हमारा समाज आज एक बेहद ही संवेदनहीन परिवर्तन से गुजर रहा है. हर बार की तरह इसका पूरा श्रेय भारत के राजनेता, नौकरशाह और तथाकथित न्याय प्रणाली को जाता है. कहते है हमारे में से कई के पूर्वजो ने दलितों पर अत्याचार किये थे इसलिए अब दलितों को आज सामान्य वर्ग पर अत्याचार करने का अधिकार है. जी हाँ कानून ने इस भस्मासुर को आरक्षण का नाम दिया है जिसे राजनेता अपनी कुर्सी पर फेविकोल की तरह लगा कर बैठे है. कितने प्रतिशत सचमुच के दलितों और गरीबो का भला हुआ ये देश में कैंसर की तरह फैली हुई झुग्गी झोपडियां बयां करती है. एक दलित के भले पर दस अन्य को नुकसान उठाना पड़ा. खैर आज इस मुद्दे पर नहीं बल्कि इसी तरह का एक और भस्मासुर जो भारत सरकार की ही दें है उस पर चर्चा करेंगे. इस मुद्दे पर अगली तारीख देकर इसको फिर किसी दिन के लिए मुल्तवी कर दिया जाता है. जी हाँ आज में बात कर रहा हूँ उस कानून की जिसे बनाया तो सरकार ने घर बचाने के लिए था लेकिन इसने जितने घर तोडे है उसकी गिनती ही नहीं हो सकती है।
जी हाँ आपने सही पहचाना में IPC-498 A की ही बात कर रहा हूँ ।
दजेह हत्याओ जैसी घिनौनी बीमारी को रोकने के लिए ये कानून एक ऐसी दवा है जिसका साइड इफेक्ट बीमारी से कही ज्यादा खतरनाक है। इसमे कोई दो राय नही की दहेज़ हत्या समाज के लिए एक बदनुमा कलंक है पर कानून बना कर इसे धो देना ठीक वैसी ही सोच है जैसे की आँख पर पट्टी बाँध कर रात ये सोच लेना की रात हो गई। इस कानून ने घर में पति पत्नी के बीच छोटे मोटे विवादों पर पेट्रोल का काम किया है। आज ये कानून की बीमारी शहर से मोहल्लो तक आ गई है और वो दिन दूर नहीं जब इस कानून का दुरूपयोग घर घर में होने लगेगा |
सुप्रीम कोर्ट तक ने साफ़ कहाँ है की अगर इसी तरह इस कानून का दुरूपयोग होता रहा तो ये एक दिन आतंकवाद का रूप ले लेगा। आप ही सोचिये ऐसे में समाज का क्या हश्र होगा उसका भगवान ही मालिक ।
यहाँ मैं से स्पष्ट करना चाहूँगा की मैं महिलाओ के विरोध में नहीं हूँ. मेरा मानना है की "
यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते रमन्ते तत्र देवता". नारी केवल पत्नी ही नहीं है जो अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए अपने पति और उसके परिवार को जेल की हवा खि
ला कर अपने आप को बड़ा बता सके. नारी बहन भी है तो नारी माँ भी. मैं कतई नहीं चाहूँगा की एक भी गुनाहगार को माफ़ी मिले बल्कि मेरी नज़र में उसे कड़े से कड़ा दंड दिया जाना चाहिए, बशर्त की उसने गुनाह किया हो.
अगर कानून को इस तरह से लागु किया जाए की न तो कोई अपराधी इसकी गिरफ्त से बचे और न ही किसी निर्दोष को सजा मिले तब जाकर कानून की सार्थकता सिद्ध हो सकती है.आजकल इस मामले में ज्यादातर लड़की को न्याय दिलाने से कई ज्यादा रूचि उसके ससुराल वालो को फंसने में होती है. इसमें लड़की के माँ बाप सबसे ज्यादा बढ चढ़ कर हिस्सा लेते है और अपनी लड़की को गलत शह देते है. आजकल लड़की वालो के ऊपर ये सोच हावी हो गई है की मेरी बेटी को डांट लगाईं या कुछ कहा या उसके मन माफिक नहीं किया इसलिए इन सबको हवालात की हवा खिलाएंगे. पर वो इतना भी नहीं सोचते की इन सब में उनकी लड़की का जीवन भी तो ख़राब हो रहा है. अदालत, जज और वकील भी जानते है की दल में कहाँ काला है और गलती किस पक्ष की है और कौन किसे फंसा रहा है. पर वो मजबूर है क्योंकि इसे कानून का रूप लोकसभा से पारित करके दिया गया है. फिर हमारी अदालते आज भी ई-मेल, कंप्यूटर चैट, फ़ोन रिकॉर्ड को पक्का सबूत नहीं मानती. शायद इसलिए क्योंकि वहां कोई इतना पढ़ा लिखा इंसान तो है ही नहीं. आज भी देश की अदालतों में सौ रूपये में मिलने वाले झूठे गवाह की गवाही, वैज्ञानिक तरीको से प्रमाणित हो सकने वाली गवाही से, ज्यादा अहम् और सही मानी जाती है. अभी भी देश में सन 1872 का (करीब एक सौ चालीस साल पुराना) कानून चल रहा है. पारिवारिक न्यायलय के वकील हर राज्य और प्रान्त में विविधता में एकता का परिचय देते हुए मिलते है. ये आपस में मिले होते है और इन
की दिलचस्पी केवल झगडे का फायदा उठा कर दोनों पक्षों को गलत सलाह और मशवरा देकर मामले को लम्बा खींचने और पैसा ऐठने के अलावा और किसी में नहीं होती. फिर चाहे वो नया वकील हो या पुराना खिलाडी चाहे वो पांच हज़ार वाला वकील हो या पेंतीस हज़ार वाला. पुलिस भी गिरफ्तार तभी करती है जब लड़की वाले उन्हें "खुश" कर देते है. वो लड़के के परिवार वालो को भी थाने में सेवा देती है जब तक लड़के वाले उन्हें "खुश" न करे. तो पुलिस के तो दोनों हाथ घी में और सर कढाई में.
सबसे मजे की बात ये है की कोई अगर हत्या जैसा घिनौना जुर्म करे या पडोसी मुल्क के हमारे न्यायलय के मेहमान अजमल कसाब (उसके लिए मुंबई सरकार ने दो करोड़ रूपये खर्च करके जेल में एयर कन्डीशन कमरा और एक विशेष अदालत बनवाई है) की तरह की नवम्बर 2008 में मुंबई की गई कोई हरकत को अंजाम दे तो भी हमारे महान न्यायलय उसे तब तक दोषी नहीं मानता जब तक उस पर आरोप सिद्ध नहीं हो जाते. यानि हर हाल में आरोप सिद्ध होने तक व्यक्ति अपराधी नहीं कहलाया जाता पर IPC-498 A पत्नी के द्वारा महिला थाने में रिपोर्ट दर्ज होते ही व्यक्ति अपराधी की श्रेणी में आ जाता है. ये मुकदमा क्रिमिनल केस की श्रेणी में आ
ता है न की सिविल केस की और जब तक उस व्यक्ति के खिलाफ आरोप गलत नहीं साबित होते तब तक वो व्यक्ति क्रिमिनल अपराधी माना जाता है.
आइये इस कानून की भयावहता पर एक नज़र डाले : (2006 तक के भारत सरकार के ये आंकडे
संसद में पेश किये जा चुके है)
- 1995 से 2006 यानि बारह साल में IPC-498 A धारा में दर्ज मुकदमो में 120% की वृद्धि दर्ज की गई. जैसे जैसे लोगो को ये कानूनी फिरौती के धंधे के बारे में पता चला इसके जाल में फंसने वाले लोगो की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि हुई।
- 1995 से 2006 में IPC-498 A के तहत लाख से ज्यादा गिरफ्तारियां हुई .
- 1995 से 2006 में IPC-498 A के तहत में हर पांच मिनिट में एक निर्दोष व्यक्ति की गिरफ्तारी हुई. 2002 से 2006 में पॉँच लाख व्यक्तियों की गिरफ्तारियां हुई जिसमे से 80% पूर्णत निर्दोष थे.
- 1995 से 2006 में IPC-498 A के तहत सवा दो घंटे में पांच मिनिट में एक बुजुर्ग व्यक्ति की गिरफ्तारी हुई. 2002 से 2006 में बीस हज़ार बुजुर्गो को इस कानून ने हवालात के दर्शन करवाए. विश्व स्वस्थ्य संगठन (WHO) की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में ये कानून बुजुर्गो के उत्पीडन का सबसे बड़ा कारण है.
- 1995 से 2006 में IPC-498 A के तहत हर इक्कीस मिनिट में एक महिला की गिरफ्तारी हुई जो लड़के की माँ, बहन, भाभी थी, कई मामलो में तो गर्भवती महिलाओ को भी हवालात में डाल दिया गया. 2002 से 2006 में एक लाख महिलाओ की गिरफ्तारी हुई.
- एक अबोध बच्चा लगभग हर रोज इस कानून के तहत गिरफ्तार हो रहा है.
- देश के महानतम अदालतों से निर्दोष साबित होने में औसतन लगभग आठ साल का समय लगता है.
देश में आत्महत्या के आंकडे :क्या आप जानते है देश में हर 100 आत्महत्याओं में 63 पुरुष और 37 महिलाये है। हर 100 पुरुष आत्महत्याओं में 45 विवाहित होते है जबकि हर 100 महिलाओं की आत्महत्याओं में केवल 25 विवाहित महिलाये है।
अगर एक विवाहित स्त्री आत्महत्या कर लेती है तो उसके पति को बाकायदा सीधे जेल होती है जबकि अगर विवाहित पुरुष आत्महत्या कर ले तो उसकी सम्पति से आधा हिस्सा सीधा उसकी पत्नी को मिल जाता है. मद्रास इंस्टिट्यूट ऑफ़ डेवेलोपमेंट स्टडीज के प्रोफ़ेसर के नागराज के एक शोध के अनुसार देश में तलाकशुदा पुरुषों की आत्महत्या दर 164 प्रति लाख है जबकि तलाकशुदा महिलाओ की आत्महत्या दर 63 प्रति लाख है. ठीक इसी तरह अलग रह रहे (लेकिन जिनका अभी तक तलाक नहीं हुआ) पुरुषों की आत्महत्या दर 167 प्रति लाख है जबकि ऐसी महिलाओ की आत्महत्या दर 41 प्रति लाख है.
अगस्त 2008 में सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश के तहत कम से कम इतना तो किया है की अगर कोई लड़की शादी के सात साल में आत्महत्या कर लेती है तो इसका अपने आप ये मतलब नहीं लगाया जा सकता की उसे दहेज़ के लिए तंग किया गया है.
खासियत :
- ये एक प्रज्ञेय अवेक्षणीय (cognizable) गुनाह है जिसमे पुलिस को रिपोर्ट दर्ज करते ही गिरफ्तार करने का अधिकार है.
- ये गैर जमानती (non bailable) जुर्म की श्रेणी में आता है. यानि केवल संदेह के आधार पर मजिस्ट्रेट को जमानत रद्द करने का और व्यक्ति को पुलिस कारगर में पड़े रहे देने का हक है.
- ये अप्रशम्य (non compoundable) जुर्म है. यानि शिकायतकर्ता अपनी शिकायत वापस नहीं ले सकता.
इसकी खासियत ये है की
- ये पुलिस की आमदनी का जरिया है.
- पुलिस द्वारा किसी को प्रताडित करने तथा मानव अधिकारों का हनन करने की चाबी है.
- अदालतों में भ्रष्टाचार को फैलाती हुई विषबेल है.
- लिंग भेद से राजीनीतिक खेल खेलने वाले दानवो का वोटो का बैंक है.
- सही मायने में गरीब लड़की जो दहेज़ से पीड़ित है उस व्यक्ति को न्याय न मिल सके इसको सुनिश्चित करने का तरीका है.
- देश की भ्रष्ट दुष्ट और आपराधिक न्याय प्रणाली में निरपराध परिवारों को फांसने का षडयंत्र है.
ये एक ऐसा जुआ है जिसमे अगर झूठ से फंसाया हुआ व्यक्ति धार ले और उसके पास दस साल तक का समय और पैसा हो तो उसे न्याय मिल सकता है. आम आदमी के बोलचाल की भाषा में ये सरकारी मान्यता प्राप्त फिरौती का धंधा है. (जैसे सोमालिया के समुद्री लुटेरे आजकल कर रहे है)
कारण :जब इतना बड़ा बखेडा खडा किया जाता है, कानून की धज्जियाँ उडाई जाती है तो इसके पीछे क्या कुछ खास कारण जरुर है. आइये एक नज़र डाले की आज समाज में ये विघटन क्यों हो रहा है और इसके मुख्य कारण क्या क्या है.
पैसा : कहते है न पैसा सब मुसीबत की जड़ है. यहाँ भी इस बनावती रिश्ते में पैसा सबसे बड़ी भूमिका बनता है. आज ये कानून अप्रवासी भारतीयो से फिरौती वसूली का धंधा बन गया है. स्थिति इतनी विकट हो चुकी है कि अमेरिका और ब्रिटेन ने अपनी वेबसाइट पर भारत जा कर शादी कर रहे उनके देश के नागरिको को भारत यात्रा परामर्श जारी कर दिया है जिसमे इस भेदभाव पूर्ण कानून का उल्लेख है. अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा की वेब साईट पर भी इस मुद्दे से जूझ रहे भारतीयों की चिंता और दुर्दशा का उल्लेख है. कानूनी तौर पर डाका डाल कर लुटा हुआ ये पैसा लड़की को पुनर्स्थापित करने, लड़की के घर की वितीय स्तिथि सुधारने में मददगार होता है.
बदला : जी हाँ ये शायद अजीब लगे, लेकिन कहते है की मादा प्रजाति पुरुषों के मुकाबले बहुत ज्यादा खतरनाक होती है। लड़की को लड़के के माँ, पिताजी, बहन कि शक्ल पसंद नहीं है, किसी ने कुछ कह दिया या किसी ने डांट दिया या कोई बात अच्छी नहीं लगी तो दुश्मनी बंध गई और कानूनी रूप से अपनी दुश्मनी निकलने का इससे ज्यादा गन्दा और घटिया गैरकानूनी तरीका क्या हो सकता है।
अपनी गलती को छुपाना : अब इसे सचमुच कमीनापन ही कहेंगे. लड़के को लड़की के शादी के पहले के कुछ अनकहे पन्नो की जानकारी हाथ लग गई या कोई ऐसे सबूत मिल गए है तो लड़की अपने बहीखातो के उन पन्नो को छुपाने के लिए लड़के और उसके परिवार को फंसा देती है।
परिवार पर नियंत्रण करना : जी हाँ आजकल कई लड़कियों शादी के पहले दिन से ही अपने पुरे ससुराल को अपने नियंत्रण में लेने को अमादा होती है और अगर कही कोई ना नुकुर हो तो बस हमारा कानून तो है ही सरदर्द बन कर लड़की को नाजायज़ फायदा देने के लिए।
बॉयफ्रेंड : ये आजकल चौकाने वाला नया तथ्य है जिसमे लड़की को अपने बॉयफ्रेंड से शादी करने के लिए लड़के और उसके घर वालो को फांस दिया जाता है। लड़के से मिली मोटी रकम से लड़की अपना आशियाना बसा लेती है.
लड़का पसंद नहीं : लड़की को किसी भी कारण से लड़का पसंद नहीं है और वो उस के साथ नहीं रहना चाहती. बस दहेज़ कानून का दुरूपयोग करो और पैसे के साथ साथ मनमांगी मुराद पूरी.
असुरक्षित कौन :वो सभी जो निम्नलिखित श्रेणी में आते है उन के सर पर इस बेतुके कानून की तलवार हर वक़्त लटक रही है.
- वो सभी जो भारतीय मूल के है और जिन्होंने भारत में शादी की है.
- वो सभी जिनकी पत्निया भारतीय है.
- वो सभी जिनके बच्चो की शादी भारतीय लड़की के साथ हुई है.
- वो सभी जिनके नजदीक के रिश्तेदार की पत्नी भारतीय है.
- वो सभी जिनकी पत्नी अपने पति से अलग रहने के लिए अपने पति पर लगातार दबाव बना रही है.
- वो सभी जिनकी पत्नी अपने सास ससुर के प्रति लगातार अशिष्ट व्यवहार करती है.
आगे क्या :आज समाज में हो रहे इस अंधकारमय परिवर्तन का असर आने वाले समय में क्या होगा ये तो भविष्य ही बतलायेगा। पर मुझे नहीं लगता ये पांच दस लाख रूपये किसी की पूरी जिंदगी चला सकते है। अपनी आदतों के कारण ये लड़किया कही ठीक ढंग से समन्वय बैठा पाए ये यथार्थ से परे लगता है. आने वाले समय में इन लड़कियों को शह देने वाले इनके माँ बाप भी जा चुके होंगे और उस समय ये क्या करेंगी ये तो भगवान् ही बेहतर बता सकता है. बस ये ही आशा करता हूँ की हम कम से कम इस मामले में अमेरिका नहीं बने और ये उस समय की प्रोढ़ महिलाये और कोई घर बर्बाद न करे.
मेरे एक मित्र के अनुसार आजकल एअरपोर्ट पर जब किसी लड़के को शादी करते हुए देश जाते हुए देखता हूँ तो ऐसा लगता है जैसे किसी बेचारे मुर्गे को बूचड़खाने ले जाया जा रहा है.
अगर जल्द ही देश की सरकार ने इस कानून का दुरूपयोग होने से नहीं रोका तो ये देश और समाज के लिए ठीक वैसा ही खतरनाक होगा जैसे पाकिस्तान के आतंकवादियों के हाथ में आणविक या जेविक हथियार दे दिए गए हो. आपको ये लेख कैसा लगा अपने विचार अवश्य प्रकट करे।