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भ्रष्टाचार और हम

जुलाई से सितंबर २००९ (2009) यानि वित्तीय वर्ष की दूसरी तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था ७.९ (7.9) प्रतिशत की दर से बढ़ी. ये दर अब तक घोषित ६.३ (6.3) प्रतिशत सालाना वृद्धि के अनुमान से कहीं ज़्यादा है. सरकार के मुताबिक ये ग़ौरतलब है कि ये वृद्धि दर पिछले चार दशकों के सबसे ख़राब मॉनसून और कमज़ोर कृषि क्षेत्र के बावजूद है. यहाँ कितनी आसानी से सरकार ने बाहरी कारणों को तो गिना दिया पर ये बतलाना भूल गए की, अगर आम आदमी एक बार के लिए केंद्रीय बैंक की ब्याज दर आदि जटिल वाणिज्यिक पैमानों को भूल भी जाए तो ये कैसे भूल सकता है की इस ७.९ प्रतिशत पर बढ़ रही अर्थव्यवस्था में उसका पसीने का योगदान शामिल है. और अगर देश में कोढ़ की तरह व्याप्त भ्रष्टाचार को निकाल दे तो ये दर कहाँ से कहाँ पहुंच सकती है.

देश की अर्थव्यवस्था ७.९ (7.9) प्रतिशत की दर से बड़ी है तो केवल देश वासियों का और आम आदमी के योगदान के कारण. ये तरक्की वोट बैंक या जात पांत के नाम पर बरगला कर वोट लुटने वाले लुटेरो के बूते पर कतई नहीं हुई है. उन सब ने तो देश को जो चुना लगाया है उनको देख और सुन कर इन्सान तो क्या अगर भगवान् भी कही हो तो रो पड़ेगा.

आउटलुक पत्रिका में छपे एक लेख के अनुसार देश में १९९२ से अब तक देश में ७३ (73) लाख करोड़ रूपये भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गए है. ये धांधली का पैसा हमारे देश के ५३ (53) लाख करोड़ के सकल घरेलु उत्पाद से २७% (27%) ज्यादा है. भ्रष्टाचार के प्रति हम लगभग पूर्ण रूप से उदासीन है और देश ने आज इस कैंसर रूपी रोग के साथ रहना अपनी नियति मान लिया है. लेकिन अगर इस पैसे का सही जगह उपयोग होता तो शायद देश की तस्वीर ही कुछ और होती. क्या आप जानते है भ्रष्टाचार के इतने पैसे से :

देश में तीस लाख रूपये के लागत से २.४ (2.4) करोड़ प्राथमिक चिकित्सा केंद्र खोले जा सकते थे. यानि देश के हर गाँव में ३ चिकित्सा केंद्र.

पांच लाख रूपये प्रत्येक की लागत से १४.६ (14.6) करोड़ निम्न / मध्य वर्गीय मकान बन सकते थे.

३.०२ (3.02) करोड़ रुपयों की लागत से २४.१ (24.1) केंद्रीय विद्यालय बन सकते थे जिसमे प्रत्येक में कक्षा छ से बारह तक के दो खंड या सेक्शन हो सकते थे.

सम्पूर्ण भारत देश के परिधि को ९७ (97) बार चक्कर काटते हुए १४.६ (14.6) लाख किलोमीटर की सड़क बन सकती थी.

हर साल १,२०० (1,200) करोड़ रूपये व्यय करके, देश की पचास प्रमुख नदियों की अगके १२१ (121) सालो तक सफाई हो सकती थी.

२,७०० (2,700) करोड़ रूपये के लागत से ६०० (600) मेगा वाट के २,७०३ (2,703) कोयले के पॉवर प्लांट लग सकते थे.

८१,१११ (81,111) करोड़ रूपये खर्च करके, ९० (90) नारेगा जैसी योजनाये चलाई जा सकती थी.

६०,००० (60,000) करोड़ रूपये खर्च करके, देश के सारे किसानो के ऋण १२१ (121) बार माफ़ किये जा सकते थे.

देश के प्रत्येक नागरिक को करीब ५६,००० (56,000) रूपये दिए जा सकते थे. या या फिर गरीबी की रेखा के नीचे रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को एक लाख अस्सी हज़ार रूपये दिए जा सकते थे.

७० (70) करोड़ लोगो को ७० (70) करोड़ नैनो दी जा सकती थी या २८० (280) करोड़ लैपटॉप बांटे जा सकते थे.


झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा को प्रवर्तन निदेशालय, सतर्कता विभाग और आय कर विभाग के संयुक्त दल का कोड़ा चल चूका है. १९९० (1990) में एक खदान मजदूर रहे इस आदमी ने जिस पैमाने पर भ्रष्टाचार किया है उसे देखते हुए तो इसे देशद्रोही करार देना चाहिए और देशद्रोहियों को मिलने वाली सजा से भी बदतर अगर कोई सजा हो तो वो इसे मिलनी चाहिए. पर अगर गौर से देखा और सोचा जाए तो ये तो देश में व्यप्त भर्ष्टाचार के समुद्र की एक छोटी सी मछली है. इस मछली के पकड़ में आने का एक कारण ये है की इसे देश की बड़ी या छोटी, राष्ट्रीय या प्रादेशिक पार्टी का वरद हस्त नहीं प्राप्त है. इसके समक्ष और इससे कई बड़ी बड़ी मछलियाँ कृषि मंत्री, क्रिकेट बोर्ड का अध्यक्ष, पूर्व रेल मंत्री, पूर्व रक्षा मंत्री, आन्ध्र प्रदेश, बिहार जैसे राज्यों के पूर्व मुख्यमंत्री या उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बन कर देश के कई हज़ार करोड़ रूपये डकार चुकी है. ये इन्सान के भेष में कुछ ऐसे आदमखोर है जिनका आम जनता से लेकर सत्ता के गलियारों में सबको पता है, नहीं पता है तो बस केवल कानून को. कानून अपनी आँख पर काली पट्टी बांध कर के अँधा होने का नाटक कर रहा है और ये काले कारनामे कर के देश को गर्त में धकेल रहे है.

खदान मजदुर से लेकर सत्ता के शिखर पर और अब सलाखों तक का सफ़र के दरमयान २००३ से २००६ तक झारखण्ड का खनन मंत्री और राज्य की खनन सम्पदा का नियंत्रक मधु कोड़ा पर दो हज़ार करोड़ से अधिक की सम्पति बनाने का आरोप है. मधु के नजदीकी मनोज पुनमिया ने मुंबई स्थित बालाजी बुलीयों बाज़ार नाम की कंपनी के यूनियन बैंक ऑफ़ इंडिया खातो में २००८ और २००९ में करीब एक हज़ार करोड़ रूपये जमा करवाए जिसमे से पांच सौ करोड़ रूपये नकद जमा करवाए गए. देखा जाए तो कोड़ा के अवैध दो हज़ार करोड़ रूपये तो कोई बड़ी बात होनी ही नहीं बात चाहिए, क्योंकि झारखण्ड की खानों में सालाना आठ हज़ार करोड़ रुपयों का अवैध खनन होता है.

वैसे जब खुद को बांटने की बात आती है तो हम इन नेताओ के आदेश अनुसार खुद को उत्तर, दक्षिण भारतीय, मराठी, राजस्थानी, गुजरती आदि आदि मान लेते है है पर देश के नेता बंटते नहीं ये सब एक जैसे ही हरामखोर है. खनन से देश का हनन करने में अगर मधु कोड़ा उत्तर में है तो दक्षिण के आंध्र प्रदेश के खदान मालिक और राज्य पर्यटन मंत्री जनार्धन रेड्डी और गाली रेड्डी इससे एक कदम आगे ही है. हाल ही में आंध्र प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने एक बड़ा फैसला लेते हुए उनकी तीन खदानों से कच्चे लोहे के खनन पर रोक लगा दी है. ये खदानें आंध्र प्रदेश के अनंतपुर ज़िले में स्थित हैं जो कि कर्नाटक के बेल्लारी ज़िले से सटा हुआ है. वैसे तो इन पर अवैध खनन कर के सरकारी खजाने को कई सौ करोड़ रुपए का चूना लगाने के आरोप काफी समय से लग रहे हैं लेकिन अब तक इन आरोपों के आधार पर सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की. सरकार की खामोशी का रहस्य यह था की राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री वाईएस राजशेखर रेड्डी, जनार्धन रेड्डी के करीबी मित्र थे और और मुख्यमंत्री के परिवार के व्यापारिक हित भी इनकी कई कंपनियों से जुड़े हुए है.

ये रेड्डी बंधुओ ने आंध्र प्रदेश के कडापा जिले के जमालादुगु मंडल में ६,८५० (6,850) करोड़ (छ हज़ार आठ सौ पचास करोड़) रूपये की लागत से स्टील प्लांट बना रहे है. खास बात ये है की इस परियोजना पर अब तक करीब १,५०० (1,500) करोड़, (एक हज़ार पांच सौ करोड़) रूपये खर्च हो चुके है लेकिन न तो रेड्डी बंधुओ ने कोई बैंक से लोन लिया है और न ही इस परियोजना का बाज़ार में अब तक कोई पब्लिक इश्यु आया है. सही मायनों में ये काले पैसे को सफ़ेद करने की कवायद हो रही है.

एक कहावत है, यथा राजा तथा प्रजा. ठीक उसी तर्ज पर, नेता तो नेता सरकारी अफसर, बाबु जिसे जहाँ मौका मिलता है देश को चुना लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ता. हाल ही में दिल्ली सरकार ने अपने कर्मचारियों की उपस्थिति दर्ज करने के लिए बायोमिट्रिक प्रणाली लागू की. इस प्रणाली के लागु होते ही पता चला की सरकार ऐसे २२,८५३ (22,853) कर्मचारियों को तनख़्वाह दे रही है जिनका वजूद ही नहीं है. दिल्ली के मेयर कंवर सेन के अनुसार इन काल्पनिक कर्मचारियों की तनख़्वाह कुल मिलाकर सरकार को दो सौ करोड़ रूपये से ज्यादा चुना लगाया जा रहा था. कहा जा रहा है की अब मामले की जांच चल रही है और जैसा की हमेशा होता आया है ये अंतहीन जांच बिना किसी परिणाम के सदैव चलती ही रहेगी.

देश में एक आम आदमी (या आजकल महानगरो के परिवार में दम्पति) क्या केवल इसलिए मेहनत करते है की इस मेहनत की मलाई नेता लोग खाए, भ्रष्टाचार में उड़ायें और उस मेहनतकश व्यक्ति को केवल खुरचन खा कर के जिन्दा रहना पड़े. इतनी हाड तोड़ मेहनत करने के बाद भी उसे बुनियादी जरुरत पूरी हो बस इतनी ही जिन्दगी मिले और हरामखोर लोग उस आम आदमी का पांच साल में एक बार हाथ जोड़ कर उससे उसका वोट ले कर गुलछर्रे उडाये.

अगर दुसरे नजरिये से देखा जाए तो शायद हम खुद ही इसके जिम्मेवार है. आज आम आदमी अपनी जिन्दगी में इतना उलझ गया है, वो अपनी जरूरतों को पूरा करने में इतना तल्लीन हो गया है की वो समाज, संसार और भविष्य के प्रति उदासीन हो गया है. उसे अपना भविष्य अपने बच्चो के भविष्य की चिंता है लेकिन वो ये नहीं सोचता की अगर उसके आस पास का गन्दा भ्रष्ट माहौल उसकी अंतरात्मा और उसके परिवार पर कितना असर डाल रहा है. यदि वो केवल अपने परिवार के भविष्य की बात छोड़ कर माहौल बदलने की तरफ प्रत्यन करे तो शायद देश का भविष्य कुछ और ही होगा.

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