संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार ने जहाँ चुनावों में आम आदमी की बात उठाई थी, वहीं अब सरकार ने मंत्रियों और सांसदों को अपने रोज़मर्रा के जीवन में सादगी अपनाने का संदेश दिया है.
हाल में यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी ने दिल्ली से मुंबई जाते समय ‘बिज़नेस क्लास’ की जगह ‘इकोनोमी क्लास’ से हवाई यात्रा की थी. ये अलग बात है कि उनकी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए उनके आसपास की कई सीटें सुरक्षाकर्मियों के हवाले कर दी गईं. कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने दिल्ली से लुधियाना और फिर वापसी का सफ़र शताब्दी ट्रेन से तय किया. उनके रेल कोच में भी कई सीटें सुरक्षा की दृष्टि से या खाली रहीं या फिर सुरक्षाकर्मियों के हवाले कर दी गईं. ज्ञातव्य रहे की ये वो ही राहुल गाँधी है जो अपने प्रधानमंत्री पिता के समय अगर तालकटोरा स्टेडियम में तैरने जाते थे तो पूरा स्टेडियम खाली करवा दिया जाता था.
वैसे ये सादगी दिखने का प्रयास तो नेक है लेकिन सोचने की बात ये है की ये आज के ऐय्याश और हरामखोर नेताओ की नस्ल के बीच ये कितने दिन चलेगा और जब तक चलेगा तब तक कुछ हद तक ये आम जनता को ज्यादा हैरान और परेशान ही करेगा. कुछ हद तक इसके लिए जिम्मेदार हमारी मानसिकता है, जिसमे आज इन दो कौडी के टुच्चे कार्टून नेताओ को सर पर चढा रखा है. इन लोगो को जिनकी काबिलियत बस इतनी ही है की ये जात पाँत के नाम पर डरा धमका कर, लुट खसोट कर और दंगा करवा कर वोट लेना जानते है, को आज इतनी इज्जत दी जाती है की एक बार तो शायद भगवान् को भी शर्म आ जाये. अरे इतनी इज्जत तो अंग्रेजो के ज़माने में अंग्रेजो को भी नहीं मिलती होगी. गंजो के सर नाखून की बदौलत आज कोई कार्टून लल्लू पूर्व मुख्यमंत्री और तथाकथित रूप से (अ) भूत पूर्व रेलमंत्री करोडो का चारा और कुछ लोगो को खा कर डकार भी नहीं ले रहा है, तो किसी की माया करोडो रूपये की मूर्तियाँ बनवा कर जनता के मेहनत के पैसो का खुल्म्खुला दुरूपयोग कर खुद का खुद ही महिमा मंडन करने में लगी है.
सबसे पहले मेरा प्रश्न ये है की जब ये गरीबो का देश बोला जाता है तो नेताओ को, जो जनता की मेहनत से कमाए हुए सरकारी टैक्स के पैसे पर पलते है उनको, इतनी अमीरी में रहने का हक किसने दिया. कानून बना देना चाहिए की नेताओ की तनख्वाह देश के प्रति व्यक्ति आय से ज्यादा नहीं होगी, नेताओ को अगर अपनी सुरक्षा चाहिए तो खुद अपने खर्चे पर इंतजाम करना पड़ेगा, आम आदमी की तरह ही उनको रेल, बस और सड़क यात्रा करनी पड़ेगी और अपनी हर आमदनी और खर्चे का ब्यौरा देना पड़ेगा नहीं तो वे चुनाव लड़ने के अयोग्य करार दे दिए जायेंगे. उनकी गाडियों से लाल और नीली बत्ती निकाल ली जायेगी ताकि वो आम जनता से जुड़ सके और उन्हें हर जगह साइड से नहीं निकाल कर लाइन में लग कर अपनी बारी आने का इंतज़ार करना पड़ेगा. लेकिन अगर ऐसा करेगा कौन, क्योंकि खादी पहन कर ये तो खुद कानून बनाते है (और फिर बाद में उसी कानून को तोड़ते भी ये ही लोग है)
सुना है सोनिया गाँधी की सुरक्षा के लिहाज से हवाई जहाज की इकोनोमी क्लास में पांच पंक्तिया बुक कर दी गई थी जिसके के टिकट में पचपन हज़ार रूपये खर्च हुए. उसके ऊपर एक अलग जहाज में तीन बुलेट प्रूफ़ SUV (अति विशिष्ट व्यक्तियों की कार) गई थी, जो की निजी विमान पर होने वाले बासठ हज़ार के खर्चे से ज्यादा ही बैठता है. इस लिहाज से ये जनता की भावनाओ के साथ हमदर्दी जताने का पब्लिसिटी स्टंट लग रहा है.
नेताओं की सादगी या सादगी का ड्रामा
Posted by
Bhavesh (भावेश )
at
Thursday, September 17, 2009
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राजनीति
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