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मानव शाकाहारी है या मांसाहारी ?

मनुष्य शाकाहारी है या मांसाहारी ये प्रश्न कई बार उठता है और हर तरफ के लोग अपनी बात सिद्ध करने के लिए तर्क वितर्क करते है. दरअसल मानव के विकास में भोजन मुख्यत काफी भिन्न है और मेरा ये मानना है की जो सभ्यता जहाँ पली वो उस जगह पर आसानी से उपलब्ध भोज्य पदार्थ को भोजन मानती चली गई. समुद्र किनारे लोगो को मछली का स्वाद लग गया तो रेगिस्तान में लोगो ने ऐसा बाजरा इत्यादि ऐसे धान उगाए जिसमे कम से कम पानी की आवशयकता पड़े. इस बहस को आगे बढ़ते हुए मैं यहाँ पर कुछ प्रमाण प्रस्तुत कर रहा हूँ. इंसान की तो मांसाहारी प्राणियो की आंते उनके शरीर के ३-६ गुनी होती है और शाकाहारी की १०-१२ गुनी, मांसाहारी के पेट में अम्ल शाकाहारियों से २० गुना ज्यादा होता है | मांसाहारी को फाइबर की जरुरत नही होती और उच्च कोलेस्ट्रोल से कोई तकलीफ नही होती लेकिन शाकाहारी को फाइबर चाहिए और कोलेस्ट्रोल दिक्कत देता है | मांसाहारी की लार acidic होती है और शाकाहारी की alkaline (क्षारीय), मांसाहारी जानवरों के पंजे और तीखे दांत होते है तथा सपाट मोलर दांत नही होते, शाकाहारी में उल्टा है | उपरोक्त सब गुणों से आदमी शाकाहारी प्राणी है





जहाँ तक मुझे ज्ञात है हिंदू धर्म की किसी धार्मिक पुस्तक में ये स्पष्ट तौर पर नही लिखा है कि हिन्दुओ को केवल शाकाहारी ही होना चाहिए | हाँ गौमांस अवश्य वर्जित है | हिंदू धर्म में शाकाहारी मान्यताओं के तीन मुख्य कारण है

१. अहिंसा (जीव के प्रति हिंसा अपराध है)
२ शुद्धता (भोजन प्रसाद का रूप है). शाकाहारी भोजन सात्विक होता है और मांसाहारी भोजन को तामसिक कहा गया है |
३ ये सोच की शाकाहारी भोजन दिमाग और आध्यात्मिक विकास में सहायक है |

वैदिक काल के ग्रन्थ जैसे महाभारत, भागवद पुराण, मनु स्मृति, छान्दोग्य उपनिषद में मांसाहार को निषिद्ध नही किया गया है | क्षत्रियो के लिए कुछ प्राणियो का शिकार करके खाना भी वर्जित नही है (शायद उस समय होने वाले युद्ध क्षेत्र में विकट परिस्तिथि को ध्यान में रख कर ऐसा कहा गया होगा) | वैष्णव पंथ के लोगो के लिए सात्विक भोजन का उल्लेख अवश्य है |

3 comments:

Anonymous said...

This is a never ending discussion. Either way, human stomach is defenitely not a place to bury animals' dead body just for taste. At least not mine.

--Deepali

Anonymous said...

OMG u r keeping track of traffic. Got to hide myself :) --Deepali

सौरभ आत्रेय said...

हिन्दू धर्म की कोई भी मान्य पुस्तक बलि को मान्यता नहीं देती और न ही मांस भक्षण की अनुमति देती है, इसका अर्थ यह है की हिन्दू धर्म में जो लोग बलि देते हैं, शराब चड़ाते हैं वो अंधविश्वास में जकड़े जा चुके हैं. ये कुरीतियाँ महाभारत के पश्चात् मुर्ख वाम-मार्गियों द्वारा चालाई गयी थी और कुछ समय पश्चात् धीरे-धीरेअनेक सम्प्रदायों ने जन्म लिया था और उसी समय हिन्दुओ में मूर्ति पूजा आरम्भ हुई थी, यह एक अति प्राचीन ऐतिहासिक तथ्य है खैर मैं यहाँ अधिक नहीं कहता हुआ यही कहना चाहता हूँ हिन्दू इन कुरीतियों, अंधविश्वासों में फंसकर ही स्वयं अन्धकार में चला गया है अन्यथा गहन अध्यन से पता चलता है की समस्त आधुनिक विज्ञान उसीकी आधारशिला पर खड़ा है.
यहाँ पर आपने जिन पुस्तकों का वर्णन किया है उनमें पुराण वैदिक कालिक नहीं है समस्त पुराणों की रचना नवीन है और मुर्ख स्वघोषित वेदान्तियों द्वारा की गयी है तभी उनमे इतनी बकवास भरी हुई है,
विद्वानों के मध्य पुराण जैसे गरुड़, विष्णु, शिव पुराण आदि हिन्दू धर्म की मान्य पुस्तकें नहीं हैं, और वेदों, उपनिषदों और मनु स्मृति आदि सत्य मान्य पुसतकों में कहीं भी मांस भंक्षण की अनुमति नहीं है,
यदि आप ऐसा कहीं पाते हैं तो वो निश्चित तौर पर प्रक्षिप्त श्लोक हैं या उनका भाष्यार्थ त्रुटिपूर्ण किया गया है. जो थोडा कुछ पुराणों में सत्य बात लिखी हुई भी हैं तो वो उनसे पूर्व सत्य मान्य ग्रंथों से ही ली गयी हैं,
आप मुझे किसी भी सत्य मान्य हिन्दू आप्त ग्रन्थ में मांस भक्षण और मदिरापान की अनुमति है इसको दिखा दीजिये किन्तु फिर भी लोग देवी-देवताओं पर शराब चड़ाते और बलि देते हुए मिल जायेंगे और कहेंगे की धार्मिक अनुष्ठान कर रहे हैं. जबकि सत्य में वो मुर्खता भरे अंधविश्वास में फसे हुए हैं और हिन्दू धर्म को बदनाम कर रहे हैं.