Subscribe

Powered By

Skin Design:
Free Blogger Skins

Powered by Blogger

आर्थिक त्सुनामी / सुनामी

लीजिये साहब न्यूटन जी का एक और सिद्धांत एक बार फिर से सही साबित हो गया. या यूँ कहू की सही सिद्ध होने के साथ साथ उसमे एक नया आयाम भी जुड़ गया. आज विश्व की अर्थव्यस्था को देखते हुए न्यूटन होते तो शायद ये कहते कि "जो चीज़ जितनी तेजी से ऊपर जाती है उससे ज्यादा तेजी से नीचे आती है - खासकर शेयर बाजार". अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि सेंसेक्स को 10 हज़ार से बीस हज़ारी होने में जहाँ 23 महीनों का समय लगा, वहीं बीस हज़ार से वापस दस हज़ार तक आने में सिर्फ़ नौ महीने लगे.

ये आर्थिक जगत में उठापठक का खेल शुरु हुआ अमरीका के सब प्राइम संकट से. इस संकट ने अभूतपूर्व स्थिति पैदा क दी. अमरीकी केंद्रीय बैंक के पूर्व गर्वनर एलन ग्रीन्सपैन की 'बाज़ार में पैसा छोड़ो' की नीति विफल साबित हुई और अमेरिका के पाँच सबसे बड़े इनवेस्टमेंट बैंक (गोल्डमैन, मोर्गन स्टेनली, मेरिल लिंच, लेहमन ब्रदर्स और बियर स्टर्न्स) में से तीन का तो नामोनिशान तक मिट गया.

देश की आर्थिक प्रगति का पहिया जो अपने पुरी गति के साथ २००७ और २००८ में घूम रहा था, और जिसने कई शेखचिल्ली नुमा हरे भरे ख्याली सब्ज बाग़ दिखाए थे वो सब एक तिलिस्म की तरह यकायक अंतर्ध्यान हो गए. ये विकास के राह पर तेजी से चलता पहिया अचानक अपनी गति खो बैठा और जोर का झटका, धीरे से नही जरा जोर से ही लगा.

वैश्विक मंदी की बढ़ती आशंका और कर्ज़ के अभाव में बुनियादी अर्थव्यवस्था की रफ़्तार धीमी पड़ने की आशंका के कारण अमरीका, यूरोप, दक्षिण पूर्वी एशिया के साथ -साथ भारत का बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज भी लगातार गोता लगा रहा है. जनवरी २००८ से दिसम्बर २००८ तक सेंसेक्स ने 21 हज़ार अंकों से लुढकते हुए साढ़े आठ हज़ार पर जा लुढ़का. जब दस जनवरी २००८ को सेंसेक्स 21 हज़ार के ऊपर ऐताहिसक उच्च स्तर पर था तब शेयर बाज़ार में सूचीबद्ध कंपनियो के शेयरों की कुल कीमत लगभग 27 लाख 74 हज़ार करोड़ रूपए थी. लेकिन साल का अंत आते आते ये कीमत घट कर अब आधी से कम हो चुकी है. कुछ बड़ी कंपनियों मसलन आईसीआईसीआई, यूनिटेक, डीएलएफ, क्रेडिट डेवलपमेंट बैंकों के शेयरों में 75 फ़ीसदी से ज़्यादा की गिरावट दर्ज हो चुकी है. कुल मिलाकर शेयर बाज़ार अब वहीं खड़ा दिखाई दे रहा है जहाँ तीन साल पहले था. सेंसेक्स की हालत तो कुछ भी ठीक है लेकिन जापान का सूचकांक पिछले 26 वर्षों के न्यूनतम स्तर पर है.

अमरीका से शुरु इस संकट ने पूरी दुनिया में कर्ज़ की समस्या पैदा कर दी क्योंकि नकदी अचानक इतनी कम पड़ गई कि बैंक या वित्तीय संस्थान ग्राहकों को पैसा देने से पहले ख़ुद अपनी स्थिति मज़बूत करना बेहतर समझ रहे हैं। भारत में हालाँकि बैंकों की हालत मज़बूत है लेकिन पहले से बढ़ी महँगाई और रूपए के डॉलर के मुक़ाबले ऐतिहासिक स्तर पर कमज़ोर होने के बाद नकदी की कुछ समस्या यहाँ भी दिखाई देने लगी. कुछ निजी भारतीय बैंकों को तो इस स्थिति का सामना इसलिए करना पड़ा क्योंकि उनकी विदेशी शाखाओं ने अमरीकी सब प्राइम बाज़ार में निवेश किया था जो डूब गया. इन सबका असर शेयर बाज़ार पर बुरे परिणाम छोड़ता नज़र आ रहा है.

विश्लेषकों के मुताबिक जब भारतीय शेयर बाज़ार शीर्ष पर था तब यहाँ विदेशी संस्थापक निवेशकों ने लगभग 12 लाख करोड़ रूपए लगाए हुए थे. सेंसेक्स को दस हज़ार से बीस हज़ार पहुँचने के दौरान विदेशी संस्थापक निवेशकों ने एक लाख करोड़ रूपए से अधिक का निवेश किया था. लेकिन अब तो उनका कुल निवेश ही सिर्फ़ चार लाख करोड़ रूपए के आस-पास बचा है.

जब बाज़ार उफ़ान पर था उस समय मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज की पूँजी सौ अरब डॉलर के पार निकल गई और अनिल भी उनके पीछे -पीछे रहे. लेकिन गिरावट के कारण मुकेश की पूँजी में 99 अरब डॉलर का नुकसान हो चुका है. उनके छोटे भाई अनिल अंबानी को लगभग 87 अरब डॉलर का नुकसान हुआ है. घाटे के मामले में दोनों बंधुओं ने आर्सेलर के मालिक लक्ष्मी मित्तल को भी पीछे छोड़ दिया है जिन्हें लगभग 68 अरब डॉलर का नुकसान हुआ है.

No comments: