करोड़ रूपये नकद जमा करवाए गए. देखा जाए तो कोड़ा के अवैध दो हज़ार करोड़ रूपये तो कोई बड़ी बात होनी ही नहीं बात चाहिए, क्योंकि झारखण्ड की खानों में सालाना आठ हज़ार करोड़ रुपयों का अवैध खनन होता है.

वैसे जब खुद को बांटने की बात आती है तो हम इन नेताओ के आदेश अनुसार खुद को उत्तर, दक्षिण भारतीय, मराठी, राजस्थानी, गुजरती आदि आदि मान लेते है है पर देश के नेता बंटते नहीं ये सब एक जैसे ही हरामखोर है. खनन से देश का हनन करने में अगर मधु कोड़ा उत्तर में है तो दक्षिण के आंध्र प्रदेश के खदान मालिक और राज्य पर्यटन मंत्री जनार्धन रेड्डी और गाली रेड्डी इससे एक कदम आगे ही है. हाल ही में आंध्र प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने एक बड़ा फैसला लेते हुए उनकी तीन खदानों से कच्चे लोहे के खनन पर रोक लगा दी है. ये खदानें आंध्र प्रदेश के अनंतपुर ज़िले में स्थित हैं जो कि कर्नाटक के बेल्लारी ज़िले से सटा हुआ है. वैसे तो इन पर अवैध खनन कर के सरकारी खजाने को कई सौ करोड़ रुपए का चूना लगाने के आरोप काफी समय से लग रहे हैं लेकिन अब तक इन आरोपों के आधार पर सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की. सरकार की खामोशी का रहस्य यह था की राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री वाईएस राजशेखर रेड्डी, जनार्धन रेड्डी के करीबी मित्र थे और और मुख्यमंत्री के परिवार के व्यापारिक हित भी इनकी कई कंपनियों से जुड़े हुए है.

ये रेड्डी बंधुओ ने आंध्र प्रदेश के कडापा जिले के जमालादुगु मंडल में ६,८५० (6,850) करोड़ (छ हज़ार आठ सौ पचास करोड़) रूपये की लागत से स्टील प्लांट बना रहे है. खास बात ये है की इस परियोजना पर अब तक करीब १,५०० (1,500) करोड़, (एक हज़ार पांच सौ करोड़) रूपये खर्च हो चुके है लेकिन न तो रेड्डी बंधुओ ने कोई बैंक से लोन लिया है और न ही इस परियोजना का बाज़ार में अब तक कोई पब्लिक इश्यु आया है. सही मायनों में ये काले पैसे को सफ़ेद करने की कवायद हो रही है.

एक कहावत है, यथा राजा तथा प्रजा. ठीक उसी तर्ज पर, नेता तो नेता सरकारी अफसर, बाबु जिसे जहाँ मौका मिलता है देश को चुना लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ता. हाल ही में दिल्ली सरकार ने अपने कर्मचारियों की उपस्थिति दर्ज करने के लिए बायोमिट्रिक प्रणाली लागू की. इस प्रणाली के लागु होते ही पता चला की सरकार ऐसे २२,८५३ (22,853) कर्मचारियों को तनख़्वाह दे रही है जिनका वजूद ही नहीं है. दिल्ली के मेयर कंवर सेन के अनुसार इन काल्पनिक कर्मचारियों की तनख़्वाह कुल मिलाकर सरकार को दो सौ करोड़ रूपये से ज्यादा चुना लगाया जा रहा था. कहा जा रहा है की अब मामले की जांच चल रही है और जैसा की हमेशा होता आया है ये अंतहीन जांच बिना किसी परिणाम के सदैव चलती ही रहेगी.

देश में एक आम आदमी (या आजकल महानगरो के परिवार में दम्पति) क्या केवल इसलिए मेहनत करते है की इस मेहनत की मलाई नेता लोग खाए, भ्रष्टाचार में उड़ायें और उस मेहनतकश व्यक्ति को केवल खुरचन खा कर के जिन्दा रहना पड़े. इतनी हाड तोड़ मेहनत करने के बाद भी उसे बुनियादी जरुरत पूरी हो बस इतनी ही जिन्दगी मिले और हरामखोर लोग उस आम आदमी का पांच साल में एक बार हाथ जोड़ कर उससे उसका वोट ले कर गुलछर्रे उडाये.

अगर दुसरे नजरिये से देखा जाए तो शायद हम खुद ही इसके जिम्मेवार है. आज आम आदमी अपनी जिन्दगी में इतना उलझ गया है, वो अपनी जरूरतों को पूरा करने में इतना तल्लीन हो गया है की वो समाज, संसार और भविष्य के प्रति उदासीन हो गया है. उसे अपना भविष्य अपने बच्चो के भविष्य की चिंता है लेकिन वो ये नहीं सोचता की अगर उसके आस पास का गन्दा भ्रष्ट माहौल उसकी अंतरात्मा और उसके परिवार पर कितना असर डाल रहा है. यदि वो केवल अपने परिवार के भविष्य की बात छोड़ कर माहौल बदलने की तरफ प्रत्यन करे तो शायद देश का भविष्य कुछ और ही होगा.