हिंदी ब्लॉग जगत पर वैसे तो कई दिग्गज और धुरंधर है जो अपनी लेखनी से अपने विचारों का नियमित रूप से प्रसार करते है। राजीनीति, धर्म, यात्रा, संस्मरण आदि सब विषयों पर अक्सर कुछ सार्थक गद्य और पद्य पढ़ने को मिल जाता है ।
लेकिन हाल ही में इन सब से हटकर सर्वप्रथम अजित जी का लेख पता नहीं हम अपने देश भारत से नफरत क्यों करते हैं? पढ़ा. उसके बाद उसी विषय को आगे बढ़ाते हुए खुशदीप जी ने अपने ब्लॉग देशनामा में भारत तो आखिर ठीक कौन करेगा ? लिखा. इन लेख को पढ़ कर लगा कि मूल समस्या से तो हम सब वाकिफ है लेकिन सोचने वाली बात ये है कि क्या इसका कोई समाधान है और यदि है तो क्या उसे अमलीजामा पहनाया जा सकता है ? बस इसी सोच पर मैंने अपने कुछ विचार व्यक्त किये है.
जैसा की हम सब जानते है देश में लोकतंत्र के चारो स्तंभ आज जर्जर हालत में है. हमारे ही द्वारा चुने गए लुटेरे (जिनको हम नेता या जनप्रतिनिधि कहते है) खुले आम भ्रष्टाचार, अय्याशी, लूटपाट इत्यादि का तांडव खेल रहे है. ऊपर से नीचे तक गंदगी फैली हुई है. हर कोई अपनी जेब भरने में लगा है. आजादी के बासठ साल में ही देश का सत्तर लाख करोड रुपया स्विस बैंक में जा चुका है. ये राशि वहाँ के बैंको में जमा अन्य सभी देशो की कुल जमा राशि से भी अधिक है. देश में अमीरी और गरीबी के बीच की खाई दिन प्रतिदिन बढती ही जा रही है. चूँकि आज देश में चोर, लुटेरे खुले आम सीना तान कर बिना सजा के घूम रहे है, इसलिए उनसे सीख ले कर अन्य लोग भी गलत रास्ते पर चलने में घबराते नहीं है.
ऐसे में आम आदमी के दिल में हमेशा ये सवाल कौंधता है कि क्या कुछ ऐसा किया जाए कि सबको उनका हक के हिसाब से पारितोषिक मिले और आम जनता अपना जीवन सकून बसर कर सके.
केवल शिक्षा के द्वारा इस बीमारी को ठीक करने की सोचना ठीक वैसा ही है जैसे की कैंसर के लिए एस्प्रिन लेना. मेरा ये मानना है कि शिक्षित होना और समझदार होने में फर्क है. शिक्षा से ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है लेकिन उस ज्ञान को व्यक्ति कैसे उपयोग करता है इससे ही उस व्यक्ति की समझदारी झलकती है. देश में आज Civic Sense की कमी है, जो अफ़सोस किसी स्कूल या कॉलेज में नहीं पढाया जाता बल्कि ये समाज से उपजता है. आज हर कोई इस आपाधापी में लगा है कि दूसरे को उल्लू बना कर कैसे अपना उल्लू सीधा किया जाये. मुझे नहीं लगता कि केवल पढ़ लिख कर या सबको केवल स्नातक, इंजिनियर, डॉक्टर बना देने से ये समस्या हल हो जायेगी. पिछले पचास साल में देश में इतने शिक्षित लोग बढे है लेकिन क्या भ्रष्टाचार पर कुछ लगाम नहीं लगी और न ही इसमें थोड़ी सी भी कमी आई ? आज पढ़ा लिखा व्यक्ति कमा कर खा सकता है लेकिन जीवन में सफल हो ये जरुरी नहीं है. मेरे विचार से देश को अगर ठीक रास्ते पर लाना है तो :
१. हमें व्यवसाय सम्बंधित शिक्षा पर जोर देना होगा ताकि पढ़ लिख कर युवा नौकरी का मुंह ताकने की बजाये आज का युवा खुद एक छोटा मोटा उद्यमी बन सके. हमारे देश में हर IIT, IIM, ISB, अभियांत्रिकी और मेडिकल कोलेज इत्यादि संस्थानों को अपने छात्रों को दो साल तक अनिवार्य रूप से गांव में जा कर के तकनीक और व्यापार स्थापित करने और अपनी सेवाए देने के बाद ही डिग्री प्रदान करनी चाहिए. आम लोगो को शिकायत रहती है कि कुशाग्र बुद्धि वाले ये छात्र देश में पढ़ लिख कर बाहर दूसरे देशो की अर्थव्यवस्थाओ में योगदान देते है, लेकिन अपने देश पर ध्यान नहीं देते. छात्रों को ये शिकायत होती है कि अपने ही देश में उन्हें उनकी काबिलियत का न तो वाजिब सम्मान नहीं मिलता है और न ही अपनी कुशलता को दिखाने के मौके. वे अगर देश में रुक भी जाए तो सरकारी लाल फीताशाही में फंस कर रह जाते है, और कुछ कर नहीं सकते. अफ़सोस दोनों ही अपनी जगह बिल्कुल सही है.
इसी तरह विज्ञानं, वाणिज्य और कला संकाय के छात्रों को भी दो साल तक सरकारी, गैर सरकारी संघठनो के साथ काम करने के बाद डिग्री मिलनी चाहिए. यहाँ भी प्रतिस्पर्धा बनाये रखने के लिए कुछ छात्रों को एक कार्य दिया जाए और ये देखा जाए कि किसने कितने गुणवत्ता के साथ कार्य को पूरा किया या कितनी सुगमता से मुश्किल को हल किया. छात्रों को ये अहसास कराया जाए कि वो देश कि प्रगति में योगदान दे रहे है और उन्हें इसके लिए गौरान्वित किया जाए.
२. नेताओ की जवाबदेही तय हो. अगर वो उस मापदंड पर या चुनाव से पहले किये हुए अपने किये हुए अपने वादों को पूरा नहीं कर पाते तो उस व्यक्ति या उसके परिवार में किसी को नेता के टिकट के लिए अयोग्य घोषित कर दिया जाए.
३. गलती से सीख लेते हुए जितना हो सके तकनीक का उपयोग कर सरकार को जनता को सेवा प्रदान करे . अफ़सोस आज भी तेलगी जैसे बड़े कांड के बाद हम कागज के स्टेम्प पेपर को प्रयोग में लाते है न कि इलेक्ट्रोनिक स्टाम्प पेपर. चूँकि हर गतिविधि इलेक्ट्रोनिक होगी तो इससे पारदर्शिता बढ़ेगी और भ्रष्टाचार में कमी आएगी. इस काम के लिए देश की बड़ी बड़ी कंपनिया जैसे इनफ़ोसिस, टाटा कंसल्टेंसी इत्यादि की सेवा देश में इलेक्ट्रोनिक सेवा स्थापित करने के लिए ली जाए.
४. सभी सरकारी संस्थानों में पूर्ण कालिक नियुक्ति की बजाये दो या तीन साल के लिए अनुबंधन पर नौकरी दी जाए जो कार्यकुशलता के हिसाब से नवीकृत की जाए. प्रत्येक व्यक्ति जो सरकारी विभाग जैसे पुलिस, बिजली, जल विभाग से सेवा लेता है उन्हें अपना कार्य पूरा होने के बाद एक फॉर्म दिया जाए जिस पर वो विभाग की सेवा से कितना संतुष्ट है ये बतला सके. उस प्रतिपुष्टि (फीडबैक) के द्वारा उस विभाग का बजट तय किया जाए और प्रत्येक अधिकारी की तनख्वाह, पदोन्नति, बोनस इत्यादि तय किये जाए.
५. न्यायलय हर मामले में विशेषकर संगीन भ्रष्टाचार के मामलो के निपटारे में एक निश्चित समय सीमा निर्धारित करे . गलत सबूत पेश करने पर और झूठी गवाही देने वालो को सजा और झूठी गवाही उन्हें दिलवाने वाले वकील को दुगनी सजा दी जाए. साथ ही पेशे के साथ बेईमानी करने के लिए उन्हें भविष्य में वकालत करने पर रोक लगा दी जाए. इलेक्ट्रोनिक तथ्य जैसे विडियो, फोन, ई-मेल इत्यादि को पुख्ता सबूत माना जाए.
वैसे करने को बहुत कुछ है लेकिन अन्तोगत्वा सवाल फिर ये ही आता है कि ये करे कौन. क्योंकि जिनको ये करने का जिम्मा दिया जाता है वो रक्षक आज खुद ही भक्षक बन बैठे है. आम आदमी बिना दांत और नाख़ून के ये कैसे सुनिश्चित करे कि इस तरह की योजनाओ का क्रियान्वन हो, शायद ये ही अब आज का यक्ष प्रश्न है.
कैसे बने हमारे सपनो का भारत
Posted by
Bhavesh (भावेश )
at
Friday, July 23, 2010
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राजनीति
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13 comments:
बहुत अच्छी पोस्ट। एक बात मैं कहना चाहती हूँ कि इस देश की मूल समस्या भ्रष्टाचार है। इसका प्रमुख कारण है हमारा कानून। इस देश में अंग्रेजों द्वारा बनाया गया कानून ही स्थापित है। उन्होंने स्वयं याने राजा और जनता याने प्रजा के लिए अलग-अलग कानून बनाए। इस कारण आज राजनेताओं और नौकरशाहों को कानून के दायरे में सीधे ही नहीं लिया जा सकता। इसलिए सर्वप्रथम तो लोकपाल विधेयक लाने की आवश्यकता है। दूसरा तीव्र न्याय मिले इसके लिए ग्रामीण पंचायती न्याय की वापसी और एक मुहीम चलाकर मुकदमों की समाप्ति करना प्राथमिकता है। जितना शीघ्र न्याय मिलेगा उतना ही भ्रष्टाचार का अन्त होगा। इसके लिए जनता को दवाब बनाना होगा। जिस दिन जनता लोकपाल विधेयक और ग्रामीण पंचायती न्याय व्यवस्था को लागू कराने में सफल हो जाएगी उसी दिन से भ्रष्टाचार समाप्त होने लगेगा।
अजित जी, टिपण्णी के लिए धन्यवाद. आपने बिलकुल सही कहा कि राजनीति और न्यायपालिका इन दोनों में आमूलचूल परिवर्तन समय की मांग है.
आज भी हमारे देश में बैलगाड़ी के ज़माने में सौ साल से भी पहले बने हुए कानून काम में आ रहे है जबकि जमाना चाँद पर जा पहुँचा है.
इस के क्रियान्वन के लिए समाज की इच्छाशक्ति और समाज के ठेकेदारों की जवाबदेही होना बेहद जरुरी है.
आपने तो बहुत अच्छा लिखा...
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'पाखी की दुनिया ' में बारिश और रेनकोट...Rain-Rain go away..
Aapne bilkul sahi likhaa hai.
Aapke blog par aaker bada achha lagaa. Kash aisaa ho!!!!
Congrats sir.
प्रश्न तो फिर वहीं का वहीं है कि करे कौन? कैसे4 हो? जिन्हे3ं हम चुनते हैं वो तो करने से रहे। और जो हम लोग हैं वो आलसी और अपने कर्तव्यों के प्रति उदासीन हो गये हैं। जरूरत है अपने घर से ही शुरू किया जाये अपने बच्चों को देश प्रेम और समाज के प्रति उनके कर्तव्यों को समझाया जाये। जब तक हम खुद नही सुधरेंगे देश आगे नही बढेगा। टिकेट तो चोर को ही मिलेगा कोई बडा है तो कोई बाद मे बडा बन जायेगा। सामाजिक संस्थायें इसके लिये लोगों को जाग्रित करने का काम कार सकती हैं। नैतिक बल ही इस सारी समस्या का हल है\ आज कल मीडिया भी अपना कर्त्व्य भूल गया है टी.वी पर तो केवल नाच गाना ही रह गया है जैसे सारी दुनिया ही नचनी बना देने पर तुला है एक भी प्रोग्राम देश प्रेम का नही है। मेडिया चाहे तो समस्या का कुछ न कुछ समाधान हो सकता है कि आज के बच्चों को नाचने की ब्जाये देश समाज और घर के प्रति कुछ प्रोग्राम चला कर उनमे चेतना का प्रसार किया जाये। मगर शायद आज सब कुछ बिक चुका है। 4राम जाने देश का क्या होगा?। बहुत अच्छा लगा आलेख धन्यवाद।
अच्छी पोस्ट!
आपके विचार प्रशंसनीय हैं, इनपर विचार करना चाहिए।
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पाँच मुँह वाला नाग?
साइंस ब्लॉगिंग पर 5 दिवसीय कार्यशाला।
एक ज्ञानवर्धक पोस्ट.अच्छी जानकारी मिली अब इसमें से कितना हम लोग जानते हुए भी नहीं जानने का दिखावा करते हैं. विचारणीय और प्रशंसनीय
आपने बहुत अच्छे विचार रखे है और अगर ये क्रियान्वित हो जाय तो परिस्थिया बहुत कुछ बदल सकती है |
बहुत अच्छा लिखा है ।
लेकिन यहाँ मैं अजित जी से सहमत हूँ कि यहाँ सबसे बड़ी समस्या है भ्रष्टाचार की ।
आज देश में कमी किसी चीज़ की नहीं , बल्कि बहुतायत है --आबादी और भ्रष्टाचार की ।
आबादी को तो एकदम कम नहीं किया जा सकता लेकिन भ्रष्टाचार को कम कर पायें तभी कुछ उम्मीद बनती है ।
भावेश जी,
व्यवस्था में परिवर्तन आवश्यक है, लेकिन यक्ष प्रश्न वही है कि कैसे?
आपके लेख से आपकी चिंता व्यक्त होती है।
सवाल तो सही में ख़डा है पर कैसे। अब इस कैसे के लिए जो आपने सुझाया है उसे अमल में लाने से काफी कुछ बदला जा सकता है।
पर सवाल वही कैसे।
बेहतर है कि जो जहां है वहीं से कुछ शुरुआत करे। कुछ तो करे। कुछ कुछ करके शायद बहुत कुछ हो सके।
हर तरफ समस्या....
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'पाखी की दुनिया' में आपका स्वागत है.
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