तब दोस्तों से घंटो बाते होती थी,
अब मोबाइल SMS से हाय हैलो होती है
तब क्रिकेट का बैट हाथ में होता था और सड़क पर क्रिकेट खेलने लग जाया करते थे,
अब लेपटोप और मोबाइल साथ में होता है और सड़क पर ही टिपियाने लग जाते है
तब शांत खड़े होकर चिड़िया और कोयल की आवाज़ सुना करते थे,
अब कंप्यूटर पर mpeg फाइल सुनते है
तब रात में छत पर लेट कर चमकते तारे देखा करते है,
अब काम के टेंशन में रात में तारे नज़र आते है
तब शाम को दोस्तों के साथ बैठ कर गपशप करते है,
अब चैट रूम में बनावटी लोगो से बाते करते है
तब ज्ञान प्राप्ति के लिए पढाई करते थे,
अब नौकरी बचाने के लिए पढ़ना पड़ता है
तब जेब खाली पर दिल उमंगो से भरा होता था,
अब जेब ATM, Credit/Debit card से भरी है लेकिन दिल खाली है
तब सड़क पर खड़े हो कर भी चिल्ला लेते थे,
अब घर में ही जोर से नहीं बोल पाते
तब लोग हमें ज्ञान का पाठ पढाते थे,
अब हम सबको ज्ञान देते फिरते है
वाह री आधुनिकता !! सोचो तुमने और मैंने क्या पाया इंसान बन के....
तब और अब
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Bhavesh (भावेश )
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Friday, September 24, 2010
आपका क्या कहना है?
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सफलता का मूलमंत्र...
आज के आधुनिक युग में हमने खोया ज्यादा है और पाया कम. इस शास्वत सत्य के बारे में मैंने अपनी पिछली पोस्ट में लिखा था.
इन सबका मुख्य कारण ये है कि हम आज की इस आपाधापी में न केवल अपने आप को जडो से काट चुके है अपितु हम अपने संस्कारो को भी भूल चुके है. हमारे शास्त्र कहते है "मातृ देवो भव, पित्र देवो भव" यानि माता पिता ही साक्षात् देवता स्वरुप है.
लेकिन अफ़सोस आज के समय में पाश्चात्य संस्कृति की तरह हमारे देश में कई बुजुर्गो को अपने "जीवन की संध्या" ओल्ड एज होम में गुजारनी पड़ रही है. उन वृद्धाश्रम में रह रहे माँ बाप कि गलती शायद ये थी कि उन्होंने अपने बच्चे को पैदा होते ही अनाथाश्रम में नहीं डाला, वर्ना उन्हें शायद आज ये दिन नहीं देखने पड़ते.
तुलसीदासजी ने रामचरित मानस में लिखा है
"मानहिं मातु पिता नहिं देवा। साधुन्ह सन करवावहिं सेवा॥
जिन्ह के यह आचरन भवानी। ते जानेहु निसिचर सब प्रानी॥"
जो माता पिता की सेवा नहीं करते या साधू से सेवा करवाते है, इस तरह का आचरण करने वाले ही निसिचर की श्रेणी में आते है.
अंग्रेजी में कहते है "A Picture is worth a thousand words". आइये नीचे कुछ तस्वीरों के माध्यम से माता-पिता का हमारे जीवन में स्थान और महत्व समझने का प्रयास करे.
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इन सबका मुख्य कारण ये है कि हम आज की इस आपाधापी में न केवल अपने आप को जडो से काट चुके है अपितु हम अपने संस्कारो को भी भूल चुके है. हमारे शास्त्र कहते है "मातृ देवो भव, पित्र देवो भव" यानि माता पिता ही साक्षात् देवता स्वरुप है.
लेकिन अफ़सोस आज के समय में पाश्चात्य संस्कृति की तरह हमारे देश में कई बुजुर्गो को अपने "जीवन की संध्या" ओल्ड एज होम में गुजारनी पड़ रही है. उन वृद्धाश्रम में रह रहे माँ बाप कि गलती शायद ये थी कि उन्होंने अपने बच्चे को पैदा होते ही अनाथाश्रम में नहीं डाला, वर्ना उन्हें शायद आज ये दिन नहीं देखने पड़ते.
तुलसीदासजी ने रामचरित मानस में लिखा है
"मानहिं मातु पिता नहिं देवा। साधुन्ह सन करवावहिं सेवा॥
जिन्ह के यह आचरन भवानी। ते जानेहु निसिचर सब प्रानी॥"
जो माता पिता की सेवा नहीं करते या साधू से सेवा करवाते है, इस तरह का आचरण करने वाले ही निसिचर की श्रेणी में आते है.
अंग्रेजी में कहते है "A Picture is worth a thousand words". आइये नीचे कुछ तस्वीरों के माध्यम से माता-पिता का हमारे जीवन में स्थान और महत्व समझने का प्रयास करे.
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Bhavesh (भावेश )
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Tuesday, September 14, 2010
आपका क्या कहना है?
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Labels:
समाज
सोचो तुमने और मैंने क्या पाया इंसान बन के...
कहते है कि मानव जीवन अमूल्य है, इसे प्राप्त करना सहज नहीं है लेकिन क्या हमने सोचा कि आज की इस आपाधापी में हमने इंसान बन कर क्या पाया है. आइये जरा इसका हिसाब करके देखते है :
आज हमारे पास बड़ी बड़ी इमारते तो है लेकिन सहनशक्ति थोड़ी सी है.
चौड़े रास्ते तो है लेकिन मानसिकता संकीर्ण है
हम खर्चते बहुत है लेकिन पाते कम है,
खरीदते ज्यादा है लेकिन उपयोग कम करते है.
हमारे पास बड़े मकान लेकिन छोटे परिवार है,
ज्यादा सुविधाए लेकिन कम समय है,
ज्यादा डिग्रियां है लेकिन कम समझ है,
ज्ञान अधिक है लेकिन परखने की शक्ति कम है,
दवाइयाँ बहुत है लेकिन तंदुरुस्ती कम है,
विशेषज्ञ ज्यादा है और मुसीबते भी ज्यादा ही है.
हमने अपने हक तो बड़ा दिए है लेकिन मूल्य खो दिए है.
हम बोलते बहुत है, नफरत ज्यादा करते है और सोचते कम है.
हमने जीने के तरीके खोज लिए लेकिन हम मानवता को भूल गए.
हमने जिंदगी में कई साल जोड़ दिए लेकिन हम किसी भी साल को जिंदगी से नहीं जोड़ पाए.
हम चाँद पर जा कर आ गए लेकिन सड़क पार पडोसी से नहीं मिल पाए
हमने धरती के बहार अंतरिक्ष पर तो विजय प्राप्त कर ली लेकिन खुद अपने अंतर्मन को नहीं जीत पाए
हमने हवा को साफ़ कर दिया लेकिन आत्मा को प्रदूषित कर दिया
हमने परमाणु को भी तोड़ दिया लेकिन अपनी सोच को नहीं छोड़ पाए
आज तनख्वाह ज्यादा हो गई है लेकिन सदाचार कम हो गया है
हम ज्यादा मात्रा में और कम गुणवत्ता में विश्वास करने वाले हो गए है.
लोग बलिष्ठ शरीर और कमजोर चरित्र वाले हो गए है जिन्हें फायदे में ज्यादा और संबंधो में कम विश्वास है.
ये वो समय है जहाँ विश्व शांति की बात होती है लेकिन गृह्कलेश ही खत्म नहीं होते, अवकाश ज्यादा और प्रसनत्ता कम रहती है, ये दोहरी तनख्वाह और ज्यादा तलाक होते है, विशिष्ट महलनुमा मकान है, लेकिन टूटे हुए घर है.
आज के मानव के पास दिखाने को गर्व बहुत है लेकिन वो अंदर से काफी हद तक खाली है. ये दुर्गति शायद इसलिए है क्योंकि हम शायद सफलता का मूलमंत्र भूल चुके है.
(चित्र : साभार गूगल)
आज हमारे पास बड़ी बड़ी इमारते तो है लेकिन सहनशक्ति थोड़ी सी है.
चौड़े रास्ते तो है लेकिन मानसिकता संकीर्ण है
हम खर्चते बहुत है लेकिन पाते कम है,
खरीदते ज्यादा है लेकिन उपयोग कम करते है.
हमारे पास बड़े मकान लेकिन छोटे परिवार है,
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ज्यादा सुविधाए लेकिन कम समय है,
ज्यादा डिग्रियां है लेकिन कम समझ है,
ज्ञान अधिक है लेकिन परखने की शक्ति कम है,
दवाइयाँ बहुत है लेकिन तंदुरुस्ती कम है,
विशेषज्ञ ज्यादा है और मुसीबते भी ज्यादा ही है.
हमने अपने हक तो बड़ा दिए है लेकिन मूल्य खो दिए है.
हम बोलते बहुत है, नफरत ज्यादा करते है और सोचते कम है.
हमने जीने के तरीके खोज लिए लेकिन हम मानवता को भूल गए.
हमने जिंदगी में कई साल जोड़ दिए लेकिन हम किसी भी साल को जिंदगी से नहीं जोड़ पाए.
हम चाँद पर जा कर आ गए लेकिन सड़क पार पडोसी से नहीं मिल पाए
हमने धरती के बहार अंतरिक्ष पर तो विजय प्राप्त कर ली लेकिन खुद अपने अंतर्मन को नहीं जीत पाए
हमने हवा को साफ़ कर दिया लेकिन आत्मा को प्रदूषित कर दिया
हमने परमाणु को भी तोड़ दिया लेकिन अपनी सोच को नहीं छोड़ पाए
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आज तनख्वाह ज्यादा हो गई है लेकिन सदाचार कम हो गया है
हम ज्यादा मात्रा में और कम गुणवत्ता में विश्वास करने वाले हो गए है.
लोग बलिष्ठ शरीर और कमजोर चरित्र वाले हो गए है जिन्हें फायदे में ज्यादा और संबंधो में कम विश्वास है.
ये वो समय है जहाँ विश्व शांति की बात होती है लेकिन गृह्कलेश ही खत्म नहीं होते, अवकाश ज्यादा और प्रसनत्ता कम रहती है, ये दोहरी तनख्वाह और ज्यादा तलाक होते है, विशिष्ट महलनुमा मकान है, लेकिन टूटे हुए घर है.
आज के मानव के पास दिखाने को गर्व बहुत है लेकिन वो अंदर से काफी हद तक खाली है. ये दुर्गति शायद इसलिए है क्योंकि हम शायद सफलता का मूलमंत्र भूल चुके है.
(चित्र : साभार गूगल)
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Bhavesh (भावेश )
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Thursday, September 09, 2010
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समाज
जीमेल का नया प्रायोरिटी इन्बोक्स
गूगल हमेशा ही कुछ नया कर दिखाने में अग्रणी रहा है. इसी तर्ज पर चलते हुए गूगल ने हाल ही में जीमेल में एक नई विशेषता जोड़ी है और जिसका नाम दिया है "प्रायोरिटी इन्बोक्स" .
अगर आप लोग जीमेल का इस्तेमाल करते है तो आप ने गौर किया होगा कि निचे दिखाए हुए चित्र की तरह आपके भी जीमेल के हेडर में अब आपको लाल रंग का "प्रायोरिटी इन्बोक्स बीटा" दिखाई दे रहा है.
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इसका सुविधा का मुख्य उद्धेश्य ये है की अगर आपके पास रोजाना बहुत सारे मेल आते है और आप समय की कमी के चलते सब मेल नहीं पढ़ना चाहते तो जीमेल आपके लिए उन मेल को अलग कर देगा जो प्राथमिकता वाले होंगे. आप चाहे तो उन्हें चिन्हित करके (स्टार लगा कर) बाद में पढ़ने के लिए भी अलग रख सकते है. प्रायोरिटी इन्बोक्स कैसे कार्य करता है और इसमें क्या क्या फीचर्स है, इस बारे में विस्तृत से जानने के लिए आप ये नीचे दिया हुआ विडियो देखे और इस फीचर को इस्तेमाल कर व्यर्थ में खराब होने वाले समय की बचत करे.
अगर आप लोग जीमेल का इस्तेमाल करते है तो आप ने गौर किया होगा कि निचे दिखाए हुए चित्र की तरह आपके भी जीमेल के हेडर में अब आपको लाल रंग का "प्रायोरिटी इन्बोक्स बीटा" दिखाई दे रहा है.
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इसका सुविधा का मुख्य उद्धेश्य ये है की अगर आपके पास रोजाना बहुत सारे मेल आते है और आप समय की कमी के चलते सब मेल नहीं पढ़ना चाहते तो जीमेल आपके लिए उन मेल को अलग कर देगा जो प्राथमिकता वाले होंगे. आप चाहे तो उन्हें चिन्हित करके (स्टार लगा कर) बाद में पढ़ने के लिए भी अलग रख सकते है. प्रायोरिटी इन्बोक्स कैसे कार्य करता है और इसमें क्या क्या फीचर्स है, इस बारे में विस्तृत से जानने के लिए आप ये नीचे दिया हुआ विडियो देखे और इस फीचर को इस्तेमाल कर व्यर्थ में खराब होने वाले समय की बचत करे.
Posted by
Bhavesh (भावेश )
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Friday, September 03, 2010
आपका क्या कहना है?
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तकनीकी
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