लेकिन हाल ही में इन सब से हटकर सर्वप्रथम अजित जी का लेख पता नहीं हम अपने देश भारत से नफरत क्यों करते हैं? पढ़ा. उसके बाद उसी विषय को आगे बढ़ाते हुए खुशदीप जी ने अपने ब्लॉग देशनामा में भारत तो आखिर ठीक कौन करेगा ? लिखा. इन लेख को पढ़ कर लगा कि मूल समस्या से तो हम सब वाकिफ है लेकिन सोचने वाली बात ये है कि क्या इसका कोई समाधान है और यदि है तो क्या उसे अमलीजामा पहनाया जा सकता है ? बस इसी सोच पर मैंने अपने कुछ विचार व्यक्त किये है.
जैसा की हम सब जानते है देश में लोकतंत्र के चारो स्तंभ आज जर्जर हाल
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ऐसे में आम आदमी के दिल में हमेशा ये सवाल कौंधता है कि क्या कुछ ऐसा किया जाए कि सबको उनका हक के हिसाब से पारितोषिक मिले और आम जनता अपना जीवन सकून बसर कर सके.
केवल शिक्षा के द्वारा इस बीमारी को ठीक करने की सोचना ठीक वैसा ही है जैसे की कैंसर के लिए एस्प्रिन लेना. मेरा ये मानना है कि शिक्षित होना और समझदार होने में फर्क है. शिक्षा से ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है लेकिन उस ज्ञान को व्य
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१. हमें व्यवसाय सम्बंधित शिक्षा पर जोर देना होगा ताकि पढ़ लिख कर युवा नौकरी का मुंह ताकने की बजाये आज का युवा खुद एक छोटा मोटा उद्यमी बन सके. हमारे देश में हर IIT, IIM, ISB, अभियांत्रिकी और मेडिकल कोलेज इत्यादि संस्थानों को अपने छात्रों को दो साल तक अनिवार्य रूप से गांव में जा कर के तकनीक और व्यापार स्थापित करने और अपनी सेवाए देने के बाद ही डिग्री प्रदान करनी चाहिए. आम लोगो को शिकायत रहती है कि कुशाग्र बुद्धि वाले ये छात्र देश में पढ़ लिख कर बाहर दूसरे देशो की अर्थव्यवस्थाओ में योगदान देते है, लेकिन अपने देश पर ध्यान नहीं देते. छात्रों को ये शिकायत होती है कि अपने ही देश में उन्हें उनकी काबिलियत का न तो वाजिब सम्मान नहीं मिलता है और न ही अपनी कुशलता को दिखाने के मौके. वे अगर देश में रुक भी जाए तो सरकारी लाल फीताशाही में फंस कर रह जाते है, और कुछ कर नहीं सकते. अफ़सोस दोनों ही अपनी जगह बिल्कुल सही है.
इसी तरह विज्ञानं, वाणिज्य और कला संकाय के छात्रों को भी दो साल तक सरकारी, गैर सरकारी
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२. नेताओ की जवाबदेही तय हो. अगर वो उस मापदंड पर या चुनाव से पहले किये हुए अपने किये हुए अपने वादों को पूरा नहीं कर पाते तो उस व्यक्ति या उसके परिवार में किसी को नेता के टिकट के लिए अयोग्य घोषित कर दिया जाए.
३. गलती से सीख लेते हुए जितना हो सके तकनीक का उपयोग कर सरकार को जनता को सेवा प्रदान करे . अफ़सोस आज भी तेलगी जैसे बड़े कांड के बाद हम कागज के स्टेम्प पेपर को प्रयोग में लाते है न कि इलेक्ट्रोनिक स्टाम्प पेपर. चूँकि हर गतिविधि इलेक्ट्रोनिक होगी तो इससे पारदर्शिता बढ़ेगी और भ्रष्टाचार में कमी आएगी. इस काम के लिए देश की बड़ी बड़ी कंपनिया जैसे इनफ़ोसिस, टाटा कंसल्टेंसी इत्यादि की सेवा देश में इलेक्ट्रोनिक सेवा स्थापित करने के लिए ली जाए.
४. सभी सरकारी संस्थानों में पूर्ण कालिक नियुक्ति की बजाये दो या तीन साल के लिए अनुबंधन पर नौकरी दी जाए जो कार्यकुशलता के हिसाब से नवीकृत की जाए. प्रत्येक व्यक्ति जो सरकारी विभाग जैसे पुलिस, बिजली, जल विभाग से सेवा लेता है उन्हें अपना कार्य पूरा होने के बाद एक फॉर्म दिया जाए जिस पर वो विभाग की सेवा से कितना संतुष्ट है ये बतला सके. उस प्रतिपुष्टि (फीडबैक) के द्वारा उस विभाग का बजट तय किया जाए और प्रत्येक अधिकारी की तनख्वाह, पदोन्नति, बोनस इत्यादि तय किये जाए.
५. न्यायलय हर मामले में विशेषकर संगीन भ्रष्टाचार के मामलो के निपटारे में एक निश्चित समय सीमा निर्धारित करे . गलत सबूत पेश करने पर और झूठी गवाही देने वालो को सजा और झूठी गवाही उन्हें दिलवाने वाले वकील को दुगनी सजा दी जाए. साथ ही पेशे के साथ बेईमानी करने के लिए उन्हें भविष्य में वकालत करने पर रोक लगा दी जाए. इलेक्ट्रोनिक तथ्य जैसे विडियो, फोन, ई-मेल इत्यादि को पुख्ता सबूत माना जाए.
वैसे करने को बहुत कुछ है लेकिन अन्तोगत्वा सवाल फिर ये ही आता है कि ये करे कौन. क्योंकि जिनको ये करने का जिम्मा दिया जाता है वो रक्षक आज खुद ही भक्षक बन बैठे है. आम आदमी बिना दांत और नाख़ून के ये कैसे सुनिश्चित करे कि इस तरह की योजनाओ का क्रियान्वन हो, शायद ये ही अब आज का यक्ष प्रश्न है.