देश को आजाद हुए आज साठ से भी ज्यादा साल हो चुके है और इन साठ सालो के सरकार के रिपोर्ट कार्ड में जमीनी तौर पर तरक्की के नाम पर इक्का दुक्का ही कार्य देखने को मिलता है. हमारे देश के तत्कालीन भाग्य निर्माताओ ने जो देश की जो खोखली बुनियाद रखी थी उसे समय की दीमक कब की चाट गई है. परिवर्तन संसार का नियम है पर हमारे देश और देशवासी इस परिवर्तन से अनभिज्ञ रहे और समय अपनी रफ़्तार से आगे बढ़ गया.
जहाँ गाँधी जी ने आजादी के वक़्त बंटवारे की नींव रखी, वही नेहरु जी ने भारतीय राजनीति में वंशवाद की नींव रखी जिसमे तुष्टिकरण का सीमेंट लगाया, आरक्षण की मिटटी लगाईं और हिंदी, अहिन्दी भाषी दीवार खड़ी कर दी. नेहरु जी ने रूस और चीन के नक़ल करते हुए सार्वजनिक उद्योग के मॉडल का अनुसरण किया जो आज विश्व में हर जगह पूरी तरह से फ्लॉप हो चुका है.
इस बार के चुनाव परिणाम देख कर लगता है कि, जरुरत से ज्यादा अति होने के बाद, अब शायद बिहार जनता को अक्ल आ गई है लेकिन अभी उत्तर प्रदेश के लोगो में अक्ल आनी बाकी है। उत्तर प्रदेश में पिछले दो साल से कोई भी देशी या विदेशी औधोगिक घराना नहीं आया है. मुख्यमंत्री हजारो करोड़ रूपये खर्च करके अपनी प्रतिमाये लगा रही है. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी को गिरफ्तार कर लिया जाता है, उनके ऊपर दलित उत्पीड़न की विभिन्न धाराएँ लगा दी जाती है और उनका घर जला दिया जाता है क्योंकि उन्होंने सरकार पर आरोप लगाया कि उत्तर प्रदेश में एक दलित महिला के बलात्कार के बाद पुलिस महानिदेशक बिक्रम सिंह हेलीकॉप्टर पर औसतन सात लाख रूपये खर्च करके पीडिता को पच्चीस हज़ार रूपये देने जाते है. शायद तुगलकी राज्य जिसमे चमडे के सिक्के चलवाए गए थे वो भी इस कदर के जंगली राज से बेहतर रहा होगा. ये सब गाँधी नेहरु की गलत नीतियों के नतीजे है जिसकी वजह से सत्ता की चाबी गलत हाथो में पड़ गई और देश की राजनीती अपराधिक, जातिगत और दलगत हो कर रह गई.
हमारे यहाँ आजादी के समय से शुरू हुए लगभग सारे सरकारी उपक्रम शुरू से ही बुरी तरह घाटे में चल रहे है. घाटे में फंसे हुए और चरमराये हुए ये सरकारी उपक्रम अपने साथ साथ देश के विकास का भी बंटाधार कर रहे है. हाल ही में जब एयर इंडिया ने सरकार से पॉँच सौ करोड़ रूपये की मांग की तो वित्तीय संकट में फँसे सरकारी उपक्रम एयर इंडिया की हालत दुरुस्त करने के लिए सरकार ने सख़्त क़दम उठाने का निर्णय किया. सरकार ने कहाँ की एयर लाइन के बोर्ड में बड़ा रद्दोबदल होगा, इस क्रम में कुछ लोगों की छुट्टी भी की जायेगी और प्रबंध तंत्र में ऐसे लोगों को चुना जाएगा जो ईमानदार और प्रतिष्ठित होंगे. यानि की अब तक बेईमान और अप्रतिष्ठित लोगो को प्रतिष्ठामान बना कर सरकार जो छल कर रही थी उसे रोकने का प्रयास किया जायेगा.
चलिए देर से ही सही केंद्र सरकार को अगर ये समझ आ गया है की सरकार का काम निति निर्धारण करना है और उद्योग धंधे चलाना सरकार का काम नहीं उद्योगपतियों का काम है तो सचमुच काफी फक्र की बात है. हाल ही में सरकार ने दो अच्छे निर्णय लिए है. हाल ही में इंफ़ोसिस के सह-संस्थापक नंदन निलेकनी जिनका नाम टाइम पत्रिका की 100 सबसे प्रभावशाली लोगों की सूची में शामिल है उनको सरकार ने यूनीक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी का प्रमुख बनाया गया है. भारत जैसे विशाल देश में इतने बड़े प्रोजेक्ट को अगर सफल बनाना है तो उद्योग जगत के इस तरह के लोगो के सहारे ही बनाया जा सकता है.
दूसरी सकारात्मक खबर ये है की एयर इंडिया के बोर्ड के अध्यक्ष श्री रतन टाटा को बनाया जा रहा है। रतन टाटा ने इसकी अनौपचारिक सहमती दे दी है और जल्द ही प्रधानमंत्री इस बारे में घोषणा करेंगे। यानि नेहरूजी ने जिस एयर लाइन को टाटा से लिया था आज सरकार उसे कंगाल और खस्ताहाल करके टाटा कर रही है.
सरकार के ये दोनों निर्णय एक बोझल बजट के बाद कुछ अच्छे संकेत है. लेकिन इसमें सबसे बड़ी समस्या क्रियान्वन की है. सरकार उच्च पदों पर सही व्यक्ति आसीन कर दे जो सही निति निर्धारण और फैसले ले सके, लेकिन अन्तोगत्वा कार्य तो सरकारी अधिकारी और बाबु ही करेंगे
सरकार पहले भी श्री राजीव गाँधी के समय १९८४ में अमेरिका से डा. सत्यनारायण गंगाराम पित्रोदा या डा. सैम पित्रोदा को जिनके नाम पर बेल लैब अमेरिका में कई पेटेंट है, भारत लाकर C-DOT का अध्यक्ष बनाया था. डा. पित्रोदा ने देश में STD/ISD सेवा के माध्यम से उस वक़्त दूरसंचार क्षेत्र में क्रांति ला दी थी और कई हज़ार रोजगार भी उत्पन्न किये थे. लेकिन फिर वी पी सिंह के प्रधानमंत्री बनने के बाद इन पर राजनितिक और भ्रष्टाचार के आरोप लगे और एक हर्दयघात के बाद इन्हें पुनः अमेरिका लौटना पड़ा.
अगर नंदन निलेकनी और रतन टाटा जैसे प्रभावशाली व्यक्तियों को बिना सरकारी हस्तक्षेप के दफ्तरशाही से मुक्त रख कर अपना काम करने की इजाजत दी जाए और उन्हें खुद अपनी टीम चुनने का अवसर दिया जाए तब जा कर सरकार के इस निर्णय के कुछ सकारात्मक नतीजे मिलने की सम्भावनाये है।
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