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दुर्गति हिंदी की

कहने को तो हिंदी हमारे देश की या यूँ कहें उत्तर भारत की भाषा है आज तक हिंदी को भी राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं प्राप्त हुआ हो भी कैसे, हिंदी भाषी क्षेत्रो में ही हिंदी दुर्गति की शिकार है यकीन नहीं होता तो नीचे चित्रों को देखिये और फिर फैसला कीजिये....



























(सभी चित्र : साभार बीबीसी)

11 comments:

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

कुछ नी हो सक्ता.

Satyajeetprakash said...

ये हिंदी की दुर्दशा नहीं, विकास का प्रतीक है. हिंदी विकास कर रही है और विकास के प्रथम अवस्था में है. इसके विकास में आप जैसे प्रबुद्ध लोगों का योगदान अपेक्षित है.

hem pandey said...

हिन्दी की दुर्दशा हर जगह है.ट्रान्सलिट्रेशन भी कभी कभी हिन्दी की दुर्दशा कर देता है.

राम बंसल/Ram Bansal said...

आप को धन्यवाद. मुझे प्रधान पद की ना कोई आवश्यकता है और ना अभिलाषा. किंतु गाँव के हिट में और निर्धन निस्सहाय समाज के आगृह पर मैने इसे स्वीकार किया है. इसमे बारे में भी विरोधियों द्वारा प्रयास किया जा रहा है की यह पद आरक्षित हो जाए और मैं मार्ग से हट जाऊं. राज्य की घोषित नीति के अनुसार यह पद सामान्य वर्ग में ही रखा जाना चाहिए.
मेरा आप सभी से आग्रह है की इसे देश के समस्त प्रबुद्ध वर्ग के विरुद्ध एक षड्यंत्र मानते हुए इसके विरुद्ध एकजुट स्वर बुलंद करें. इसके लिए कुच्छ संपर्क सूत्र दे रहा हून उनका अथवा अपने निजी संपर्कों का उपयोग कर शासक-पराशासकों को सूचित करें की देश का प्रबुद्ध वर्ग उनके कुशासन के विरुद्ध एकजुट है -
Narsena police Station Incharge 9454403155
Circle Officer Siyana 09454401557
SSP Bulandshahr 09454400253
sspbhr@up.nic.in, sspbhr_123@yahoo.co.in, sspbsr@rediffmail.com, sspbsr@yahoo.co.in

इनके अतिरिक्त आप केंद्रीय एवं राज्य सरकारों को भी अपनी प्रतिक्रियाओं से अवगत कराएँ. मैं अभी मानव अधिकार आयोग को अपनी शिकायत भेज रहा हूँ. क्योंकि मुझे मेरी इच्च्छानुसार अपने पैतृक गाँव में रहने से रोका जा रहा है जो मेरा मौलिक अधिकार है.
राम बंसल

Satish Saxena said...

आपके प्रयास अच्छे हैं , अशिक्षा के कारण यह हाल है , उम्मीद रखें ! हार्दिक शुभकामनायें !

नीरज गोस्वामी said...

देख कर हंसी भी आती है और दुःख भी होता है...
नीरज

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आप अपनी जगह सही हैं...

Shah Nawaz said...

नीरज जी से सहमत, देख कर हंसी भी आती है और दुःख भी होता है. लेकिन हमें दुःख और हंसी से आगे बढ़कर स्वयं ही कुछ करना पड़ेगा या फिर चुपचाप बैठकर अपनी प्रिय भाषा "हिंदी" की दुर्दशा को सहन करते रहो.

निर्मला कपिला said...

पोस्टर लिखने वाले लगभग अनपढ जैसे होते है। और पढे लिखे काम नही करते। वैसे मैं भी टाईप करते समय बहुत गलतियाँ करती हूँ। अच्छी पोस्ट है धन्यवाद।

माधव( Madhav) said...

दुःख होता है ये देखकर . हमारी राष्ट्र भाषा का ये हाल !

शरद कोकास said...

अद्भुत।