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गरीब देशवासियों के अमीर नेता

भारत को अंग्रेजो से आजाद हुए अब छ दशक से ज्यादा हो चुके है. आज अंग्रेजो से मिली हुई आजादी के छ दशक के बाद भी देश खुद को आजाद कराने के लिए तड़प रहा है. गोरी चमड़ी से तो देश को आजादी मिली पर गोरो की दी हुई मानसिकता से हम आजाद नहीं हो पाए.

देश की दलगत वाली दलदल की राजनीति में अब सब तरफ़ कीचड़ ही कीचड़ नज़र आता है. वोट मांगने वाले दल दलदल में फंसे है और वोट देने वाले जाती के भंवर में. आगे बढ़ने से पहले एक कवि की कुछ पंक्तिया याद आ रही है.
कोई साधू संत नही है राजनीति की ड्योढी पर, अपराधी तक आ बैठे है माँ संसद की सीढ़ी पर. गुंडे तस्कर, चोर, माफिया, सीना, ताने खड़े हुए, जिनको जेलों में होना था वो संसद में खड़े हुए. डाकू नेता साथ मिले है राजनीति के जंगल में, कोई फर्क नही लगता है अब संसद और चम्बल में. कोई फर्क नही पड़ता है हम किसको जितवाते है, संसद तक जाते जाते ये सब डाकू बन जाते है.

इस मानसिकता का नतीजा ये हो गया है की देश के सर्वोच्च स्थानों पर अपराधियों की तूती बोलती है और आम आदमी देश के राष्ट्रपिता गाँधी का बन्दर बन कर रह गया है, जो कुछ भी सच कहने, देखने या सुनने को आजाद नहीं है.

आइये कुछ झलक देखे, कि ये देश के कर्णधार जिनके हाथो में देश की पतवार है वो देश को किस कदर डुबाने में लगे हुए है.
  • हाल ही में लोकसभा के लिए पहले चरण के चुनाव में जिन 124 सीटों के लिए जो मतदान हुए उनमें करीब एक तिहाई सीटों पर दो या तीन उम्मीदवारों के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं. पहले चरण के तहत 11 राज्यों में 1440 उम्मीदवारों में से 222 अथवा करीब 16 प्रतिशत प्रत्याशियों के खिलाफ गंभीर आरोप हैं और 21 के खिलाफ हत्या के आरोप हैं। जबकि 38 के खिलाफ हत्या का प्रयास तथा 14 के खिलाफ अपहरण का आरोप है।
  • एक गैर सरकारी संगठन नेशनल इलेक्शन वाच ने अपनी एक रिपोर्ट में कहाँ गया है कि दिल्ली, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मिजोरम के 549 जनप्रतिनिधियों में से 125 का अपराधिक रिकॉर्ड है। यानि हर पांचवे विधायक के कुर्ते पर दाग है। इन राज्यों में चुनावी फतह करने वालो में चालीस प्रतिशत विधायक करोड़पति है। यानि आज चुनाव जीतने में धन और बाहुबल दोनों ही काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।
  • दिल्ली के विधायको के द्वारा चुनाव आयोग को दी गई जानकारी के अनुसार कांग्रेस के 42 में से 24 विधायक, भाजपा के 23 में से 19 विधायक, बसपा के दोनों और राष्ट्रीय लोक दल का इकलौता विधायक की सम्पति एक करोड़ से ज्यादा है. कुल 31 प्रतिशत जनप्रतिनिधियों की सम्पति पांच करोड़ से भी ज्यादा है, 29 जनप्रतिनिधियो के नाम दिल्ली या उसके आस पास खेती के लिए जमीन है और 12 जनप्रतिनिधि ऐसे है जिनके पास एक करोड़ की सम्पति है पर कर नहीं है.
  • मध्य प्रदेश में 12 ऐसे करोड़पति विधायक है जिनके पास PAN नंबर ही नहीं है यानि की टैक्स या कर से उनका कोई लेना देना नहीं है.
  • विधायक करोड़ और देश के सांसद अब सौ करोड़ या उसे ऊपर के आसामी की श्रेणी में आते है.
आज ये देश अपने आप को प्रजातंत्र इसीलिए मान रहा है क्योंकि यहाँ समय समय पर चुनाव होते रहते हैं, चाहे स्कूल हो या न हो, शिक्षा का दूर दूर से वास्ता न हो, चिकित्सा सुविधा बिलकुल न हो लेकिन चुनाव ज़रूर हो. सारे छंटे हुए बदमाश गुंडे नेता बन कर सकारी सहुलियतों को भोगे, नौकरशाह जिनको जनता के काम करने के लिए पैसे मिलते है वो इन नेताओ के तलुवे चाटे, अदालत में सवा सौ साल से लंबित मामले निपटाए नहीं जा सके, लोगो को न्याय के नाम पर परेशानी के सिवा कुछ नहीं मिले लेकिन लोकतंत्र की रक्षा करने के लिए चुनाव समय पर हो.
क्या देश के लिए लोकतंत्र में चुनाव करवाना जरुरी है या फिर जनता के लिए बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध करवाना. क्या अपराधियों को जेल की सलाखों के पीछे भेजना चाहिए या उन्हें नेता बना कर उनका सम्मान करना चाहिए. अब आप ही सोचिये क्या हम इस देश की जनता सचमुच लोकतंत्र लोकतंत्र खेलने की समझ रखती है.

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