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गरीब देशवासियों के अमीर नेता

भारत को अंग्रेजो से आजाद हुए अब छ दशक से ज्यादा हो चुके है. आज अंग्रेजो से मिली हुई आजादी के छ दशक के बाद भी देश खुद को आजाद कराने के लिए तड़प रहा है. गोरी चमड़ी से तो देश को आजादी मिली पर गोरो की दी हुई मानसिकता से हम आजाद नहीं हो पाए.

देश की दलगत वाली दलदल की राजनीति में अब सब तरफ़ कीचड़ ही कीचड़ नज़र आता है. वोट मांगने वाले दल दलदल में फंसे है और वोट देने वाले जाती के भंवर में. आगे बढ़ने से पहले एक कवि की कुछ पंक्तिया याद आ रही है.
कोई साधू संत नही है राजनीति की ड्योढी पर, अपराधी तक आ बैठे है माँ संसद की सीढ़ी पर. गुंडे तस्कर, चोर, माफिया, सीना, ताने खड़े हुए, जिनको जेलों में होना था वो संसद में खड़े हुए. डाकू नेता साथ मिले है राजनीति के जंगल में, कोई फर्क नही लगता है अब संसद और चम्बल में. कोई फर्क नही पड़ता है हम किसको जितवाते है, संसद तक जाते जाते ये सब डाकू बन जाते है.

इस मानसिकता का नतीजा ये हो गया है की देश के सर्वोच्च स्थानों पर अपराधियों की तूती बोलती है और आम आदमी देश के राष्ट्रपिता गाँधी का बन्दर बन कर रह गया है, जो कुछ भी सच कहने, देखने या सुनने को आजाद नहीं है.

आइये कुछ झलक देखे, कि ये देश के कर्णधार जिनके हाथो में देश की पतवार है वो देश को किस कदर डुबाने में लगे हुए है.
  • हाल ही में लोकसभा के लिए पहले चरण के चुनाव में जिन 124 सीटों के लिए जो मतदान हुए उनमें करीब एक तिहाई सीटों पर दो या तीन उम्मीदवारों के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं. पहले चरण के तहत 11 राज्यों में 1440 उम्मीदवारों में से 222 अथवा करीब 16 प्रतिशत प्रत्याशियों के खिलाफ गंभीर आरोप हैं और 21 के खिलाफ हत्या के आरोप हैं। जबकि 38 के खिलाफ हत्या का प्रयास तथा 14 के खिलाफ अपहरण का आरोप है।
  • एक गैर सरकारी संगठन नेशनल इलेक्शन वाच ने अपनी एक रिपोर्ट में कहाँ गया है कि दिल्ली, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मिजोरम के 549 जनप्रतिनिधियों में से 125 का अपराधिक रिकॉर्ड है। यानि हर पांचवे विधायक के कुर्ते पर दाग है। इन राज्यों में चुनावी फतह करने वालो में चालीस प्रतिशत विधायक करोड़पति है। यानि आज चुनाव जीतने में धन और बाहुबल दोनों ही काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।
  • दिल्ली के विधायको के द्वारा चुनाव आयोग को दी गई जानकारी के अनुसार कांग्रेस के 42 में से 24 विधायक, भाजपा के 23 में से 19 विधायक, बसपा के दोनों और राष्ट्रीय लोक दल का इकलौता विधायक की सम्पति एक करोड़ से ज्यादा है. कुल 31 प्रतिशत जनप्रतिनिधियों की सम्पति पांच करोड़ से भी ज्यादा है, 29 जनप्रतिनिधियो के नाम दिल्ली या उसके आस पास खेती के लिए जमीन है और 12 जनप्रतिनिधि ऐसे है जिनके पास एक करोड़ की सम्पति है पर कर नहीं है.
  • मध्य प्रदेश में 12 ऐसे करोड़पति विधायक है जिनके पास PAN नंबर ही नहीं है यानि की टैक्स या कर से उनका कोई लेना देना नहीं है.
  • विधायक करोड़ और देश के सांसद अब सौ करोड़ या उसे ऊपर के आसामी की श्रेणी में आते है.
आज ये देश अपने आप को प्रजातंत्र इसीलिए मान रहा है क्योंकि यहाँ समय समय पर चुनाव होते रहते हैं, चाहे स्कूल हो या न हो, शिक्षा का दूर दूर से वास्ता न हो, चिकित्सा सुविधा बिलकुल न हो लेकिन चुनाव ज़रूर हो. सारे छंटे हुए बदमाश गुंडे नेता बन कर सकारी सहुलियतों को भोगे, नौकरशाह जिनको जनता के काम करने के लिए पैसे मिलते है वो इन नेताओ के तलुवे चाटे, अदालत में सवा सौ साल से लंबित मामले निपटाए नहीं जा सके, लोगो को न्याय के नाम पर परेशानी के सिवा कुछ नहीं मिले लेकिन लोकतंत्र की रक्षा करने के लिए चुनाव समय पर हो.
क्या देश के लिए लोकतंत्र में चुनाव करवाना जरुरी है या फिर जनता के लिए बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध करवाना. क्या अपराधियों को जेल की सलाखों के पीछे भेजना चाहिए या उन्हें नेता बना कर उनका सम्मान करना चाहिए. अब आप ही सोचिये क्या हम इस देश की जनता सचमुच लोकतंत्र लोकतंत्र खेलने की समझ रखती है.

गिरते पारिवारिक मूल्य और गर्त में जाता हिन्दू समाज

हमारा समाज आज एक बेहद ही संवेदनहीन परिवर्तन से गुजर रहा है. हर बार की तरह इसका पूरा श्रेय भारत के राजनेता, नौकरशाह और तथाकथित न्याय प्रणाली को जाता है. कहते है हमारे में से कई के पूर्वजो ने दलितों पर अत्याचार किये थे इसलिए अब दलितों को आज सामान्य वर्ग पर अत्याचार करने का अधिकार है. जी हाँ कानून ने इस भस्मासुर को आरक्षण का नाम दिया है जिसे राजनेता अपनी कुर्सी पर फेविकोल की तरह लगा कर बैठे है. कितने प्रतिशत सचमुच के दलितों और गरीबो का भला हुआ ये देश में कैंसर की तरह फैली हुई झुग्गी झोपडियां बयां करती है. एक दलित के भले पर दस अन्य को नुकसान उठाना पड़ा. खैर आज इस मुद्दे पर नहीं बल्कि इसी तरह का एक और भस्मासुर जो भारत सरकार की ही दें है उस पर चर्चा करेंगे. इस मुद्दे पर अगली तारीख देकर इसको फिर किसी दिन के लिए मुल्तवी कर दिया जाता है. जी हाँ आज में बात कर रहा हूँ उस कानून की जिसे बनाया तो सरकार ने घर बचाने के लिए था लेकिन इसने जितने घर तोडे है उसकी गिनती ही नहीं हो सकती है।

जी हाँ आपने सही पहचाना में IPC-498 A की ही बात कर रहा हूँ । दजेह हत्याओ जैसी घिनौनी बीमारी को रोकने के लिए ये कानून एक ऐसी दवा है जिसका साइड इफेक्ट बीमारी से कही ज्यादा खतरनाक है इसमे कोई दो राय नही की दहेज़ हत्या समाज के लिए एक बदनुमा कलंक है पर कानून बना कर इसे धो देना ठीक वैसी ही सोच है जैसे की आँख पर पट्टी बाँध कर रात ये सोच लेना की रात हो गई। इस कानून ने घर में पति पत्नी के बीच छोटे मोटे विवादों पर पेट्रोल का काम किया है। आज ये कानून की बीमारी शहर से मोहल्लो तक आ गई है और वो दिन दूर नहीं जब इस कानून का दुरूपयोग घर घर में होने लगेगा | सुप्रीम कोर्ट तक ने साफ़ कहाँ है की अगर इसी तरह इस कानून का दुरूपयोग होता रहा तो ये एक दिन आतंकवाद का रूप ले लेगा आप ही सोचिये ऐसे में समाज का क्या हश्र होगा उसका भगवान ही मालिक ।

यहाँ मैं से स्पष्ट करना चाहूँगा की मैं महिलाओ के विरोध में नहीं हूँ. मेरा मानना है की "यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते रमन्ते तत्र देवता". नारी केवल पत्नी ही नहीं है जो अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए अपने पति और उसके परिवार को जेल की हवा खिला कर अपने आप को बड़ा बता सके. नारी बहन भी है तो नारी माँ भी. मैं कतई नहीं चाहूँगा की एक भी गुनाहगार को माफ़ी मिले बल्कि मेरी नज़र में उसे कड़े से कड़ा दंड दिया जाना चाहिए, बशर्त की उसने गुनाह किया हो. अगर कानून को इस तरह से लागु किया जाए की न तो कोई अपराधी इसकी गिरफ्त से बचे और न ही किसी निर्दोष को सजा मिले तब जाकर कानून की सार्थकता सिद्ध हो सकती है.

आजकल इस मामले में ज्यादातर लड़की को न्याय दिलाने से कई ज्यादा रूचि उसके ससुराल वालो को फंसने में होती है. इसमें लड़की के माँ बाप सबसे ज्यादा बढ चढ़ कर हिस्सा लेते है और अपनी लड़की को गलत शह देते है. आजकल लड़की वालो के ऊपर ये सोच हावी हो गई है की मेरी बेटी को डांट लगाईं या कुछ कहा या उसके मन माफिक नहीं किया इसलिए इन सबको हवालात की हवा खिलाएंगे. पर वो इतना भी नहीं सोचते की इन सब में उनकी लड़की का जीवन भी तो ख़राब हो रहा है. अदालत, जज और वकील भी जानते है की दल में कहाँ काला है और गलती किस पक्ष की है और कौन किसे फंसा रहा है. पर वो मजबूर है क्योंकि इसे कानून का रूप लोकसभा से पारित करके दिया गया है. फिर हमारी अदालते आज भी ई-मेल, कंप्यूटर चैट, फ़ोन रिकॉर्ड को पक्का सबूत नहीं मानती. शायद इसलिए क्योंकि वहां कोई इतना पढ़ा लिखा इंसान तो है ही नहीं. आज भी देश की अदालतों में सौ रूपये में मिलने वाले झूठे गवाह की गवाही, वैज्ञानिक तरीको से प्रमाणित हो सकने वाली गवाही से, ज्यादा अहम् और सही मानी जाती है. अभी भी देश में सन 1872 का (करीब एक सौ चालीस साल पुराना) कानून चल रहा है. पारिवारिक न्यायलय के वकील हर राज्य और प्रान्त में विविधता में एकता का परिचय देते हुए मिलते है. ये आपस में मिले होते है और इनकी दिलचस्पी केवल झगडे का फायदा उठा कर दोनों पक्षों को गलत सलाह और मशवरा देकर मामले को लम्बा खींचने और पैसा ऐठने के अलावा और किसी में नहीं होती. फिर चाहे वो नया वकील हो या पुराना खिलाडी चाहे वो पांच हज़ार वाला वकील हो या पेंतीस हज़ार वाला. पुलिस भी गिरफ्तार तभी करती है जब लड़की वाले उन्हें "खुश" कर देते है. वो लड़के के परिवार वालो को भी थाने में सेवा देती है जब तक लड़के वाले उन्हें "खुश" न करे. तो पुलिस के तो दोनों हाथ घी में और सर कढाई में.

सबसे मजे की बात ये है की कोई अगर हत्या जैसा घिनौना जुर्म करे या पडोसी मुल्क के हमारे न्यायलय के मेहमान अजमल कसाब (उसके लिए मुंबई सरकार ने दो करोड़ रूपये खर्च करके जेल में एयर कन्डीशन कमरा और एक विशेष अदालत बनवाई है) की तरह की नवम्बर 2008 में मुंबई की गई कोई हरकत को अंजाम दे तो भी हमारे महान न्यायलय उसे तब तक दोषी नहीं मानता जब तक उस पर आरोप सिद्ध नहीं हो जाते. यानि हर हाल में आरोप सिद्ध होने तक व्यक्ति अपराधी नहीं कहलाया जाता पर IPC-498 A पत्नी के द्वारा महिला थाने में रिपोर्ट दर्ज होते ही व्यक्ति अपराधी की श्रेणी में आ जाता है. ये मुकदमा क्रिमिनल केस की श्रेणी में आता है न की सिविल केस की और जब तक उस व्यक्ति के खिलाफ आरोप गलत नहीं साबित होते तब तक वो व्यक्ति क्रिमिनल अपराधी माना जाता है.

आइये इस कानून की भयावहता पर एक नज़र डाले : (2006 तक के भारत सरकार के ये आंकडे संसद में पेश किये जा चुके है)
  1. 1995 से 2006 यानि बारह साल में IPC-498 A धारा में दर्ज मुकदमो में 120% की वृद्धि दर्ज की गई. जैसे जैसे लोगो को ये कानूनी फिरौती के धंधे के बारे में पता चला इसके जाल में फंसने वाले लोगो की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि हुई।



  2. 1995 से 2006 में IPC-498 A के तहत लाख से ज्यादा गिरफ्तारियां हुई .
  3. 1995 से 2006 में IPC-498 A के तहत में हर पांच मिनिट में एक निर्दोष व्यक्ति की गिरफ्तारी हुई. 2002 से 2006 में पॉँच लाख व्यक्तियों की गिरफ्तारियां हुई जिसमे से 80% पूर्णत निर्दोष थे.
  4. 1995 से 2006 में IPC-498 A के तहत सवा दो घंटे में पांच मिनिट में एक बुजुर्ग व्यक्ति की गिरफ्तारी हुई. 2002 से 2006 में बीस हज़ार बुजुर्गो को इस कानून ने हवालात के दर्शन करवाए. विश्व स्वस्थ्य संगठन (WHO) की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में ये कानून बुजुर्गो के उत्पीडन का सबसे बड़ा कारण है.
  5. 1995 से 2006 में IPC-498 A के तहत हर इक्कीस मिनिट में एक महिला की गिरफ्तारी हुई जो लड़के की माँ, बहन, भाभी थी, कई मामलो में तो गर्भवती महिलाओ को भी हवालात में डाल दिया गया. 2002 से 2006 में एक लाख महिलाओ की गिरफ्तारी हुई.
  6. एक अबोध बच्चा लगभग हर रोज इस कानून के तहत गिरफ्तार हो रहा है.
  7. देश के महानतम अदालतों से निर्दोष साबित होने में औसतन लगभग आठ साल का समय लगता है.

देश में आत्महत्या के आंकडे :
क्या आप जानते है देश में हर 100 आत्महत्याओं में 63 पुरुष और 37 महिलाये है। हर 100 पुरुष आत्महत्याओं में 45 विवाहित होते है जबकि हर 100 महिलाओं की आत्महत्याओं में केवल 25 विवाहित महिलाये है। अगर एक विवाहित स्त्री आत्महत्या कर लेती है तो उसके पति को बाकायदा सीधे जेल होती है जबकि अगर विवाहित पुरुष आत्महत्या कर ले तो उसकी सम्पति से आधा हिस्सा सीधा उसकी पत्नी को मिल जाता है. मद्रास इंस्टिट्यूट ऑफ़ डेवेलोपमेंट स्टडीज के प्रोफ़ेसर के नागराज के एक शोध के अनुसार देश में तलाकशुदा पुरुषों की आत्महत्या दर 164 प्रति लाख है जबकि तलाकशुदा महिलाओ की आत्महत्या दर 63 प्रति लाख है. ठीक इसी तरह अलग रह रहे (लेकिन जिनका अभी तक तलाक नहीं हुआ) पुरुषों की आत्महत्या दर 167 प्रति लाख है जबकि ऐसी महिलाओ की आत्महत्या दर 41 प्रति लाख है.

अगस्त 2008 में सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश के तहत कम से कम इतना तो किया है की अगर कोई लड़की शादी के सात साल में आत्महत्या कर लेती है तो इसका अपने आप ये मतलब नहीं लगाया जा सकता की उसे दहेज़ के लिए तंग किया गया है.


खासियत :
  • ये एक प्रज्ञेय अवेक्षणीय (cognizable) गुनाह है जिसमे पुलिस को रिपोर्ट दर्ज करते ही गिरफ्तार करने का अधिकार है.
  • ये गैर जमानती (non bailable) जुर्म की श्रेणी में आता है. यानि केवल संदेह के आधार पर मजिस्ट्रेट को जमानत रद्द करने का और व्यक्ति को पुलिस कारगर में पड़े रहे देने का हक है.
  • ये अप्रशम्य (non compoundable) जुर्म है. यानि शिकायतकर्ता अपनी शिकायत वापस नहीं ले सकता.
इसकी खासियत ये है की
  • ये पुलिस की आमदनी का जरिया है.
  • पुलिस द्वारा किसी को प्रताडित करने तथा मानव अधिकारों का हनन करने की चाबी है.
  • अदालतों में भ्रष्टाचार को फैलाती हुई विषबेल है.
  • लिंग भेद से राजीनीतिक खेल खेलने वाले दानवो का वोटो का बैंक है.
  • सही मायने में गरीब लड़की जो दहेज़ से पीड़ित है उस व्यक्ति को न्याय न मिल सके इसको सुनिश्चित करने का तरीका है.
  • देश की भ्रष्ट दुष्ट और आपराधिक न्याय प्रणाली में निरपराध परिवारों को फांसने का षडयंत्र है.

ये एक ऐसा जुआ है जिसमे अगर झूठ से फंसाया हुआ व्यक्ति धार ले और उसके पास दस साल तक का समय और पैसा हो तो उसे न्याय मिल सकता है. आम आदमी के बोलचाल की भाषा में ये सरकारी मान्यता प्राप्त फिरौती का धंधा है. (जैसे सोमालिया के समुद्री लुटेरे आजकल कर रहे है)


कारण :
जब इतना बड़ा बखेडा खडा किया जाता है, कानून की धज्जियाँ उडाई जाती है तो इसके पीछे क्या कुछ खास कारण जरुर है. आइये एक नज़र डाले की आज समाज में ये विघटन क्यों हो रहा है और इसके मुख्य कारण क्या क्या है.

पैसा : कहते है न पैसा सब मुसीबत की जड़ है. यहाँ भी इस बनावती रिश्ते में पैसा सबसे बड़ी भूमिका बनता है. आज ये कानून अप्रवासी भारतीयो से फिरौती वसूली का धंधा बन गया है. स्थिति इतनी विकट हो चुकी है कि अमेरिका और ब्रिटेन ने अपनी वेबसाइट पर भारत जा कर शादी कर रहे उनके देश के नागरिको को भारत यात्रा परामर्श जारी कर दिया है जिसमे इस भेदभाव पूर्ण कानून का उल्लेख है. अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा की वेब साईट पर भी इस मुद्दे से जूझ रहे भारतीयों की चिंता और दुर्दशा का उल्लेख है. कानूनी तौर पर डाका डाल कर लुटा हुआ ये पैसा लड़की को पुनर्स्थापित करने, लड़की के घर की वितीय स्तिथि सुधारने में मददगार होता है.

बदला : जी हाँ ये शायद अजीब लगे, लेकिन कहते है की मादा प्रजाति पुरुषों के मुकाबले बहुत ज्यादा खतरनाक होती है। लड़की को लड़के के माँ, पिताजी, बहन कि शक्ल पसंद नहीं है, किसी ने कुछ कह दिया या किसी ने डांट दिया या कोई बात अच्छी नहीं लगी तो दुश्मनी बंध गई और कानूनी रूप से अपनी दुश्मनी निकलने का इससे ज्यादा गन्दा और घटिया गैरकानूनी तरीका क्या हो सकता है।

अपनी गलती को छुपाना : अब इसे सचमुच कमीनापन ही कहेंगे. लड़के को लड़की के शादी के पहले के कुछ अनकहे पन्नो की जानकारी हाथ लग गई या कोई ऐसे सबूत मिल गए है तो लड़की अपने बहीखातो के उन पन्नो को छुपाने के लिए लड़के और उसके परिवार को फंसा देती है।

परिवार पर नियंत्रण करना : जी हाँ आजकल कई लड़कियों शादी के पहले दिन से ही अपने पुरे ससुराल को अपने नियंत्रण में लेने को अमादा होती है और अगर कही कोई ना नुकुर हो तो बस हमारा कानून तो है ही सरदर्द बन कर लड़की को नाजायज़ फायदा देने के लिए।

बॉयफ्रेंड : ये आजकल चौकाने वाला नया तथ्य है जिसमे लड़की को अपने बॉयफ्रेंड से शादी करने के लिए लड़के और उसके घर वालो को फांस दिया जाता है। लड़के से मिली मोटी रकम से लड़की अपना आशियाना बसा लेती है.

लड़का पसंद नहीं : लड़की को किसी भी कारण से लड़का पसंद नहीं है और वो उस के साथ नहीं रहना चाहती. बस दहेज़ कानून का दुरूपयोग करो और पैसे के साथ साथ मनमांगी मुराद पूरी.

असुरक्षित कौन :
वो सभी जो निम्नलिखित श्रेणी में आते है उन के सर पर इस बेतुके कानून की तलवार हर वक़्त लटक रही है.
  • वो सभी जो भारतीय मूल के है और जिन्होंने भारत में शादी की है.
  • वो सभी जिनकी पत्निया भारतीय है.
  • वो सभी जिनके बच्चो की शादी भारतीय लड़की के साथ हुई है.
  • वो सभी जिनके नजदीक के रिश्तेदार की पत्नी भारतीय है.
  • वो सभी जिनकी पत्नी अपने पति से अलग रहने के लिए अपने पति पर लगातार दबाव बना रही है.
  • वो सभी जिनकी पत्नी अपने सास ससुर के प्रति लगातार अशिष्ट व्यवहार करती है.

आगे क्या :
आज समाज में हो रहे इस अंधकारमय परिवर्तन का असर आने वाले समय में क्या होगा ये तो भविष्य ही बतलायेगा। पर मुझे नहीं लगता ये पांच दस लाख रूपये किसी की पूरी जिंदगी चला सकते है। अपनी आदतों के कारण ये लड़किया कही ठीक ढंग से समन्वय बैठा पाए ये यथार्थ से परे लगता है. आने वाले समय में इन लड़कियों को शह देने वाले इनके माँ बाप भी जा चुके होंगे और उस समय ये क्या करेंगी ये तो भगवान् ही बेहतर बता सकता है. बस ये ही आशा करता हूँ की हम कम से कम इस मामले में अमेरिका नहीं बने और ये उस समय की प्रोढ़ महिलाये और कोई घर बर्बाद न करे.

मेरे एक मित्र के अनुसार आजकल एअरपोर्ट पर जब किसी लड़के को शादी करते हुए देश जाते हुए देखता हूँ तो ऐसा लगता है जैसे किसी बेचारे मुर्गे को बूचड़खाने ले जाया जा रहा है. अगर जल्द ही देश की सरकार ने इस कानून का दुरूपयोग होने से नहीं रोका तो ये देश और समाज के लिए ठीक वैसा ही खतरनाक होगा जैसे पाकिस्तान के आतंकवादियों के हाथ में आणविक या जेविक हथियार दे दिए गए हो.

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लोकतंत्र का महापर्व

लीजिये साहब विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का महापर्व चुनाव शुरू हो गया. हर तरफ सब अखबार, टीवी न्यूज़ चैनल सब के सब इस अर्धकुम्भीय महापर्व के बारे में बढ़ चढ़ कर बखान करने में लगे है. आज दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के आम चुनाव का इंतज़ार है. अमरीकी चुनाव के बाद दुनिया की नज़रें भारत के चुनाव पर लगी हुई हैं. लेकिन सोचने वाली बात ये है की आज ये देश अपने आप को प्रजातंत्र इसीलिए मान रहा है क्योंकि यहाँ समय समय पर चुनाव होते रहते हैं, चाहे स्कूल हो या न हो, शिक्षा का दूर दूर से वास्ता न हो, स्वस्थ्य सुविधा बिलकुल न हो लेकिन चुनाव ज़रूर हो. सारे छंटे हुए बदमाश गुंडे नेता बन कर सकारी सहुलियतों को भोगे, नौकरशाह जिनको जनता के काम करने के लिए पैसे मिलते है वो इन नेताओ के तलुवे चाटे, अदालत में सवा सौ साल से लंबित मामले निपटाए नहीं जा सके, लोगो को न्याय के नाम पर परेशानी के सिवा कुछ नहीं मिले लेकिन लोकतंत्र की रक्षा करने के लिए चुनाव समय पर हो.

चुनाव आयोग :

आइये सरकारी और हकीक़त के चश्मे से इस लोकतंत्र को देखे. 543 निर्वाचित क्षेत्रो के लिए 71 करोड़ 40 लाख मतदाताओ का 8,28,404 मतदान केन्द्रों पर 13,68,430 वोटिंग मशीनों के जरिये 61 लाख पुलिस और सरकारी कर्मचारियों के द्वारा 1005 राजनितिक पार्टियों के प्रत्याक्षियो का चुनाव करवाना अपने आप में एक बड़ी बात है और इसके लिए चुनाव आयोग से श्रेय नहीं लिया जा सकता.

ये बात अलग है की चुनाव के चलते कई प्रदेश में लोग सड़क पर गाड़ी निकालने के बजाए घर में ही गाड़ी रखना पसंद करते है. हमेशा चिंता रहती है कि अगर आपने गाड़ी निकाली तो सड़कों पर कहीं भी पुलिस की गाड़ी मिल सकती है और उसमें बैठे अधिकारी तुरंत आपकी गाड़ी पर पोस्टरनुमा आदेशपत्र चिपका देते हैं. इसमें चुनाव ड्यूटी के लिए किस तारीख़ को कितने बजे पहुंचना है, इसका विवरण होता है. यहाँ तक की बारात की गाड़ियों तक को नहीं बख्शा जाता है और ना नुकुर करने पर गाड़ी जब्त करके बारातियों को पैदल ही आगे बढा दिया जाता है. कई जगह तो कुछ लोग अपने गैराज में ही रखी गाड़ी के पहिए निकाल कर अलग रख देते है ताकि गाड़ी की पुलिस से हिफाजत की जा सके.

लोकतंत्र की राजनीति :
दिल्ली में सत्ता के गलियारों के गिर्द घूमते हुए जो लोकतंत्र हमें दिखाई देता है, उससे अलग एक और तस्वीर है दुनिया के इस सबसे बड़े लोकतंत्र की. यह लोकतंत्र रेखा और विशाल की सच्चाई वाला है और करोड़ों लोग इसी लोकतंत्र में जीने को मजबूर हैं. सोनभद्र ज़िले की राबर्ट्सगंज लोकसभा सीट के घसिया बस्ती का एक गाँव जो ज़िला मुख्यालय से महज़ तीन किलोमीटर के फ़ासले पर स्थित है. इस गाँव में भूख और कमज़ोरी से 18 बच्चे मर चुके है और गाँव में घुसते ही भारतीय लोकतंत्र की एक कड़वी नंगी सच्चाई को बेपर्दा करता हुआ दिखता है भूख से मरे 18 बच्चों का स्मारक.

देश में चुनाव छोटा हो या बड़ा सब पैसे और ताकत का गन्दा खेल बन कर रह गया है. नवम्बर 2008 में दिल्ली की विधानसभा के चुनावो में भारतीय जनता पार्टी के 19, कांग्रेस के 19 और बहुजन समाज पार्टी के 15 उम्मीदवारों पर आपराधिक मामले दर्ज़ थे जिसमे हत्या, बलात्कार जैसे गंभीर मामले भी शामिल थे. ये उम्मीदवार सम्पत्ति के मामले में किसी से पीछे नहीं थे. इन चुनावो के मैदान में 153 करोड़पति उम्मीदवार थे और इनमें से कई ने आयकर विभाग का स्थायी खाता संख्या यानी पैन तक नहीं दिया. छह उम्मीदवार ऐसे थे जिनकी निजी सम्पत्ति 90 लाख से ज़्यादा थी. लेकिन वह कहते हैं कि उनके पास वाहन तक नहीं है.

इस लोकतंत्र से किसी का विकास हुआ हो या नहीं हुआ हो, इन जनप्रतिनिधियों का विकास ज़रूर हुआ है. पिछले पाँच वर्षों में औसत निजी सम्पत्ति विकास दर के हिसाब से देश की राजधानी के विधायकों की निजी सम्पत्ति में 211 फ़ीसदी इजाफ़ा हुआ है. यानी हर विधायक ने 1.8 करोड़ रूपए कमाए. कहाँ से कमाया और कैसे आया यह धन, सवाल सोचने पर मजबूर कर देता है.

देश की सर्वोच्च संसथान या लोकतंत्र का मंदिर भी कोई ज्यादा पीछे नहीं था. हमारी 14वीं लोक सभा के 543 सांसदों में से 120 यानी 22 फ़ीसदी सांसदों के ख़िलाफ़ आपराधिक मामले दर्ज थे. केवल अपराध ही नहीं भर्ष्टाचार के मामले में भी हमारे नेता कही कोई कमतर नहीं है. दुनियाभर में भ्रष्टाचार पर नज़र रखने वाले ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल का सर्वेक्षण कहता है कि भारत में 76 फ़ीसदी लोग यह मानते हैं कि राजनेता भ्रष्ट होते हैं. उन्हें पाँच में से 4.75 अंक मिले हैं. इसका मतलब यह कि भ्रष्टाचार इंडेक्स में भारतीय राजनेता काफ़ी ऊपर हैं. यही कारण है की देश से बहार अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में भारत की पहचान अब भी अत्यंत ग़रीब और सामाजिक संघर्षों से जूझ रहे देश के रूप में होती है.

अब आप ही बतलाइए की इस देश को नेता, नौकरशाह और न्यायपालिका बर्बाद करके छ दशक से दीमक की तरह चाट रहे हो उसका क्या एक दो चुनाव से कुछ भला हो सकता है. राजनेताओ की फिरकापरस्ती पर चर्चा फिर कभी करूँगा.

वामपंथी भारतीय

हाल ही में १३ अप्रैल के एक समाचार में पढ़ा था कि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी महासचिव प्रकाश कराट ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि उनकी पार्टी इस बार कांग्रेस को किसी क़ीमत पर समर्थन नहीं देगी, भले ही उन्हें विपक्ष में बैठना पड़े.
मगर इसके साथ ही वह ये कहने से नहीं चूके कि ज़रूरत पड़ने पर कांग्रेस से समर्थन लेने में उन्हें कोई परेशानी नहीं होगी.

ये कहना अतिशोक्ति कतई नहीं होगा की भारत के इतिहास में आज तक वामपंथी हमेशा ग़लत पक्ष में रहे हैं. भारत के इतिहास में ऐसे कई मौके आए है जब वामपंथियों ने राष्ट्रीय मुख्यधारा से बिल्कुल अलग रुख़ अपनाया है | कई हल्कों में ये आवाज़ उठती रही है कि वामपंथियों का यह रुख़ आम लोगों की राय को प्रतिबिंबित नहीं करता| भारत छोड़ो आंदोलन के समय की बात ही लीजिए | भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने इस आधार पर भारत छोड़ो आंदोलन का समर्थन न करने का फ़ैसला किया कि उस समय सोवियत संघ हिटलर के नाज़ी जर्मनी के ख़िलाफ़ ब्रिटेन के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ रहा था | अंग्रेज़ी दैनिक अख़बार 'द पायनियर' के संपादक चंदन मित्रा कहते हैं, "शुरू से लेकर आज तक कम्युनिस्ट पार्टियाँ जो रवैया अपनाती रही हैं उसमें उनकी अंतरराष्ट्रीय सोच का प्रभाव ज़रूर मिलता है. चाहे वह 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन और गाँधी जी का विरोध रहा हो, चाहे 1962 में चीन के भारत पर आक्रमण के दौरान वामपंथियों के एक वर्ग ने चीन की तरफ़दारी की जिसके चलते पार्टी में विभाजन हो गया." चंदन मित्रा आगे कहते हैं, "कुछ दिन पहले मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी (सीपीएम) के पोलित ब्यूरो में कुछ नेताओं ने कहा कि भारत को अपने खनिज पदार्थ ख़ासकर कच्चे लोहे का चीन के अलावा कहीं निर्यात नहीं करना चाहिए.

अगर 1962 की बात जाने भी दी जाए तो सबसे पहले भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने भारत छोड़ो आंदोलन का समर्थन न करने का फ़ैसला किया और गाँधी जी का विरोध किया | 1948 में भारत की आज़ादी के बाद बीटी रणदवे के नेतृत्व में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने लाइन ली कि यह आज़ादी झूठी है. बात यहाँ तक गई कि इसका विरोध करने पर पीसी जोशी को पार्टी से निकाल तक दिया गया. जब भारत ने 1998 में परमाणु विस्फोट किया तो वामपंथियों ने उसका विरोध किया और कई राजनैतिक विश्लेषकों ने उनकी यह कहकर आलोचना की कि वो राष्ट्रीय हितों और वास्तविकताओं से काफ़ी दूर चले गए हैं | 2008 में परमाणु मुद्दे पर भी वामपंथी दलों का सुर कुछ और ही है और इस मुद्दे पर उन्होंने सरकार से समर्थन वापस ले लिया |

किसी विदेश नीति के मुद्दे पर सरकार गिराना या गिराने का प्रयास करना एक किस्म की कमज़ोरी है क्योंकि भारत का आम नागरिक विदेश नीति से जुड़ा हुआ नहीं है. कोई यह कहता है कि वामपंथियों का विरोध राष्ट्रीय स्वभाव के साथ जुड़ा नहीं है तो विदेश नीति से जुड़े मुद्दे हमेशा कुछ लोगों के ही हाथ में होते हैं. आम जनता का संबंध घरेलू मु्द्दों से ही अधिक होता है. आम जनता को तो पता ही नहीं है कि अमेरिका के साथ हुए परमाणु समझौते के तकनीकी पक्ष क्या-क्या हैं.

ज्योति बसु देश में विदेशी निवेश का विरोध करते रहे और पश्चिम बंगाल में पैसा लगवाने के लिए विदेशी निवेशको से मिलने विदेश गए. यानि देश में निवेश हो तो विरोध और खुद भीख मांग कर निवेश के नाम पर पैसा वसूले तो सही. जबकि सबको पता है को वहां कोई निवेश आसानी से नहीं हो सकता. सिंगुर में नेनो का उदहारण अभी सबके सामने ताजा ही है. नेनो परियोजना स्थल अब बाजमेलिया और गोपालनगर गांव के पशुओं का चारागाह बन गया है. इलाक़े में ज़मीन की आसमान छूती क़ीमतें एक बार फिर यथार्थ की धरती पर आ गई हैं.

दरअसल ये सब कुछ फिरकापरस्त राजीनीति और कुर्सी हथियाने का हिस्सा होने के अलावा कुछ नहीं है. जनता बेवकूफ बनती आई है और बनती रहेगी. ये ही इस देश की नियति है.

धार्मिक मान्यताएं

वेद प्राचीनतम ग्रंथ हैं। ऐसी मान्यता है की वेद परमात्मा के मुख से निकले हुये वाक्य हैं। वेद शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के 'विद्' शब्द से हुई है। विद् का अर्थ है जानना या ज्ञानार्जन, इसलिये वेद को "ज्ञान का ग्रंथ कहा जा सकता है। हिंदू मान्यता के अनुसार ज्ञान शाश्वत है अर्थात् सृष्टि की रचना के पूर्व भी ज्ञान था एवं सृष्टि के विनाश के पश्चात् भी ज्ञान ही शेष रह जायेगा। चूँकि वेद ईश्वर के मुख से निकले और ब्रह्मा जी ने उन्हें सुना इसलिये वेद को श्रुति भी कहा जाता हैं। वेद संख्या में चार हैं और - चारों वेद ही हिंदू धर्म के आधार स्तम्भ हैं। आइये हिंदू धर्म और उससे जुड़े कुछ तथ्यों से आपको अवगत कराये।
चार वेद :
  1. ऋग्वेद
  2. सामवेद
  3. अथर्ववेद
  4. यजुर्वेद

पूजा की तीन विधिया :
  1. वैदिक,
  2. तांत्रिक,
  3. मिश्रित
युग :
  1. सतयुग,
  2. द्वापर,
  3. त्रेता,
  4. कलयुग
सतयुग के चार चरण :
  1. सत्य,
  2. दया,
  3. तप,
  4. दान
धर्म के चार चरण :
  1. तप,
  2. पवित्रता,
  3. दया,
  4. सत्य
कलयुग के स्थान :
  1. द्युत (असत्य),
  2. मधःपान (मद),
  3. स्त्रीसंग (आसक्ति),
  4. हिंसा (नि्र्दयता, वैर),
  5. सुवर्णं (धन, रजोगुण)
चार पुरुषार्थ :
  1. धर्म,
  2. अर्थ,
  3. काम,
  4. मोक्ष
तीन गुण :
  1. सत (ज्ञान),
  2. रजो (कर्म),
  3. तमो (अज्ञान)
अठारह पुराण
  1. ब्रह्मपुराण
  2. पद्मपुराण
  3. विष्णुपुराण
  4. शिवपुराण
  5. श्रीमद्भावतपुराण
  6. नारदपुराण
  7. मार्कण्डेयपुराण
  8. अग्निपुराण
  9. भविष्यपुराण
  10. ब्रह्मवैवर्तपुराण
  11. लिंगपुराण
  12. वाराहपुराण
  13. स्कन्धपुराण
  14. वामनपुराण
  15. कूर्मपुराण
  16. मत्सयपुराण
  17. गरुड़पुराण
  18. ब्रह्माण्डपुराण

अष्टांग योग :
  1. यम् (सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह, ब्राह्चार्य )
  2. नियम (सोच, संतोष, स्वाध्याय, तपास, ईश्वर प्राणिधान)
  3. आसन
  4. प्राणायाम
  5. प्रत्याहार
  6. ध्यान
  7. धारणा
  8. समाधि
पाँच महाभूत :
  1. पृथ्वी,
  2. जल,
  3. तेज,
  4. वायु,
  5. आकाश
पाँच तन्मात्र (विषय) :
  1. शब्द,
  2. स्पर्श,
  3. रुप,
  4. रस,
  5. गन्ध
पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ :
  1. क्षोत्र (कान),
  2. त्वचा (चमड़ी),
  3. चक्षु (आँख),
  4. रसना (जीभ),
  5. नासिका (नाक)
पाँच कर्मेन्द्रियाँ :
  1. वाक,
  2. पाणि,
  3. पाद,
  4. पायु,
  5. उपस्थ
दस इन्द्रियाँ = पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ + पाँच कर्मेन्द्रियाँ

नौ तत्व : पुरुष, प्रकृति, महातत्व, अहंकार पाँच भुत

सोलह कलाएँ
: दस इन्द्रियाँ, एक मन और पाँच भुत

मनुष्य की तीन अवस्थाएँ :
  1. जाग्रत,
  2. स्वपन,
  3. सुषुप्ति
पाँच प्रकार के प्राण :
  1. प्राण,
  2. अपान,
  3. उदान,
  4. व्यान,
  5. समान
चार ऋषि :
  1. सनक,
  2. सनन्दन,
  3. सनातन,
  4. सनत्कुमार
चार प्रकार के प्राणि :
  1. जरायुज (स्तनधारी),
  2. स्वेदज (पसीने से पैदा होने वाले कीट पतंगे),
  3. अण्डज (अंडे से पैदा होने वाले रेंगनेवाले जंतु ),
  4. उद्भिज्ज (बीज से पैदा होने वाले)
भगवान के सात दर्शन (झांकी) :
  1. मंगला,
  2. धूप,
  3. श्रंगार,
  4. राजभोग,
  5. ग्वाल,
  6. सन्धया,
  7. शयन
पाँच प्रकार के यज्ञ :
  1. अग्निहोत्र,
  2. दर्श,
  3. पौर्णमास,
  4. चातुर्मास्य और
  5. पशु सोम
पाँच प्रकार के मोक्ष :
  1. सालोक्य (भगवान के नित्यधाम में निवास),
  2. सार्ष्टि (भगवान के समान एश्वर्यभोग),
  3. सामीप्य (भगवान की नित्य समीपता),
  4. सारुप्य (भगवानका-सा रुप) और
  5. सायुज्य (भगवान के विग्रहमें समा जाना, उनसे एक हो जाना या ब्रहारुप प्राप्त कर लेना)
सात द्वीप :
  1. जम्बू,
  2. प्लक्ष,
  3. शाल्मलि,
  4. कुश,
  5. क्रोच्ञ,
  6. शाक और
  7. पुष्कर
मनुष्य के छह गुण :
  1. भुख
  2. प्यास,
  3. शोक
  4. मोह,
  5. जरा
  6. मृत्यु
मनुष्य के छह शत्रु :
  1. काम,
  2. क्रोध,
  3. लोभ,
  4. मोह,
  5. मद और
  6. मत्सर
छ: प्रकार के आततायी :
  1. आग लगानेवाला,
  2. जहर देनेवाला,
  3. बुरी नीयत से हाथ मे शस्त्र ग्रहण करने वाला,
  4. धन लुटनेवाला,
  5. खेत छिननेवाला और
  6. स्त्री छिननेवाला
आठ प्रकार के विवाह (मनुस्मृति तीसरा अध्याय) :
  1. ब्राहा,
  2. देव,
  3. आर्ष,
  4. प्राजापत्य,
  5. आसुर,
  6. गान्धर्व,
  7. राक्षश और
  8. पैशाच
नौ प्रकार की भक्ति :
  1. भगवान के गुण-लीला-नाम आदि का श्रवण,
  2. उन्ही का कीर्तन,
  3. उनके नाम, रुप आदि का स्मरण,
  4. उनके चरणों की सेवा,
  5. पूजा-अर्चना,
  6. वन्दन,
  7. दास्य,
  8. सख्य और
  9. आत्मनिवेदन
मोक्ष के दस साधन :
  1. मौन,
  2. ब्रहाचर्य,
  3. शास्त्र-श्रवण,
  4. तपस्या,
  5. स्वाध्याय,
  6. स्वधर्मपालन,
  7. युक्तियों से शास्त्रों की व्याख्या,
  8. एकान्तसेवन,
  9. जप और
  10. समाधि
ग्यारह रुद्र :
  1. शम्भु,
  2. पिनाकी,
  3. गिरीश,
  4. स्थाणु,
  5. भर्ग,
  6. भव,
  7. सदाशिव,
  8. शिव,
  9. हर,
  10. शर्व,
  11. कपाली

अष्टलक्ष्मी
:
  1. गज लक्ष्मी,
  2. आध्य लक्ष्मी,
  3. संतान लक्ष्मी,
  4. धन लक्ष्मी,
  5. धान्य लक्ष्मी,
  6. विजय लक्ष्मी,
  7. वीर लक्ष्मी,
  8. महा लक्ष्मी
शास्त्रो के अनुसार भगवान कृष्ण की आठ पटरानियाँ :

  1. रुक्मणी
  2. जाम्बवन्ती
  3. सत्यभामा
  4. कालिन्दी
  5. मित्रबिन्दा
  6. सत्या
  7. भद्रा
  8. लक्ष्मणा


ज्योतिष शास्त्र के अनुसार बतलाई गई दस दिशाएं:
  1. पूर्व
  2. पश्चिम
  3. उत्तर
  4. दक्षिण
  5. ईशान (उत्तर-पूर्व)
  6. वायव्य (उत्तर-पश्चिम)
  7. नैऋत्य (दक्षिण-पश्चिम)
  8. आग्नेय (दक्षिण-पूर्व)
  9. आकाश (उर्ध्व)
  10. पाताल (अध)