रेपो रेट और CRR क्या होता है.
रेपो रेट : रिजर्व बैंक द्वारा वाणिज्यिक बैंकों को छोटी अवधि के लिए दिया जाने वाला कर्ज रेपो रेट कहलाता है। यदि रिजर्व बैंक रेपो रेट में बढ़ोतरी करता है तो इससे वाणिज्यिक बैंकों को अल्पकाल के लिए मिलने वाला कर्ज महंगा हो जाता है। इसकी भरपाई के लिए अमूमन वाणिज्यिक बैंक अपने विभिन्न कर्जों की दरों में बढ़ोतरी करते हैं।
रिवर्स रेपो रेट : वाणिज्यिक बैंक जिस दर पर रिजर्व बैंक के पास कम अवधि के लिए अपना पैसा जमा करते हैं, उस दर को रिवर्स रेपो रेट कहा जाता है।
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आर्थिक त्सुनामी / सुनामी
ये आर्थिक जगत में उठापठक का खेल शुरु हुआ अमरीका के सब प्राइम संकट से. इस संकट ने अभूतपूर्व स्थिति पैदा कर दी. अमरीकी केंद्रीय बैंक के पूर्व गर्वनर एलन ग्रीन्सपैन की 'बाज़ार में पैसा छोड़ो' की नीति विफल साबित हुई और अमेरिका के पाँच सबसे बड़े इनवेस्टमेंट बैंक (गोल्डमैन, मोर्गन स्टेनली, मेरिल लिंच, लेहमन ब्रदर्स और बियर स्टर्न्स) में से तीन का तो नामोनिशान तक मिट गया.
देश की आर्थिक प्रगति का पहिया जो अपने पुरी गति के साथ २००७ और २००८ में घूम रहा था, और जिसने कई शेखचिल्ली नुमा हरे भरे ख्याली सब्ज बाग़ दिखाए थे वो सब एक तिलिस्म की तरह यकायक अंतर्ध्यान हो गए. ये विकास के राह पर तेजी से चलता पहिया अचानक अपनी गति खो बैठा और जोर का झटका, धीरे से नही जरा जोर से ही लगा.
वैश्विक मंदी की बढ़ती आशंका और कर्ज़ के अभाव में बुनियादी अर्थव्यवस्था की रफ़्तार धीमी पड़ने की आशंका के कारण अमरीका, यूरोप, दक्षिण पूर्वी एशिया के साथ -साथ भारत का बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज भी लगातार गोता लगा रहा है. जनवरी २००८ से दिसम्बर २००८ तक सेंसेक्स ने 21 हज़ार अंकों से लुढकते हुए साढ़े आठ हज़ार पर जा लुढ़का. जब दस जनवरी २००८ को सेंसेक्स 21 हज़ार के ऊपर ऐताहिसक उच्च स्तर पर था तब शेयर बाज़ार में सूचीबद्ध कंपनियो के शेयरों की कुल कीमत लगभग 27 लाख 74 हज़ार करोड़ रूपए थी. लेकिन साल का अंत आते आते ये कीमत घट कर अब आधी से कम हो चुकी है. कुछ बड़ी कंपनियों मसलन आईसीआईसीआई, यूनिटेक, डीएलएफ, क्रेडिट डेवलपमेंट बैंकों के शेयरों में 75 फ़ीसदी से ज़्यादा की गिरावट दर्ज हो चुकी है. कुल मिलाकर शेयर बाज़ार अब वहीं खड़ा दिखाई दे रहा है जहाँ तीन साल पहले था. सेंसेक्स की हालत तो कुछ भी ठीक है लेकिन जापान का सूचकांक पिछले 26 वर्षों के न्यूनतम स्तर पर है.
अमरीका से शुरु इस संकट ने पूरी दुनिया में कर्ज़ की समस्या पैदा कर दी क्योंकि नकदी अचानक इतनी कम पड़ गई कि बैंक या वित्तीय संस्थान ग्राहकों को पैसा देने से पहले ख़ुद अपनी स्थिति मज़बूत करना बेहतर समझ रहे हैं। भारत में हालाँकि बैंकों की हालत मज़बूत है लेकिन पहले से बढ़ी महँगाई और रूपए के डॉलर के मुक़ाबले ऐतिहासिक स्तर पर कमज़ोर होने के बाद नकदी की कुछ समस्या यहाँ भी दिखाई देने लगी. कुछ निजी भारतीय बैंकों को तो इस स्थिति का सामना इसलिए करना पड़ा क्योंकि उनकी विदेशी शाखाओं ने अमरीकी सब प्राइम बाज़ार में निवेश किया था जो डूब गया. इन सबका असर शेयर बाज़ार पर बुरे परिणाम छोड़ता नज़र आ रहा है.
विश्लेषकों के मुताबिक जब भारतीय शेयर बाज़ार शीर्ष पर था तब यहाँ विदेशी संस्थापक निवेशकों ने लगभग 12 लाख करोड़ रूपए लगाए हुए थे. सेंसेक्स को दस हज़ार से बीस हज़ार पहुँचने के दौरान विदेशी संस्थापक निवेशकों ने एक लाख करोड़ रूपए से अधिक का निवेश किया था. लेकिन अब तो उनका कुल निवेश ही सिर्फ़ चार लाख करोड़ रूपए के आस-पास बचा है.
जब बाज़ार उफ़ान पर था उस समय मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज की पूँजी सौ अरब डॉलर के पार निकल गई और अनिल भी उनके पीछे -पीछे रहे. लेकिन गिरावट के कारण मुकेश की पूँजी में 99 अरब डॉलर का नुकसान हो चुका है. उनके छोटे भाई अनिल अंबानी को लगभग 87 अरब डॉलर का नुकसान हुआ है. घाटे के मामले में दोनों बंधुओं ने आर्सेलर के मालिक लक्ष्मी मित्तल को भी पीछे छोड़ दिया है जिन्हें लगभग 68 अरब डॉलर का नुकसान हुआ है.
'पाँच करोड़ लोग बेरोज़गार हो जाएँगे'
संयुक्त राष्ट्र से जुड़े इस संगठन का कहना है कि इसकी वजह से दुनिया भर में बेरोज़गारी का आंकड़ा सात प्रतिशत तक पहुँच जाएगा जबकि इस समय यह छह प्रतिशत के करीब है.
आईएलओ का कहना है नौकरियों में होने वाली कटौतियों का सबसे बुरा असर विकासशील देशों पर पड़ेगा.
श्रम संगठन का कहना है, "अगर आशंका के अनुरूप मंदी की हालत और बुरी हुई तो दुनिया भर में बेरोज़गारी का संकट बहुत गंभीर हो जाएगा।"
आईएलओ के महानिदेशक हुआन सोमाविया ने कहा, "यह एक विश्वव्यापी संकट है जिसके समाधान के लिए सबको काम करना होगा, दुनिया भर में ग़रीबी निवारण की दिशा में किए गए कामों पर पानी फिर रहा है, मध्यमवर्ग की दशा बिगड़ रही है. "
हर सप्ताह दसियों कंपनियों में हज़ारों की तादाद में लोगों की छंटनी के समाचार आ रहे हैं, इस सप्ताह फ़िलिप्स, होमडिपो, आईएनजी और कैटरपिलर जैसी कंपनियों ने बड़ी छँटनियों की घोषणा की है.
पिछले वर्ष सबसे अधिक नई नौकरियों के अवसर एशिया में पैदा हुए, दुनिया भर की कुल नई नौकरियों का 57 प्रतिशत हिस्सा एशियाई देशों से आया.
आईएलओ का कहना है कि दुनिया भर में छाई आर्थिक मंदी की वजह से एशियाई देशों के नौकरी बाज़ार में बढ़ोतरी की जगह छँटनी का दौर शुरु हो चुका है.
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एक दिन में 70 हज़ार नौकरियाँ गईं
सबसे बड़ा फ़ैसला सब प्राइम संकट से जूझ रहे अमरीका में कंस्ट्रक्शन कंपनी कैटरपिलर ने लिया है. नुकसान उठा रही इस कंपनी में बीस हज़ार कर्मचारियों की छँटनी होगी.
यूरोप में इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पाद बनाने वाली फिलिप्स, इस्पात कंपनी कोरस और आईएनजी बैंक ने भी कर्मचारियों की छँटनी का फ़रमान जारी किया है. कैटरपिलर के मुख्य कार्यकारी अधिकारी जिम ओवेन्स का कहना है, "इसमें कोई शक नहीं कि वर्ष 2009 बहुत संकट भरा होगा." जिन कंपनियों ने कर्मचारियों की संख्या कम करने का फ़ैसला किया है, उनमें से अधिकतर के नतीजे अच्छे नहीं हैं और उन्होंने आने वाले समय में कारोबार गिरने का अंदेशा जताया है. कैटरपिलर के शुद्ध मुनाफ़े में साल की चौथी तिमाही के दौरान 32 फ़ीसदी गिरावट आई है.
नौकरियों पर मँडरा रहे ख़तरे की भनक को भुनाते हुए नए अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कॉंग्रेस से अपील की है कि वो 825 अरब डॉलर के आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज को जल्दी मंज़ूरी दे दे. इस पैकेज में कर दरें कम करने, आपात मदद और सरकारी निवेश बढ़ाने का प्रावधान है. ओबामा का कहना है, "छँटनी की संख्या के अलावा उन परिवारों को देखिए जो बर्बाद हो चुके हैं और जिनके सपने अधूरे रह गए." कैटरपिलर के अलावा अमरीकी टेक्नोलॉजी कंपनी टेक्सास इंस्ट्रूमेंट ने 3400 कर्मचारियों को हटाने का फ़ैसला किया है. मोबाइल चिप बनाने वाली इस कंपनी ने कहा है कि माँग घटने के कारण वो ये क़दम उठा रही है. अमरीकी दवा कंपनी फ़ाइज़र भी बीस हज़ार नौकरियाँ कम कर रही है. ऑटो कंपनी जनरल मोटर्स ने कहा है कि माँग नहीं रहने के कारण उसे मिशिगन और ओहियो के कारखाने बंद करने पड़े हैं, इसलिए वहाँ काम करने वाले दो हज़ार कर्मचारियों की छँटनी होगी. नीदरलैंड के बड़े बैंक आईएनजी ने सात हज़ार लोगों को हटाने का फ़ैसला किया है. स्टील कंपनी कोरस पहले ही 3500 कर्मचारियों को निकालने का फ़ैसला कर चुकी है जिनमें से 2500 ब्रिटेन की इकाई में काम करने वाले हैं।
कैटरपिलर - 20,000
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गणतंत्र दिवस और हम
गृह मंत्रालय ने राज्यों के साथ साथ जनता को भी सतर्क रहने को कहा था | गृह मंत्रालय ने सभी राज्य सरकारों और जनता से अपील की थी कि वे गणतंत्र दिवस पर सतर्कता बनाए रखें | दिल्ली में परेड क्षेत्र और राजपथ के आसपास के सभी रास्तों को पुलिस ने अपनी निगरानी में ले लिया था और लगभग 20 हज़ार सुरक्षाकर्मी तैनात किए गए थे या यूँ समझ लीजिये दिल्ली को एक छावनी में तब्दील कर दिया गया था। परेड को देखते हुए हेलीकॉप्टरों के ज़रिए निगरानी रखी जा रही थी और एंटी एयरक्राफ़्ट गन तैनात की गई थी। राजधानी में जगह-जगह पर नाकेबंदी थी. सीमावर्ती राज्यों से राजधानी क्षेत्र में प्रवेश कर रहे सभी वाहनों की तलाशी ली जा रही थी। यहाँ तक कि दिल्ली के कई रास्तों को गणतंत्र दिवस के उपलक्ष में आम यातायात बंद रखा गया था और दोपहर तक के लिए मैट्रो रेलों के आवागमन को भी रोक दिया गया था। ये कैसा समारोह है, जिसमे आम आदमी के यातायात को तो बंद कर दिया जाता है और दुनिया के देशो को हमारी सेन्य क्षमताओं से अवगत करवाया जाता है। मानता हूँ कि आज के दौर में जनता की सुरक्षा जरुरी है लेकिन क्या ये सुरक्षा साल में एक या दो ही दिन निश्चिंत करनी चाहिए। क्या सुरक्षा के नाम पर लोगो को घर में बंद हो कर बैठने को बोल देना चाहिए और ट्रेन, बस इत्यादि बंद कर देने ?
सुरक्षा देनी है तो ऐसी सुरक्षा हो जहाँ देश का हर नागरिक अपने रोजमर्रा के काम पर जाते हुए सुरक्षित महसूस कर सके। आज देश में हज़ार व्यक्ति पर एक पुलिस वाला है। हांगकांग में प्रति हज़ार व्यक्ति पर ४.७ मलेशिया में ३.४ और थाईलैंड में प्रति हज़ार व्यक्ति पर ३.३ पुलिस वाले है। पहले सबसे कम पुलिस, वो भी भ्रष्ट, फिर न उनके पास उचित प्रशिक्षण, न आधुनिक हथियार और उसमे से २५% (एक चोथाई) नेता लोगो की सेवा में लगा दी जाए तो आम आदमी को अपनी सुरक्षा ख़ुद ही करनी पड़ेगी।
पहले देश की सुरक्षा व्यवस्था चाक चोबंद करो, आम जनता में सुरक्षा की भावना पैदा करो ताकि फिर से कारगिल युद्ध और ताज/ओबेरॉय मुंबई में हुई घटनाओं की पुनरावृति न हो। उसके बाद अगर हम गणतंत्र या स्वाधीनता दिवस मनाये तो ज्यादा सार्थक होगा।
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मानव शाकाहारी है या मांसाहारी ?
जहाँ तक मुझे ज्ञात है हिंदू धर्म की किसी धार्मिक पुस्तक में ये स्पष्ट तौर पर नही लिखा है कि हिन्दुओ को केवल शाकाहारी ही होना चाहिए | हाँ गौमांस अवश्य वर्जित है | हिंदू धर्म में शाकाहारी मान्यताओं के तीन मुख्य कारण है
१. अहिंसा (जीव के प्रति हिंसा अपराध है)
२ शुद्धता (भोजन प्रसाद का रूप है). शाकाहारी भोजन सात्विक होता है और मांसाहारी भोजन को तामसिक कहा गया है |
३ ये सोच की शाकाहारी भोजन दिमाग और आध्यात्मिक विकास में सहायक है |
वैदिक काल के ग्रन्थ जैसे महाभारत, भागवद पुराण, मनु स्मृति, छान्दोग्य उपनिषद में मांसाहार को निषिद्ध नही किया गया है | क्षत्रियो के लिए कुछ प्राणियो का शिकार करके खाना भी वर्जित नही है (शायद उस समय होने वाले युद्ध क्षेत्र में विकट परिस्तिथि को ध्यान में रख कर ऐसा कहा गया होगा) | वैष्णव पंथ के लोगो के लिए सात्विक भोजन का उल्लेख अवश्य है |
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क्या भारत-पाक का युद्ध होना जरूरी है
कैसे इक्का दुक्का सेना के जवानों को घंटो तक गोलाबारी में उलझाये रखते है ?
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क्या देश की आंतरिक सुरक्षा मजबूत है ?
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क्या के अंदर और बाहर स्थित आतंकवादी ठिकानों पर छापा मारकर उन्हें नष्ट कर देना चाहिए ?
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क्या एक और कारगिल जैसा युद्ध होगा ?
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