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धार्मिक मान्यताएं

वेद प्राचीनतम ग्रंथ हैं। ऐसी मान्यता है की वेद परमात्मा के मुख से निकले हुये वाक्य हैं। वेद शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के 'विद्' शब्द से हुई है। विद् का अर्थ है जानना या ज्ञानार्जन, इसलिये वेद को "ज्ञान का ग्रंथ कहा जा सकता है। हिंदू मान्यता के अनुसार ज्ञान शाश्वत है अर्थात् सृष्टि की रचना के पूर्व भी ज्ञान था एवं सृष्टि के विनाश के पश्चात् भी ज्ञान ही शेष रह जायेगा। चूँकि वेद ईश्वर के मुख से निकले और ब्रह्मा जी ने उन्हें सुना इसलिये वेद को श्रुति भी कहा जाता हैं। वेद संख्या में चार हैं और - चारों वेद ही हिंदू धर्म के आधार स्तम्भ हैं। आइये हिंदू धर्म और उससे जुड़े कुछ तथ्यों से आपको अवगत कराये।
चार वेद :
  1. ऋग्वेद
  2. सामवेद
  3. अथर्ववेद
  4. यजुर्वेद

पूजा की तीन विधिया :
  1. वैदिक,
  2. तांत्रिक,
  3. मिश्रित
युग :
  1. सतयुग,
  2. द्वापर,
  3. त्रेता,
  4. कलयुग
सतयुग के चार चरण :
  1. सत्य,
  2. दया,
  3. तप,
  4. दान
धर्म के चार चरण :
  1. तप,
  2. पवित्रता,
  3. दया,
  4. सत्य
कलयुग के स्थान :
  1. द्युत (असत्य),
  2. मधःपान (मद),
  3. स्त्रीसंग (आसक्ति),
  4. हिंसा (नि्र्दयता, वैर),
  5. सुवर्णं (धन, रजोगुण)
चार पुरुषार्थ :
  1. धर्म,
  2. अर्थ,
  3. काम,
  4. मोक्ष
तीन गुण :
  1. सत (ज्ञान),
  2. रजो (कर्म),
  3. तमो (अज्ञान)
अठारह पुराण
  1. ब्रह्मपुराण
  2. पद्मपुराण
  3. विष्णुपुराण
  4. शिवपुराण
  5. श्रीमद्भावतपुराण
  6. नारदपुराण
  7. मार्कण्डेयपुराण
  8. अग्निपुराण
  9. भविष्यपुराण
  10. ब्रह्मवैवर्तपुराण
  11. लिंगपुराण
  12. वाराहपुराण
  13. स्कन्धपुराण
  14. वामनपुराण
  15. कूर्मपुराण
  16. मत्सयपुराण
  17. गरुड़पुराण
  18. ब्रह्माण्डपुराण

अष्टांग योग :
  1. यम् (सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह, ब्राह्चार्य )
  2. नियम (सोच, संतोष, स्वाध्याय, तपास, ईश्वर प्राणिधान)
  3. आसन
  4. प्राणायाम
  5. प्रत्याहार
  6. ध्यान
  7. धारणा
  8. समाधि
पाँच महाभूत :
  1. पृथ्वी,
  2. जल,
  3. तेज,
  4. वायु,
  5. आकाश
पाँच तन्मात्र (विषय) :
  1. शब्द,
  2. स्पर्श,
  3. रुप,
  4. रस,
  5. गन्ध
पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ :
  1. क्षोत्र (कान),
  2. त्वचा (चमड़ी),
  3. चक्षु (आँख),
  4. रसना (जीभ),
  5. नासिका (नाक)
पाँच कर्मेन्द्रियाँ :
  1. वाक,
  2. पाणि,
  3. पाद,
  4. पायु,
  5. उपस्थ
दस इन्द्रियाँ = पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ + पाँच कर्मेन्द्रियाँ

नौ तत्व : पुरुष, प्रकृति, महातत्व, अहंकार पाँच भुत

सोलह कलाएँ
: दस इन्द्रियाँ, एक मन और पाँच भुत

मनुष्य की तीन अवस्थाएँ :
  1. जाग्रत,
  2. स्वपन,
  3. सुषुप्ति
पाँच प्रकार के प्राण :
  1. प्राण,
  2. अपान,
  3. उदान,
  4. व्यान,
  5. समान
चार ऋषि :
  1. सनक,
  2. सनन्दन,
  3. सनातन,
  4. सनत्कुमार
चार प्रकार के प्राणि :
  1. जरायुज (स्तनधारी),
  2. स्वेदज (पसीने से पैदा होने वाले कीट पतंगे),
  3. अण्डज (अंडे से पैदा होने वाले रेंगनेवाले जंतु ),
  4. उद्भिज्ज (बीज से पैदा होने वाले)
भगवान के सात दर्शन (झांकी) :
  1. मंगला,
  2. धूप,
  3. श्रंगार,
  4. राजभोग,
  5. ग्वाल,
  6. सन्धया,
  7. शयन
पाँच प्रकार के यज्ञ :
  1. अग्निहोत्र,
  2. दर्श,
  3. पौर्णमास,
  4. चातुर्मास्य और
  5. पशु सोम
पाँच प्रकार के मोक्ष :
  1. सालोक्य (भगवान के नित्यधाम में निवास),
  2. सार्ष्टि (भगवान के समान एश्वर्यभोग),
  3. सामीप्य (भगवान की नित्य समीपता),
  4. सारुप्य (भगवानका-सा रुप) और
  5. सायुज्य (भगवान के विग्रहमें समा जाना, उनसे एक हो जाना या ब्रहारुप प्राप्त कर लेना)
सात द्वीप :
  1. जम्बू,
  2. प्लक्ष,
  3. शाल्मलि,
  4. कुश,
  5. क्रोच्ञ,
  6. शाक और
  7. पुष्कर
मनुष्य के छह गुण :
  1. भुख
  2. प्यास,
  3. शोक
  4. मोह,
  5. जरा
  6. मृत्यु
मनुष्य के छह शत्रु :
  1. काम,
  2. क्रोध,
  3. लोभ,
  4. मोह,
  5. मद और
  6. मत्सर
छ: प्रकार के आततायी :
  1. आग लगानेवाला,
  2. जहर देनेवाला,
  3. बुरी नीयत से हाथ मे शस्त्र ग्रहण करने वाला,
  4. धन लुटनेवाला,
  5. खेत छिननेवाला और
  6. स्त्री छिननेवाला
आठ प्रकार के विवाह (मनुस्मृति तीसरा अध्याय) :
  1. ब्राहा,
  2. देव,
  3. आर्ष,
  4. प्राजापत्य,
  5. आसुर,
  6. गान्धर्व,
  7. राक्षश और
  8. पैशाच
नौ प्रकार की भक्ति :
  1. भगवान के गुण-लीला-नाम आदि का श्रवण,
  2. उन्ही का कीर्तन,
  3. उनके नाम, रुप आदि का स्मरण,
  4. उनके चरणों की सेवा,
  5. पूजा-अर्चना,
  6. वन्दन,
  7. दास्य,
  8. सख्य और
  9. आत्मनिवेदन
मोक्ष के दस साधन :
  1. मौन,
  2. ब्रहाचर्य,
  3. शास्त्र-श्रवण,
  4. तपस्या,
  5. स्वाध्याय,
  6. स्वधर्मपालन,
  7. युक्तियों से शास्त्रों की व्याख्या,
  8. एकान्तसेवन,
  9. जप और
  10. समाधि
ग्यारह रुद्र :
  1. शम्भु,
  2. पिनाकी,
  3. गिरीश,
  4. स्थाणु,
  5. भर्ग,
  6. भव,
  7. सदाशिव,
  8. शिव,
  9. हर,
  10. शर्व,
  11. कपाली

अष्टलक्ष्मी
:
  1. गज लक्ष्मी,
  2. आध्य लक्ष्मी,
  3. संतान लक्ष्मी,
  4. धन लक्ष्मी,
  5. धान्य लक्ष्मी,
  6. विजय लक्ष्मी,
  7. वीर लक्ष्मी,
  8. महा लक्ष्मी
शास्त्रो के अनुसार भगवान कृष्ण की आठ पटरानियाँ :

  1. रुक्मणी
  2. जाम्बवन्ती
  3. सत्यभामा
  4. कालिन्दी
  5. मित्रबिन्दा
  6. सत्या
  7. भद्रा
  8. लक्ष्मणा


ज्योतिष शास्त्र के अनुसार बतलाई गई दस दिशाएं:
  1. पूर्व
  2. पश्चिम
  3. उत्तर
  4. दक्षिण
  5. ईशान (उत्तर-पूर्व)
  6. वायव्य (उत्तर-पश्चिम)
  7. नैऋत्य (दक्षिण-पश्चिम)
  8. आग्नेय (दक्षिण-पूर्व)
  9. आकाश (उर्ध्व)
  10. पाताल (अध)

1 comment:

Unknown said...

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