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किसी भी चर्चा को बहस बनने से कैसे रोके

हम लोग प्रतिदिन अपने व्यक्तिगत और व्यावसायिक पेशे में अन्य लोगो से चर्चा करते है । ये सर्वविदित है की वार्तालाप में सम्मिलित हर व्यक्ति का अपना एक़ दृष्टिकोण होता है. हर व्यक्ति अपने फायदे को इस चर्चा में सबसे ऊपर रख कर चर्चा में हिस्सा लेता है. ऐसे में एक को नुकसान पहुंचा कर दुसरे को फायदा देने की प्रवर्ती हावी होती है। एक ऐसा रास्ता जिसमे दोनों पक्षों की जीत हो इसके प्रयास कम ही किये जाते है. इसीलिए अक्सर चर्चा बहस में तब्दील हो जाती है। जरुरी नहीं की ऐसी चर्चा केव व्यवसाय सम्बन्धी हो, ये चर्चा घरेलु या व्यक्तिगत भी हो सकती है जो तत्काल बहस में बदल जाती है। जिसका नतीजा सब पक्षों की हार होता है।

इन चर्चाओ को बहस बन कर सबके हारने की बजाये कैसे इसमें से सबको जीत दिलाने वाली स्थिति की तरफ बढने का प्रयास किया जाये, यही मैंने अपने इस लेख के द्वारा समझाया गया है।

प्रसिद्ध लेखक डेल कार्नेगी के अनुसार किसी भी बहस से बचने का सबसे अच्छा तरीका है की उसमे शामिल ही मत हो | लेकिन ये रबार मुमकिन नहीं हो पाता चाहते हुए भी हम बहस में उलझ जाते है जिसके परिणाम अक्सर कारात्मक ही होते है। आगे बढने से पहले ये जरुरी है की हम बुनियादी तौर पर चर्चा और बहस में अंतर को समझे. आइये चर्चा और बहस में फर्क पर एक नज़र डालते है।





































चर्चा
बहस
चर्चा में शामिल प्रत्येक व्यक्ति जीतता हैबहस में शामिल प्रत्येक व्यक्ति हारता है
सामने वाला व्यक्ति समस्या सुलझाने में हमारा भागीदार है सामने वाला व्यक्ति हमारा विरोधी है और उसको हराना है
हम विचारो का आदान प्रदान करते है, अन्य विकल्प तलाशते है और उन विकल्प के नफा नुकसान को तोलते हैहम अपनी बात पर अड़ जाते है, लकीरे खींच देते है और विपक्ष पर आक्रामक रवैया अपनाते है
हम दुसरे व्यक्ति का नजरिया समझने की कोशिश करते है और उस व्यक्ति के दृष्टिकोण को तलाशते है जिसे हमने पहले कभी नहीं सोचा सर्वप्रथम तो हम विरोधी को सुनते ही नहीं है, और अगर सुनते भी है तो उसकी बात में कमजोर और विवादित मुद्दे ढूंढ़ने के लिए
हम मुद्दे पर ज्यादा जानकारी प्राप्त करने की कोशिश करते है. उस मुद्दे पर अपना और सामने वाले का नजरिया समझने की कोशिश करते है हम किसी भी नए तर्क को सुनने को तैयार ही नहीं है और अपने विचार पर अड़ जाते है
हमें लोगो का सहयोग अपेक्षित होता है, न की उनकी मूक सहमतीहम अपनी बात को श्रेष्ट और विरोधी की बात को कमजोर सिद्ध करने में लग जाते है.
हम सामने वाले पर व्यक्तिगत आरोप न लगाकर एक सभ्य सामाजिक दायरे में रह कर अपनी असहमति प्रकट करते है.अगर हम बहस को जीत भी जाते है तो भी एक मित्र या बिज़नस पार्टनर खो ही देते है



चर्चाओ को बहस बनाने से रोकने के कुछ कारगर कदम :

  • वाद विवाद से बचे : किसी भी चर्चा में दलीले पेश कर तर्क वितर्क न करे. सभ्य बने. जितनी आप अपने विचारो की कद्र करते है उतना ही सम्मान सामने वाले के विचारो को दे. बिना आक्रामक मुद्रा अपनाए, निश्चयात्मक रहे।
  • मुद्दों में दिलचस्पी रखे, न की कोई पूर्वनियोजित स्तिथि पर अड़ जाए : मसलन पहले ऐसा कुछ किया था तो ऐसा हुआ था इसलिए हर बार ऐसा ही होगा ये नहीं सोचे बल्कि ये देखे की पिछली असफलता से कैसे दूर रहा जाए.
  • स्पष्ट और सम्बंधित प्रश्न पूछे : मुद्दों से सम्बंधित प्रश्न पूछे और प्रश्न भी स्पष्ट हो जिनका उत्तर "हाँ" या "ना" में नहीं हो. जैसे क्या आपको मेरा ये प्रस्ताव स्वीकारीय है ? पूछने की बजाये ये पूछे कि "आपको मेरा प्रस्ताव कैसा लगा ?" जिससे सामने वाले को जवाब देने की आज़ादी मिले.
  • यदि आप गलत है तो स्वीकार कर ले : नयी जानकारी प्रकाश में अपनी राय को बदलने में अहं को बीच में मत आने दे. नए तथ्यों को समझ कर अपनी राय बदलना समझदारी और परिपक्वता की निशानी है.
  • यदि आप सही है तो सामने वाले को नीचा दिखने का प्रयास नहीं करे : ध्यान रखे आपका ध्येय लोगो का विश्वास जीतना है न कि उनको नीचा दिखाना. आप अगर यहाँ दरियादिली दिखायेंगे तो शर्तिया आपका फायदा कही ज्यादा होगा.
  • सुने : ध्यान पूर्वक सामने वाले व्यक्ति को सुने और बीच में टोके नहीं. वक्ता के हाव, भाव, इशारो को अपने दिल, दिमाग, कान और आँखों से सुने और देखे. केवल उन शब्दों पर मत जाए जो आपके कान में पड़ रहे है.
  • नजरिया समझे : प्रत्येक व्यक्ति जो कुछ भी करता है, उसमे उसका एक नजरिया होता है। उस नजरिये को समझे. अगर आप पहले से ही उस व्यक्ति की आलोचना में लग जायेंगे तो संभव है को वो अपनी बात को और भी कड़ाई से रखे और अप्रसन्न हो अपनी बात पर अड़ जाए. इसके बजाये उसकी बात में छुपे हुए कारण को खोजे हो सकता है आपको उस नजरिये की जड़ तक पहुँच जाए.
  • सहमती बनाये : अक्सर हम लोगो से सिद्धान्तक रूप से सहमत होते है पर उनकी कार्य प्रणाली से नहीं. हमें उस कार्य को दुसरे तरीके से करना ज्यादा अच्छा लगता है. ऐसे में आम सहमती बनाये और सामने वाले व्यक्ति को एक मुसीबत या मुद्दे को हल करने वाला एक साथी समझे न की अपना कोई मित्र या शत्रु.

बस इन बातो पर गौर फरमाएं और देखे आप कैसे जीवन की रह में सफलता की तरफ बढ़ते है. और हाँ अपना कुछ समय निकल पर इस लेख पर अपने विचार अवश्य वक्त करे. यदि किसी कारण से आपके पास समय का आभाव है तो निम्नलिखित विकल्प में से एक चुन कर अपनी प्रतिक्रिया मुझ तक अवश्य पहुचने का कष्ट करे. (चित्र : साभार गूगल)

अगली कड़ी में : आधुनिक कॉरपोरेट मैनेजमेंट और श्रीमाद्भाग्वाद गीता

2 comments:

Mithilesh dubey said...

बहुत ही उम्दा लिखा है आपने , पूर्णतया सहमत हूँ ।

संगीता पुरी said...

बस एक पंक्ति भी कम नहीं .. सिर्फ अपने मार्ग को ही सही न समझे .. दूसरों की भी सुनें और समझने की कोशिश करें !!