Subscribe

Powered By

Skin Design:
Free Blogger Skins

Powered by Blogger

योग एक परिचय

योग का अर्थ है चित्तवृत्ति का निरोध । चित्तभूमि या मानसिक अवस्था के पाँच रूप हैं
  1. क्षिप्त
  2. मूढ़
  3. विक्षिप्त
  4. एकाग्र और
  5. निरुद्व
प्रत्येक अवस्था में कुछ न कुछ मानसिक वृत्तियों का निरोध होता है । क्षिप्त अवस्था में चित्त एक विषय से दूसरे विषय पर दौड़ता रहता है । मूढ़ अवस्था में निद्रा, आलस्य आदि का प्रादुर्भाव होता है । विक्षिप्तावस्था में मन थोड़ी देर के लिए एक विषय में लगता है पर तुरन्त ही अन्य विषय की ओर चला जाता है । यह चित्त की आंशिक स्थिरता की अवस्था है जिसे योग नहीं कह सकते । एकाग्र अवस्था में चित्त देर तक एक विषय पर लगा रहता है । यह किसी वस्तु पर मानसिक केन्द्रीकरण की अवस्था है । यह योग की पहली सीढ़ी है । निरुद्ध अवस्था में चित्त की सभी वृत्तियों का लोप हो जाता है और चित्त अपनी स्वाभाविक स्थिर, शान्त अवस्था में आ जाता है । इसी निरुद्व अवस्था को ‘असंप्रज्ञात समाधि’ या ‘असंप्रज्ञात योग’ कहते हैं । संप्रज्ञात समाधि वह स्थिति है जिसमें ध्यान के विषय का अनुभव होता है, और जब ध्यान के विषय की चेतना भी अदृश्य हो जाती है तो यह असम्प्रज्ञात समाधि है।

No comments: