बचपन में जब कहावत सुना करते थे तो कभी अहसास ही नहीं हुआ की हमारे पूर्वज लोगो ने इनमे कैसे "गागर में सागर" भर इन एक दो पंक्तियों से कितने ज्ञान की बाते आने वाली पीढ़ी के लिए लिख छोड़ी है.
आपने और हम सबने सुना है "यथा राजा तथा प्रजा". आज देश के नेता ही देश के राजा है और इन लिफाफों को देख कर ही मजमून का अंदाज़ा लग जाता है. यद्यपि ये बात बिलकुल सही है की सौ करोड़ की आबादी में सब एक सरीखे नहीं हो सकते लेकिन अधिकतर लोग क्या चाहते है उसका तो अंदाजा हो ही जाता है हमारे इन जनप्रतिनिधियों को देख कर. हमारे देश के ये जयचंद या फिर संसद में जानवरों के झुण्ड सा बर्ताव करती शिखंडियो की इस फौज ने देश के जनता को भी शिखंडी ही बना छोड़ा है.
मुद्दे पर आते है. आज इनकी बेवकूफी भरी एक और खबर पढ़ी और पढ़ कर खून खौल उठा. कल यानि गुरूवार को भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पाकिस्तानी प्रधान मंत्री युसुफ़ रज़ा गिलानी से फ़ोन पर बातकर पाकिस्तान में आई विनाशकारी बाढ़ में मदद की पेशकश दोहराई थी. उस के बाद पाकिस्तानी सरकार ने भारत की मदद स्वीकार करने का फ़ैसला किया. उल्लेखनीय है की करीब एक हफ़्ते पहले भारत सरकार ने पाकिस्तान के लिए 50 लाख डॉलर की रकम बतौर मदद देने की पेशकश की थी जिसके जवाब में पाकिस्तानी सरकार ने भारत का शुक्रिया तो अदा किया था लेकिन इस मदद को स्वीकार करने पर सोच विचार करने की बात कही थी. न्यूयॉर्क में पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी ने भारत सरकार की तारीफ़ की और कहा, “पाकिस्तान ने उसूली तौर पर भारत की मदद की पेशकश को क़बूल करने का फ़ैसला कर लिया है."
हम सब जानते है कि इन दिनों पाकिस्तान में प्रकृति का प्रकोप बरसात के रूप में कहर बन कर बरस रहा है. दिन प्रतिदिन हालत बद से बदतर हो रहे है और लाखो की संख्या में लोग प्रभावित हुए है. अमेरिका पोंगा पंडित बन कर इस बार भी अपने स्वयं की स्वार्थ पूर्ति के लिए पाकिस्तान को आने दो आने की लोलीपोप दे रहा है और दुसरे देशो से भी इसी तरह की भीख देने को कह रहा है.
वैसे भी कहते है कि "दान भी पात्र देख को कर ही दिया जाता है". ये बात जरुर विचारणीय है कि क्या पाकिस्तान वाकई मदद का हक़दार है. ज्ञातव्य रहे मैं यहाँ पर वहां के आम नागरिक की बात नहीं कर रहा हूँ. वैसे भी भारत और पाकिस्तान जैसे देशो में जो पैसा आम जनता की मदद के लिए आता है, उसमे से कितना आम लोगो के लिए कितना इस्तेमाल होता है ये मुझे और आपको समझने और समझाने की जरुरत नहीं है. तो साहब बात हो रही थी कि क्या ये पडोसी देश इस लायक है कि इसकी मदद करी जाए.
मदद भी उसकी की जाती है जिसको उस मदद की जरुरत हो क्योंकि ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती. उदहारण के लिए हाल ही में संपन्न हुई भारत पाक वार्ता को ले. जिसने भी पिछले महीने हमारे नपुंसक विदेश मंत्री एस एम् कृष्णा और शाह महमूद क़ुरैशी की प्रेस कांफ्रेंस देखी हो वो ये साफ़ तौर पर कह सकता है कि शाह महमूद क़ुरैशी "चोरी और सीना जोरी " वाली कहावत को और हमारे विदेश मंत्री "खिसयानी बिल्ली खम्बा नोचे" को चरितार्थ करते दिख रहे थे.
समझ नहीं आता कि जो देश अमेरिका को उल्लू बना कर के उसके पैसे लगातार खा रहा है और डकार भी नहीं ले रहा उसको सहायता देने के लिए भारत क्यों इतनी मिन्नतें कर रहा है. क्या पाकिस्तान ने कभी पडोसी देश का धर्म निभाया है. आज पिछले कुछ सालो से जिस आतंकवाद से पूरी दुनिया त्रस्त है भारत ने तो अपने पडोसी देश की मेहरबानी से उस आतंक के दानव को कई दशको से सहा है. बंटवारे के चौबीस साल में ही तीन बार युद्ध कर के जब वो ये समझ गया कि इन रणबांकुरो को हराना नामुमकिन है तो उसने आतंकवाद, कारगिल, कसाब, दाउद, जाली नोट, हथियार, तस्करी जैसे छद्म रूप से भारत देश पर हमला बोल दिया.
हाल ही में जब ब्रितानी प्रधामंत्री डेविड केमरून ने बंगलौर में दो टूक शब्दों में कहाँ कि पाकिस्तान एक हाथ से मदद की भीख और दुसरे खून सने हाथ से आतंक का समर्थन नहीं कर सकता तो पाकिस्तान के सत्ता के गलियारों में बैठे कई लोगो के इधर उधर और जाने किधर किधर से धुना निकलने लगा. उस समय इन्ही पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी ने तत्काल कहाँ कि पाकिस्तान ने आतंक के खिलाफ लड़ाई में अपने कई सैनिक खोए है इसलिए पाकिस्तान पर आतंक के विरुद्ध कार्यवाही में संदेह नहीं किया जाना चाहिए. इस तर्क से तो शायद कल को कोई तालेबानी प्रवक्ता भी कह सकता है कि तालेबान ने भी लड़ाई में अपने बहुत से लोग खोये है इसलिए तालिबान को भी शांति का पुजारी ही माना जाना चाहिए.
समझ नहीं आता कि क्यों हम अपने पाँव पर कुल्हाड़ी मारने को क्यों इतने बेताब है, क्यों बेताब है उसकी मदद करने के लिए जिसने हमेशा ही भारत की पीठ में छुरा घोंपा है. अरे भाई क्या हमारे देश की सारी समस्याए हल हो गई है जो आप पडोसी को पचास लाख डालर की मदद कर रहे हो. समझ नहीं आता कि आप पैसा दे रहे हो या ले रहे हो.
मन्नू भाई अगर आपके खजाने में इतना पैसा है तो उसको देश से गरीबी, भुखमरी, अशिक्षा और बेरोजगार मिटाने में लगाइए , लेह में हुए नुकसान की भरपाई में लगाइए, भ्रष्टाचार के निर्मूलन में लगाइए, ढाई दशक से मदद की बाट देखते हुए बचे खुचे भोपाल गैस कांड के पीडितो को न्याय दिलवाने में लगाइए, देश में सड़ रहे अनाज को बचाने में लगाइए, सरकारी दफ्तरों में कार्य को चुस्त बनाने और पारदर्शिता लाने के लिए लगाइए, जर्जर न्यायपालिका को कार्यकुशल बनाने में लगाइए. इसके बाद जो बच जाए उससे देश का कर्ज चुकाइए. फिर भी कुछ बच जाए तो उससे देश का भविष्य सुधारने में लगाइए. मेहरबानी करके आस्तीन में सांप मत पालिए. उस विष के बीज मत बोइये जो कल विष बेल बन कर हमारा और आने वाली पीढियों का नुकसान करे.
क्यों पाले हम आस्तीन में सांप
Posted by
Bhavesh (भावेश )
at
Friday, August 20, 2010
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राजनीति
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2 comments:
bhaveshji aapne bahut sahi baat kahi hai....hamare paise se aastin ke sanp paale jaa rahe hain.....
doodh Nahi pilana chahiy
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