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गणतंत्र दिवस और हम

लीजिये एक और गणतंत्र दिवस समारोह संपन्न हो गया। पिछले दशक की तरह देश की राजधानी दिल्ली के राजपथ पर आयोजित मुख्य समारोह में भारत ने अपनी सैन्य क्षमताओं और तरक्की की झाँकी पेश की। हर बार की तरह भारत में साठवाँ गणतंत्र दिवस कड़े सुरक्षा इंतज़ामों के बीच मनाया गया। दिवस समारोह के मौक़े पर केंद्र सरकार ने सुरक्षा के कड़े इंतज़ाम किए थे।

गृह मंत्रालय ने राज्यों के साथ साथ जनता को भी सतर्क रहने को कहा था | गृह मंत्रालय ने सभी राज्य सरकारों और जनता से अपील की थी कि वे गणतंत्र दिवस पर सतर्कता बनाए रखें | दिल्ली में परे क्षेत्र और राजपथ के आसपास के सभी रास्तों को पुलिस ने अपनी निगरानी में ले लिया था और लगभग 20 हज़ार सुरक्षाकर्मी तैनात किए गए थे या यूँ समझ लीजिये दिल्ली को एक छावनी में तब्दील कर दिया गया था। परेड को देखते हुए हेलीकॉप्टरों के ज़रिए निगरानी रखी जा रही थी और एंटी एयरक्राफ़्ट गन तैनात की गई थी। राजधानी में जगह-जगह पर नाकेबंदी थी. सीमावर्ती राज्यों से राजधानी क्षेत्र में प्रवेश कर रहे सभी वाहनों की तलाशी ली जा रही थी। यहाँ तक कि दिल्ली के कई रास्तों को गणतंत्र दिवस के उपलक्ष में आम यातायात बंद रखा गया था और दोपहर तक के लिए मैट्रो रेलों के आवागमन को भी रोक दिया गया था। ये कैसा समारोह है, जिसमे आम आदमी के यातायात को तो बंद कर दिया जाता है और दुनिया के देशो को हमारी सेन्य क्षमताओं से अवगत करवाया जाता है। मानता हूँ कि आज के दौर में जनता की सुरक्षा जरुरी है लेकिन क्या ये सुरक्षा साल में एक या दो ही दिन निश्चिंत करनी चाहिए। क्या सुरक्षा के नाम पर लोगो को घर में बंद हो कर बैठने को बोल देना चाहिए और ट्रेन, बस इत्यादि बंद कर देने ?

सुरक्षा देनी है तो ऐसी सुरक्षा हो जहाँ देश का हर नागरिक अपने रोजमर्रा के काम पर जाते हुए सुरक्षित महसूस कर सके। आज देश में हज़ार व्यक्ति पर एक पुलिस वाला है। हांगकांग में प्रति हज़ार व्यक्ति पर ४.७ मलेशिया में ३.४ और थाईलैंड में प्रति हज़ार व्यक्ति पर ३.३ पुलिस वाले है। पहले सबसे कम पुलिस, वो भी भ्रष्ट, फिर न उनके पास उचित प्रशिक्षण, न आधुनिक हथियार और उसमे से २५% (एक चोथाई) नेता लोगो की सेवा में लगा दी जाए तो आम आदमी को अपनी सुरक्षा ख़ुद ही करनी पड़ेगी।

पहले देश की सुरक्षा व्यवस्था चाक चोबंद करो, आम जनता में सुरक्षा की भावना पैदा करो ताकि फिर से कारगिल युद्ध और ताज/ओबेरॉय मुंबई में हुई घटनाओं की पुनरावृति न हो। उसके बाद अगर हम गणतंत्र या स्वाधीनता दिवस मनाये तो ज्यादा सार्थक होगा।


1 comment:

dschauhan said...

भावेश जी आप बिलकुल सही कह रहे हैं, परन्तु हमारे देश की सुरक्षा तो उन नेताओं के हाथों में खिलौना बन कर रह गई है जिनको देश से ऊपर अपनी सुरक्षा की चिंता लगी रहती है!
देवेन्द्र सिंह चौहान