हमारा देश भी पूर्ण रूप से विविधताओं से भरा हुआ है. अब सौ करोड़ की आबादी होगी तो इन्द्रधनुष के रंगों की अलग अलग तरह के रंग तो मिलेंगे ही। कुछ लोग ऐसे है जो भगवान पर आँख मूंद कर विश्वास कर लेते है, वही कुछ ऐसे भी है जो भगवान के विश्वास पर आँख मूंद लेते है। आज कुछ चर्चा महाभारत और आज के जमाने पर उस की प्रासंगकिता पर. महाभारत के रचियता महिर्षि वेदव्यास है. महर्षि व्यास त्रिकालज्ञ थे तथा उन्होंने दिव्य दृष्टि से देख कर जान लिया कि कलियुग में धर्म क्षीण हो जायेगा। इसीलिये महर्षि व्यास ने वेद का चार भागों में विभाजन कर दिया जिससे कि कम बुद्धि एवं कम स्मरणशक्ति रखने वाले भी वेदों का अध्ययन कर सकें। व्यास जी ने उनका नाम रखा - ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। वेदों का विभाजन करने के कारण ही व्यास जी वेद व्यास के नाम से विख्यात हुये।कहते है हिंदू धर्म में जितने भी ग्रन्थ लिखे गए है, उनके प्रत्येक श्लोक के चार अर्थ निकलते है - शब्दार्थ, भावार्थ, व्यंगार्थ (हास्य अर्थ) और गुडार्थ (रहस्य अर्थ). शायद इतनी समझ तो आज के कर्म कान्डियो में नही है की हर श्लोक की इतनी विस्तृत व्याख्या कर सके. मैं इन सब से हट कर अपने नजरिये से आज इस ग्रन्थ की प्रासंगिकता पर अपने विचार रख रहा हूँ।
आज जिन्दगी के इस कुरुक्षेत्र में प्रत्येक व्यक्ति अपनी जीवन की महाभारत लड़ रहा है. क्या

महाभारत केवल के धार्मिक, पौराणिक ग्रन्थ है, एक किताब है या आज के तनाव भरे जीवन से कुछ सीख कर जीवन को सफल बनाने के लिए पुस्तक है. क्या हमने कभी सोचा है की हम अर्जुन बन अपने इस शरीर रूपी रथ में बैठ कर हर रोज महाभारत लड़ रहे है। सबसे पहले बात रथ के पाँच घोडो की। अर्जुन के रथ में घोडे पाँच ही क्यों थे. ये पाँच घोडे और कुछ नही हमारे शरीर की पाँच ज्ञानेन्द्रिय (आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा) है जिनकी तन्मात्रा है रूप, रस, श्रवन, गंध और स्पर्श. ये पाँच घोडे हमारे मन रूपी अर्जुन को इधर उधर भटकाने का काम करते है और इस शरीर रूपी रथ को सत्य से परे करते रहते है. यहाँ पर हमारी बुद्धि सारथि (भगवान श्री कृष्ण) का काम करती है और सही मार्ग पर प्रेरित करते रहती है. अगर अपने आसपास नज़र फैलाये तो हम पाएंगे की सच्चाई की राह पर चलने वाले पांडव आज चार पाँच ही है जबकि छल कपट, द्युत आदि से अपना काम बनाने वाले कौरवों की संख्या कई सौ में है. जिन लोगो के हाथ में ताकत है, अक्सर हमें अपने आस पास रहने वाले इन्ही लोगो से हर रोज लड़ना पड़ता है. जो लोग फ़ैसला करने में सक्षम है वो या तो आज धृतराष्ट्र के समान अंधे बन चुके है, या गांधारी की तरह आँख पर पट्टी बाँध कर कानून की मूर्ति के रूप में विराजमान
है। जो लोग देख सकने में असमर्थ नही है वो या तो पुत्र मोह में शर्त त्याग कर द्रोण बने हुए है या फिर भीष्म पितामाह की तरह लाचार और बेबस है. क्या आपको नही लगता आज के सन्दर्भ में हर रोज संघर्षो के इस कुरुक्षेत्र में हर व्यक्ति अपनी अपनी जिन्दगी की महाभारत लड़ रहा है ?
1 comment:
it's hard to find all of that summarized info about vidya & pooja at one place.
--Deepali
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