हर ख़ुशी है लोगों के दामन में,
पर एक हंसी के लिए वक़्त नहीं.
दिन रात दौड़ती दुनिया में,
ज़िन्दगी के लिए ही वक़्त नहीं.
माँ की लोरी का एहसास तो है,
पर माँ को माँ कहने का वक़्त नहीं,
सारे रिश्तों को तो हम मार चुके,
अब उन्हें दफ़नाने का भी वक़्त नहीं.
सारे नाम मोबाइल में हैं,
पर दोस्ती के लिए वक़्त नहीं
गैरों की क्या बात करें,
जब अपनों के लिए ही वक़्त नहीं.
आँखों में है सपने बड़े,
पर सोने का वक़्त नहीं,
दिल है ग़मों से भरा हुआ,
पर रोने का भी वक़्त नहीं,
पैसों की दौड़ में ऐसे दौड़े,
की थकने का भी वक़्त नहीं,
पराये एहसासों की क्या कद्र करें,
जब अपने सपनो के लिए ही वक़्त नहीं,
तू ही बता ऐ ज़िन्दगी,
इस ज़िन्दगी का क्या होगा,
की हर पल मरने वालों को,
जीने के लिए भी वक़्त नहीं .......
वक़्त नहीं - इस भाग दौड़ भरी जिन्दगी में
Posted by
Bhavesh (भावेश )
at
Thursday, December 17, 2009
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5 comments:
दिन रात दौडती दुनिया मे ज़िन्दगी के लिये वक्त नहीं
बहुत सुन्दर है आपकी रचना। बधाई और शुभकामनायें
आज के व्यस्त और भौतिकवादी समाज का आईना
बहुत बढ़िया लिखा है.....
माँ की लोरी का एहसास तो है,
पर माँ को माँ कहने का वक़्त नहीं,
सारे रिश्तों को तो हम मार चुके,
अब उन्हें दफ़नाने का भी वक़्त नहीं.
very true, that's how we r living now.
--Deeps
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