१९२९ में पायलट का लाईसेन्स लेने के बाद जे.आर.डी टाटा ने सत्राह साल बाद १९४६ में देश में पहली विमान सेवा टाटा एयरलाइन्स शुरू की थी. देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु, ने अपनी की हुई गई बड़ी गलतियों में एक गलती का इजाफा करते हुए, में इसे राष्ट्रीकृत कर के एयर इंडिया बना दिया.
करीब सात दशक बाद, मार्च २००७ में, अब तक अपने अस्तित्व को खोज रही, इंडियन एयरलाइन्स और एयर इंडिया के विलय को मंत्रिमंडल ने मंज़ूरी दे दी गई और उम्मीद की जा रही थी की इस भारतीय विमानन क्षेत्र की सबसे बड़ी एयरलाइन का कारोबार लगभग 15 हज़ार करोड़ रुपए से अधिक होगा. सरकार ने तब कहा था कि दोनों कंपनियों के एकीकरण में एक या दो साल लग सकते हैं लेकिन विलय से एक बड़ी कंपनी अस्तित्व में आएगी. विलय पर लगभग दो अरब रुपए खर्च होंगे लेकिन सालाना लाभ में लगभग छह अरब रुपए की बढ़ोत्तरी होने की उम्मीद थी.
आइये अब दो साल बाद जमीनी हकीक़त से जरा रूबरू हो जाए. छः अरब का मुनाफा तो दूर, अनुमान है कि इस साल एयर इंडिया को क़रीब पाँच हज़ार करोड़ रुपए का घाटा हुआ है और कंपनी को अपने कर्मचारियों को देने के लायक वेतन भी नहीं है. वित्तीय संकट में फँसे सरकारी उपक्रम एयर इंडिया की हालत दुरुस्त करने के लिए सरकार ने सख़्त क़दम उठाने का निर्णय किया है. सरकार के मुताबिक़ इस राष्ट्रीय एयर लाइन के प्रबंध तंत्र में 30 दिन में भारी फेरबदल किया जाएगा. प्रफुल्ल पटेल ने कहा कि प्रबंध तंत्र में ऐसे लोगों को चुना जाएगा जो ईमानदार और प्रतिष्ठित होंगे.
उन्होंने विश्वास जताया कि दो साल के भीतर एयर इंडिया की हालत ठीक हो जाएगी. पहले सात दशक फिर दो साल और अब दो साल के बाद, अभी भी वो ही दो साल. मंत्री बदल गए, सरकार फिर से आ गई लेकिन ये दो साल तब से लेकर अब तक टस से मस नहीं हुए. वाह साहब वाह, ये गोया दो साल नहीं हो गए कोई मर्द की जुबान हो गई, एक बार बोल दिया तो बस बोल दिया.
एक बार फिर से सरकार टाटा की शरण में है. बस फर्क ये है की दशको पहले, पिछली बार सरकार ने जे.आर.डी टाटा से एयरलाइन्स ले ली थी और अब उनके भतीजे रतन टाटा को ये एयरलाइन्स को खस्ताहाल में सँभालने को कह रही है. खबरों के मुताबिक रतन टाटा इस बात पर राजी हो गए है और जल्द ही प्रधानमंत्री इसकी घोषणा कर देंगे.
माना की इस समय विश्व की लगभग सभी विमान कंपनियां (कुछेक अपवाद अभी भी है) घाटे में चल रही है और इसका मुख्या कारण पिछले साल तेल की कीमतों में लगी आग और विश्व आर्थिक मंदी को जाता है पर हमारी एयरलाइन का तो जन्म ही घाटे में चलने के लिए हुआ लगता है। हमारे यहाँ पर प्रति विमान दो सौ तीस (२३०) कर्मचारी है जो विश्व में अन्य एयर लाइंस से एक तिहाई से ज्यादा है. इतने कर्मचारी होने के बावजूद घटिया सेवा और यात्रियो के प्रति उदासीनता का चलते कोई भी एयरलाइन रेटिंग एजेन्सी इस एयरलाइन को तीन सितारा विमान कंपनी से ऊपर का दर्जा देने को तैयार नहीं है. सरकार एक आदेश जारी कर के सभी सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों को सरकारी खर्चे पर देश और विदेश में यात्रा करने के लिए केवल एयर इंडिया को अधिकृत करने का मन बना रही है.
आप जबरदस्ती करके कुछ सरकारी कर्मचारियों को जबरदस्ती एयर इंडिया की सैर भी करवा देंगे तो क्या उससे घटा ख़त्म हो सकेगा. याद रखे ये वो ही एयर इंडिया है जिसने अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री होते हुए एक वक़्त प्रधानमत्री के विशेष विमान के यूरोप से लौटते समय प्रधानमंत्री तक को बासी खाना दे दिया था जिसकी प्रधानमंत्री ने औपचारिक शिकायत दर्ज करवाई थी. आप प्यासे को कुँए तक ले जा सकते है लेकिन पानी थोडी ही पिला सकते है. बजाये इसके की सरकार इस तरह की कोई बेतुकी निति अपनाए, सरकार को चाहिए की विमान परिचालन गतिविधियों में व्यावसायिक कौशल और सुधार लाये। और ये ही बात अमूमन देश के हर उद्योग पर लागु होती है जिसे आज सरकार चला रही है।
(अगले लेख में केंद्र सरकार के हाल में किये हुए कुछ अच्छे फैसलों पर एक नज़र)
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