यद्यपि हम और आप सभी लोग हर रोज कितने ही लोगो से बात करते है लेकिन क्या आप जानते है कि बातचीत करना अपने आप में एक बहुत बड़ी कला है. नेता और अभिनेता प्रजाति के लोग अक्सर बातचीत की इस कला में काफी दक्ष होते है और ये कला कुछ हद तक उन लोगो को दुसरो से अलग सफलता के नए मुकाम तक पहुचाने में मदद करती है.
एक सिमित परिधि के रहते, अक्सर देखा गया है की छोटे शहरो के बच्चे, महानगरो के बच्चो के मुकाबले, बातचीत की इस विधा में उन्नीस रह जाते है. चूँकि बातचीत करना एक कला है इसलिए थोडा सा ध्यान देकर हर व्यक्ति न केवल अपनी बात सही ढंग से कह सकता है बल्कि सामने वाले व्यक्ति का नजरिया भी ज्यादा अच्छी तरह से समझ सकता है और अपने व्यक्तित्व में निखार ला सकता है.
हम जब भी कोई वाक्य बोलते है तो हम शब्दों से तथ्य, मतलब (अर्थ), भाव और इरादे से में एक या एक से अधिक चीज़ अपने वाक्य के द्वारा दर्शाते है.
"सड़क दुर्घटना हो गई है" कहने को तो ये सीधा सा वाक्य है लेकिन अगर जिस तरह से इसे बोला जाता है उससे इसके भिन्न भिन्न मतलब निकल सकते है. उदहारण के तौर पर :
कुछ गाड़ियाँ सड़क पर आपस में टकरा गई है (तथ्य)
गाड़ियों की टक्कर से उसमे सवार लोगो को चोट लगी होगी (मतलब)
उफफ्फ्फ्फ़ तत्काल घायलों के लिए कुछ करना चाहिए (भाव)
अभी एम्बुलेंस और पुलिस को फ़ोन सूचित करो (इरादा)
श्रोता कई बार वक्ता को केवल इसलिए नहीं समझ पाता क्योंकि वो ढंग से सुन ही नहीं रहा होता है. उसका ध्यान या तो बँटा हुआ होता है या कही और ही लगा होता है. लेकिन कई बार श्रोता इसलिए भी नहीं समझ पता क्योंकि वो वक्ता के वाक्य का तात्पर्य नहीं समझ पाता. वो उस स्तर पर नहीं बैठ कर सुन रहा होता है जिस स्तर पर वक्ता बोल रहा होता है. मसलन वक्ता वो तथ्यों को समझ लेता है पर भाव नहीं समझ पाता. श्रोता और वक्ता के वार्तालाप को विभिन्न स्तर पर समझ कर देखे.
वक्ता का तात्पर्य | श्रोता का कर्त्तव्य | श्रोता के प्रश्न | श्रोता का उद्देश्य | |
तथ्य | सुचना प्रसारित करना | सुचना को समझना और स्पष्टीकरण करना | कौन, क्यों, कब, कहाँ, क्या, कैसे | सुचना का दिमाग में ठीक वैसा ही चित्र बनाना जैसा वक्ता कहना चाह रहा है. |
मतलब | श्रोता को समझाना | पुरे परिवेक्ष को संक्षिप्त भाव से समझना | क्या मैं सही समझ रहा हूँ ? क्या आप ये ही समझाना चाह रहे है ? | समझने का प्रयास करना और वक्ता को इसका भरोसा दिलाना. |
भाव | भावनात्मक तौर पर श्रोता से जुड़ना. | वक्ता के हाव, भाव और उच्चारण के तरीके पर ध्यान देना | इससे आपके दिल पर क्या बीत रही है / आपको कैसा लग रहा है. | वक्ता की भावनाओ को समझ कर उनसे जुड़ना |
इरादा | उसकी जरुरत पर ध्यान दो. | ध्यान से सुनने के बाद सोच समझ कर समाधान पर ध्यान केन्द्रित करना | इस परिस्तिथि में क्या करना चाहिए और किससे मदद मिल सकती है. | जाने की सामने वाला व्यक्ति क्या पाना चाहता है. |
कबीर दास जी ने भी कहा है "कागा काको धन हरै, कोयल काको देत, मीठा बोल सुनाय के, जग अपनी करि लेत" तो मित्रो ये शब्दों का चयन और समझ का फेर ही है जो अर्थ का अनर्थ कर देता है. इस लेख से अगर किसी एक को भी प्रेरणा मिले और उसके व्यक्तित्व में अच्छे के लिए परिवर्तन होता है तो मैं समझूंगा की इस को लिखने में लगा मेरा समय सार्थक गया.
अगली कड़ी में : किसी भी चर्चा को बहस बनने से कैसे रोके ?
2 comments:
बहुत बडिया आलेख है अगली कडी का इन्तज़ार रहेगा।
supere you are great man
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