अनमोल वचन
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Bhavesh (भावेश )
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Thursday, March 05, 2015
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14 वर्ष के वनवास में राम कहां-कहां रहे?
राम का जन्म : राम एक ऐतिहासिक महापुरुष थे और इसके पर्याप्त प्रमाण हैं। शोधानुसार पता चलता है कि भगवान राम का जन्म आज से 7128 वर्ष पूर्व अर्थात 5114 ईस्वी पूर्व हुआ था। अन्य विशेषज्ञों के अनुसार राम का जन्म आज से लगभग 9,000 वर्ष (7323 ईसा पूर्व) हुआ था।
चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन राम का जन्म हुआ था। प्रो. तोबायस के अनुसार वाल्मीकि में उल्लेखित ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति के अनुसार राम का जन्म अयोध्या में 10 जनवरी को 12 बजकर 25 मिनट पर 5114 ईसा पूर्व हुआ था। उस दिन चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की नवमी थी। आकाशीय ग्रह-नक्षत्रों की यह स्थित वाल्मीकि रामायण के 1/18/89 में वर्णित है। प्लैनेटेरियम सॉफ्टवेयर के माध्यम से किसी की भी जन्म तिथि का पता लगाना अब आसान है।
रामायण में उल्लेखित और अनेक अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार जब भगवान राम को वनवास हुआ तब उन्होंने अपनी यात्रा अयोध्या से प्रारंभ करते हुए रामेश्वरम और उसके बाद श्रीलंका में समाप्त की। इस दौरान उनके साथ जहां भी जो घटा उनमें से 200 से अधिक घटना स्थलों की पहचान की गई है।
जाने-माने इतिहासकार और पुरातत्वशास्त्री अनुसंधानकर्ता डॉ. राम अवतार ने श्रीराम और सीता के जीवन की घटनाओं से जुड़े ऐसे 200 से भी अधिक स्थानों का पता लगाया है, जहां आज भी तत्संबंधी स्मारक स्थल विद्यमान हैं, जहां श्रीराम और सीता रुके या रहे थे। वहां के स्मारकों, भित्तिचित्रों, गुफाओं आदि स्थानों के समय-काल की जांच-पड़ताल वैज्ञानिक तरीकों से की। आओ जानते हैं कुछ प्रमुख स्थानों के बारे में...
1.केवट प्रसंग : राम को जब वनवास हुआ तो वाल्मीकि रामायण और शोधकर्ताओं के अनुसार वे सबसे पहले तमसा नदी पहुंचे, जो अयोध्या से 20 किमी दूर है। इसके बाद उन्होंने गोमती नदी पार की और प्रयागराज (इलाहाबाद) से 20-22 किलोमीटर दूर वे श्रृंगवेरपुर पहुंचे, जो निषादराज गुह का राज्य था। यहीं पर गंगा के तट पर उन्होंने केवट से गंगा पार करने को कहा था।
'सिंगरौर' : इलाहाबाद से 22 मील (लगभग 35.2 किमी) उत्तर-पश्चिम की ओर स्थित 'सिंगरौर' नामक स्थान ही प्राचीन समय में श्रृंगवेरपुर नाम से परिज्ञात था। रामायण में इस नगर का उल्लेख आता है। यह नगर गंगा घाटी के तट पर स्थित था। महाभारत में इसे 'तीर्थस्थल' कहा गया है।
'कुरई' : इलाहाबाद जिले में ही कुरई नामक एक स्थान है, जो सिंगरौर के निकट गंगा नदी के तट पर स्थित है। गंगा के उस पार सिंगरौर तो इस पार कुरई। सिंगरौर में गंगा पार करने के पश्चात श्रीराम इसी स्थान पर उतरे थे।
इस ग्राम में एक छोटा-सा मंदिर है, जो स्थानीय लोकश्रुति के अनुसार उसी स्थान पर है, जहां गंगा को पार करने के पश्चात राम, लक्ष्मण और सीताजी ने कुछ देर विश्राम किया था।
2.चित्रकूट के घाट पर : कुरई से आगे चलकर श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण और पत्नी सहित प्रयाग पहुंचे थे। प्रयाग को वर्तमान में इलाहाबाद कहा जाता है। यहां गंगा-जमुना का संगम स्थल है। हिन्दुओं का यह सबसे बड़ा तीर्थस्थान है। प्रभु श्रीराम ने संगम के समीप यमुना नदी को पार किया और फिर पहुंच गए चित्रकूट। यहां स्थित स्मारकों में शामिल हैं, वाल्मीकि आश्रम, मांडव्य आश्रम, भरतकूप इत्यादि।
चित्रकूट वह स्थान है, जहां राम को मनाने के लिए भरत अपनी सेना के साथ पहुंचते हैं। तब जब दशरथ का देहांत हो जाता है। भारत यहां से राम की चरण पादुका ले जाकर उनकी चरण पादुका रखकर राज्य करते हैं।
3.अत्रि ऋषि का आश्रम : चित्रकूट के पास ही सतना (मध्यप्रदेश) स्थित अत्रि ऋषि का आश्रम था। महर्षि अत्रि चित्रकूट के तपोवन में रहा करते थे। वहां श्रीराम ने कुछ वक्त बिताया। अत्रि ऋषि ऋग्वेद के पंचम मंडल के द्रष्टा हैं। अत्रि ऋषि की पत्नी का नाम है अनुसूइया, जो दक्ष प्रजापति की चौबीस कन्याओं में से एक थी।
अत्रि पत्नी अनुसूइया के तपोबल से ही भगीरथी गंगा की एक पवित्र धारा चित्रकूट में प्रविष्ट हुई और 'मंदाकिनी' नाम से प्रसिद्ध हुई। ब्रह्मा, विष्णु व महेश ने अनसूइया के सतीत्व की परीक्षा ली थी, लेकिन तीनों को उन्होंने अपने तपोबल से बालक बना दिया था। तब तीनों देवियों की प्रार्थना के बाद ही तीनों देवता बाल रूप से मुक्त हो पाए थे। फिर तीनों देवताओं के वरदान से उन्हें एक पुत्र मिला, जो थे महायोगी 'दत्तात्रेय'। अत्रि ऋषि के दूसरे पुत्र का नाम था 'दुर्वासा'। दुर्वासा ऋषि को कौन नहीं जानता?
अत्रि के आश्रम के आस-पास राक्षसों का समूह रहता था। अत्रि, उनके भक्तगण व माता अनुसूइया उन राक्षसों से भयभीत रहते थे। भगवान श्रीराम ने उन राक्षसों का वध किया। वाल्मीकि रामायण के अयोध्या कांड में इसका वर्णन मिलता है।
प्रातःकाल जब राम आश्रम से विदा होने लगे तो अत्रि ऋषि उन्हें विदा करते हुए बोले, 'हे राघव! इन वनों में भयंकर राक्षस तथा सर्प निवास करते हैं, जो मनुष्यों को नाना प्रकार के कष्ट देते हैं। इनके कारण अनेक तपस्वियों को असमय ही काल का ग्रास बनना पड़ा है। मैं चाहता हूं, तुम इनका विनाश करके तपस्वियों की रक्षा करो।'
राम ने महर्षि की आज्ञा को शिरोधार्य कर उपद्रवी राक्षसों तथा मनुष्य का प्राणांत करने वाले भयानक सर्पों को नष्ट करने का वचन देखर सीता तथा लक्ष्मण के साथ आगे के लिए प्रस्थान किया।
चित्रकूट की मंदाकिनी, गुप्त गोदावरी, छोटी पहाड़ियां, कंदराओं आदि से निकलकर भगवान राम पहुंच गए घने जंगलों में...
4. दंडकारण्य : अत्रि ऋषि के आश्रम में कुछ दिन रुकने के बाद श्रीराम ने मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के घने जंगलों को अपना आश्रय स्थल बनाया। यह जंगल क्षेत्र था दंडकारण्य। 'अत्रि-आश्रम' से 'दंडकारण्य' आरंभ हो जाता है। छत्तीसगढ़ के कुछ हिस्सों पर राम के नाना और कुछ पर बाणासुर का राज्य था। यहां के नदियों, पहाड़ों, सरोवरों एवं गुफाओं में राम के रहने के सबूतों की भरमार है। यहीं पर राम ने अपना वनवास काटा था। यहां वे लगभग 10 वर्षों से भी अधिक समय तक रहे थे।
'अत्रि-आश्रम' से भगवान राम मध्यप्रदेश के सतना पहुंचे, जहां 'रामवन' हैं। मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ क्षेत्रों में नर्मदा व महानदी नदियों के किनारे 10 वर्षों तक उन्होंने कई ऋषि आश्रमों का भ्रमण किया। दंडकारण्य क्षेत्र तथा सतना के आगे वे विराध सरभंग एवं सुतीक्ष्ण मुनि आश्रमों में गए। बाद में सतीक्ष्ण आश्रम वापस आए। पन्ना, रायपुर, बस्तर और जगदलपुर में कई स्मारक विद्यमान हैं। उदाहरणत: मांडव्य आश्रम, श्रृंगी आश्रम, राम-लक्ष्मण मंदिर आदि।
राम वहां से आधुनिक जबलपुर, शहडोल (अमरकंटक) गए होंगे। शहडोल से पूर्वोत्तर की ओर सरगुजा क्षेत्र है। यहां एक पर्वत का नाम 'रामगढ़' है। 30 फीट की ऊंचाई से एक झरना जिस कुंड में गिरता है, उसे 'सीता कुंड' कहा जाता है। यहां वशिष्ठ गुफा है। दो गुफाओं के नाम 'लक्ष्मण बोंगरा' और 'सीता बोंगरा' हैं। शहडोल से दक्षिण-पूर्व की ओर बिलासपुर के आसपास छत्तीसगढ़ है।
वर्तमान में करीब 92,300 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले इस इलाके के पश्चिम में अबूझमाड़ पहाड़ियां तथा पूर्व में इसकी सीमा पर पूर्वी घाट शामिल हैं। दंडकारण्य में छत्तीसगढ़, ओडिशा एवं आंध्रप्रदेश राज्यों के हिस्से शामिल हैं। इसका विस्तार उत्तर से दक्षिण तक करीब 320 किमी तथा पूर्व से पश्चिम तक लगभग 480 किलोमीटर है।
दंडक राक्षस के कारण इसका नाम दंडकारण्य पड़ा। यहां रामायण काल में रावण के सहयोगी बाणासुर का राज्य था। उसका इन्द्रावती, महानदी और पूर्व समुद्र तट, गोइंदारी (गोदावरी) तट तक तथा अलीपुर, पारंदुली, किरंदुली, राजमहेन्द्री, कोयापुर, कोयानार, छिन्दक कोया तक राज्य था। वर्तमान बस्तर की 'बारसूर' नामक समृद्ध नगर की नींव बाणासुर ने डाली, जो इन्द्रावती नदी के तट पर था। यहीं पर उसने ग्राम देवी कोयतर मां की बेटी माता माय (खेरमाय) की स्थापना की। बाणासुर द्वारा स्थापित देवी दांत तोना (दंतेवाड़िन) है। यह क्षेत्र आजकल दंतेवाड़ा के नाम से जाना जाता है। यहां वर्तमान में गोंड जाति निवास करती है तथा समूचा दंडकारण्य अब नक्सलवाद की चपेट में है।
इसी दंडकारण्य का ही हिस्सा है आंध्रप्रदेश का एक शहर भद्राचलम। गोदावरी नदी के तट पर बसा यह शहर सीता-रामचंद्र मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर भद्रगिरि पर्वत पर है। कहा जाता है कि श्रीराम ने अपने वनवास के दौरान कुछ दिन इस भद्रगिरि पर्वत पर ही बिताए थे।
स्थानीय मान्यता के मुताबिक दंडकारण्य के आकाश में ही रावण और जटायु का युद्ध हुआ था और जटायु के कुछ अंग दंडकारण्य में आ गिरे थे। ऐसा माना जाता है कि दुनियाभर में सिर्फ यहीं पर जटायु का एकमात्र मंदिर है।
दंडकारण्य क्षेत्र की चर्चा पुराणों में विस्तार से मिलती है। इस क्षेत्र की उत्पत्ति कथा महर्षि अगस्त्य मुनि से जुड़ी हुई है। यहीं पर उनका महाराष्ट्र के नासिक के अलावा एक आश्रम था।
-डॉ. रमानाथ त्रिपाठी ने अपने बहुचर्चित उपन्यास 'रामगाथा' में रामायणकालीन दंडकारण्य का विस्तृत उल्लेख किया है।
5. पंचवटी में राम : दण्डकारण्य में मुनियों के आश्रमों में रहने के बाद श्रीराम कई नदियों, तालाबों, पर्वतों और वनों को पार करने के पश्चात नासिक में अगस्त्य मुनि के आश्रम गए। मुनि का आश्रम नासिक के पंचवटी क्षेत्र में था। त्रेतायुग में लक्ष्मण व सीता सहित श्रीरामजी ने वनवास का कुछ समय यहां बिताया।
उस काल में पंचवटी जनस्थान या दंडक वन के अंतर्गत आता था। पंचवटी या नासिक से गोदावरी का उद्गम स्थान त्र्यंम्बकेश्वर लगभग 20 मील (लगभग 32 किमी) दूर है। वर्तमान में पंचवटी भारत के महाराष्ट्र के नासिक में गोदावरी नदी के किनारे स्थित विख्यात धार्मिक तीर्थस्थान है।
अगस्त्य मुनि ने श्रीराम को अग्निशाला में बनाए गए शस्त्र भेंट किए। नासिक में श्रीराम पंचवटी में रहे और गोदावरी के तट पर स्नान-ध्यान किया। नासिक में गोदावरी के तट पर पांच वृक्षों का स्थान पंचवटी कहा जाता है। ये पांच वृक्ष थे- पीपल, बरगद, आंवला, बेल तथा अशोक वट। यहीं पर सीता माता की गुफा के पास पांच प्राचीन वृक्ष हैं जिन्हें पंचवट के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि इन वृक्षों को राम-सीमा और लक्ष्मण ने अपने हाथों से लगाया था।
यहीं पर लक्ष्मण ने शूर्पणखा की नाक काटी थी। राम-लक्ष्मण ने खर व दूषण के साथ युद्ध किया था। यहां पर मारीच वध स्थल का स्मारक भी अस्तित्व में है। नासिक क्षेत्र स्मारकों से भरा पड़ा है, जैसे कि सीता सरोवर, राम कुंड, त्र्यम्बकेश्वर आदि। यहां श्रीराम का बनाया हुआ एक मंदिर खंडहर रूप में विद्यमान है।
मरीच का वध पंचवटी के निकट ही मृगव्याधेश्वर में हुआ था। गिद्धराज जटायु से श्रीराम की मैत्री भी यहीं हुई थी। वाल्मीकि रामायण, अरण्यकांड में पंचवटी का मनोहर वर्णन मिलता है।
6.सीताहरण का स्थान 'सर्वतीर्थ' : नासिक क्षेत्र में शूर्पणखा, मारीच और खर व दूषण के वध के बाद ही रावण ने सीता का हरण किया और जटायु का भी वध किया जिसकी स्मृति नासिक से 56 किमी दूर ताकेड गांव में 'सर्वतीर्थ' नामक स्थान पर आज भी संरक्षित है।
जटायु की मृत्यु सर्वतीर्थ नाम के स्थान पर हुई, जो नासिक जिले के इगतपुरी तहसील के ताकेड गांव में मौजूद है। इस स्थान को सर्वतीर्थ इसलिए कहा गया, क्योंकि यहीं पर मरणासन्न जटायु ने सीता माता के बारे में बताया। रामजी ने यहां जटायु का अंतिम संस्कार करके पिता और जटायु का श्राद्ध-तर्पण किया था। इसी तीर्थ पर लक्ष्मण रेखा थी।
पर्णशाला : पर्णशाला आंध्रप्रदेश में खम्माम जिले के भद्राचलम में स्थित है। रामालय से लगभग 1 घंटे की दूरी पर स्थित पर्णशाला को 'पनशाला' या 'पनसाला' भी कहते हैं। हिन्दुओं के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से यह एक है। पर्णशाला गोदावरी नदी के तट पर स्थित है। मान्यता है कि यही वह स्थान है, जहां से सीताजी का हरण हुआ था। हालांकि कुछ मानते हैं कि इस स्थान पर रावण ने अपना विमान उतारा था।
इस स्थल से ही रावण ने सीता को पुष्पक विमान में बिठाया था यानी सीताजी ने धरती यहां छोड़ी थी। इसी से वास्तविक हरण का स्थल यह माना जाता है। यहां पर राम-सीता का प्राचीन मंदिर है।
7.सीता की खोज : सर्वतीर्थ जहां जटायु का वध हुआ था, वह स्थान सीता की खोज का प्रथम स्थान था। उसके बाद श्रीराम-लक्ष्मण तुंगभद्रा तथा कावेरी नदियों के क्षेत्र में पहुंच गए। तुंगभद्रा एवं कावेरी नदी क्षेत्रों के अनेक स्थलों पर वे सीता की खोज में गए।
8.शबरी का आश्रम : तुंगभद्रा और कावेरी नदी को पार करते हुए राम और लक्ष्मण चले सीता की खोज में। जटायु और कबंध से मिलने के पश्चात वे ऋष्यमूक पर्वत पहुंचे। रास्ते में वे पम्पा नदी के पास शबरी आश्रम भी गए, जो आजकल केरल में स्थित है।
शबरी जाति से भीलनी थीं और उनका नाम था श्रमणा।
पम्पा नदी भारत के केरल राज्य की तीसरी सबसे बड़ी नदी है। इसे 'पम्बा' नाम से भी जाना जाता है। 'पम्पा' तुंगभद्रा नदी का पुराना नाम है। श्रावणकौर रजवाड़े की सबसे लंबी नदी है। इसी नदी के किनारे पर हम्पी बसा हुआ है। यह स्थान बेर के वृक्षों के लिए आज भी प्रसिद्ध है। पौराणिक ग्रंथ 'रामायण' में भी हम्पी का उल्लेख वानर राज्य किष्किंधा की राजधानी के तौर पर किया गया है।
केरल का प्रसिद्ध 'सबरिमलय मंदिर' तीर्थ इसी नदी के तट पर स्थित है।
9.हनुमान से भेंट : मलय पर्वत और चंदन वनों को पार करते हुए वे ऋष्यमूक पर्वत की ओर बढ़े। यहां उन्होंने हनुमान और सुग्रीव से भेंट की, सीता के आभूषणों को देखा और श्रीराम ने बाली का वध किया।
ऋष्यमूक पर्वत वाल्मीकि रामायण में वर्णित वानरों की राजधानी किष्किंधा के निकट स्थित था। इसी पर्वत पर श्रीराम की हनुमान से भेंट हुई थी। बाद में हनुमान ने राम और सुग्रीव की भेंट करवाई, जो एक अटूट मित्रता बन गई। जब महाबली बाली अपने भाई सुग्रीव को मारकर किष्किंधा से भागा तो वह ऋष्यमूक पर्वत पर ही आकर छिपकर रहने लगा था।
ऋष्यमूक पर्वत तथा किष्किंधा नगर कर्नाटक के हम्पी, जिला बेल्लारी में स्थित है। विरुपाक्ष मंदिर के पास से ऋष्यमूक पर्वत तक के लिए मार्ग जाता है। यहां तुंगभद्रा नदी (पम्पा) धनुष के आकार में बहती है। तुंगभद्रा नदी में पौराणिक चक्रतीर्थ माना गया है। पास ही पहाड़ी के नीचे श्रीराम मंदिर है। पास की पहाड़ी को 'मतंग पर्वत' माना जाता है। इसी पर्वत पर मतंग ऋषि का आश्रम था।
10.कोडीकरई : हनुमान और सुग्रीव से मिलने के बाद श्रीराम ने अपनी सेना का गठन किया और लंका की ओर चल पड़े। मलय पर्वत, चंदन वन, अनेक नदियों, झरनों तथा वन-वाटिकाओं को पार करके राम और उनकी सेना ने समुद्र की ओर प्रस्थान किया। श्रीराम ने पहले अपनी सेना को कोडीकरई में एकत्रित किया।
तमिलनाडु की एक लंबी तटरेखा है, जो लगभग 1,000 किमी तक विस्तारित है। कोडीकरई समुद्र तट वेलांकनी के दक्षिण में स्थित है, जो पूर्व में बंगाल की खाड़ी और दक्षिण में पाल्क स्ट्रेट से घिरा हुआ है।
लेकिन राम की सेना ने उस स्थान के सर्वेक्षण के बाद जाना कि यहां से समुद्र को पार नहीं किया जा सकता और यह स्थान पुल बनाने के लिए उचित भी नहीं है, तब श्रीराम की सेना ने रामेश्वरम की ओर कूच किया।
11.रामेश्वरम : रामेश्वरम समुद्र तट एक शांत समुद्र तट है और यहां का छिछला पानी तैरने और सन बेदिंग के लिए आदर्श है। रामेश्वरम प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ केंद्र है। महाकाव्य रामायण के अनुसार भगवान श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई करने के पहले यहां भगवान शिव की पूजा की थी। रामेश्वरम का शिवलिंग श्रीराम द्वारा स्थापित शिवलिंग है।
12.धनुषकोडी : वाल्मीकि के अनुसार तीन दिन की खोजबीन के बाद श्रीराम ने रामेश्वरम के आगे समुद्र में वह स्थान ढूंढ़ निकाला, जहां से आसानी से श्रीलंका पहुंचा जा सकता हो। उन्होंने नल और नील की मदद से उक्त स्थान से लंका तक का पुनर्निर्माण करने का फैसला लिया।
छेदुकराई तथा रामेश्वरम के इर्द-गिर्द इस घटना से संबंधित अनेक स्मृतिचिह्न अभी भी मौजूद हैं। नाविक रामेश्वरम में धनुषकोडी नामक स्थान से यात्रियों को रामसेतु के अवशेषों को दिखाने ले जाते हैं।
धनुषकोडी भारत के तमिलनाडु राज्य के पूर्वी तट पर रामेश्वरम द्वीप के दक्षिणी किनारे पर स्थित एक गांव है। धनुषकोडी पंबन के दक्षिण-पूर्व में स्थित है। धनुषकोडी श्रीलंका में तलैमन्नार से करीब 18 मील पश्चिम में है।
इसका नाम धनुषकोडी इसलिए है कि यहां से श्रीलंका तक वानर सेना के माध्यम से नल और नील ने जो पुल (रामसेतु) बनाया था उसका आकार मार्ग धनुष के समान ही है। इन पूरे इलाकों को मन्नार समुद्री क्षेत्र के अंतर्गत माना जाता है। धनुषकोडी ही भारत और श्रीलंका के बीच एकमात्र स्थलीय सीमा है, जहां समुद्र नदी की गहराई जितना है जिसमें कहीं-कहीं भूमि नजर आती है।
दरअसल, यहां एक पुल डूबा पड़ा है। 1860 में इसकी स्पष्ट पहचान हुई और इसे हटाने के कई प्रयास किए गए। अंग्रेज इसे एडम ब्रिज कहने लगे तो स्थानीय लोगों में भी यह नाम प्रचलित हो गया। अंग्रेजों ने कभी इस पुल को क्षतिग्रस्त नहीं किया लेकिन आजाद भारत में पहले रेल ट्रैक निर्माण के चक्कर में बाद में बंदरगाह बनाने के चलते इस पुल को क्षतिग्रस्त किया गया।
30 मील लंबा और सवा मील चौड़ा यह रामसेतु 5 से 30 फुट तक पानी में डूबा है। श्रीलंका सरकार इस डूबे हुए पुल (पम्बन से मन्नार) के ऊपर भू-मार्ग का निर्माण कराना चाहती है जबकि भारत सरकार नौवहन हेतु उसे तोड़ना चाहती है। इस कार्य को भारत सरकार ने सेतुसमुद्रम प्रोजेक्ट का नाम दिया है। श्रीलंका के ऊर्जा मंत्री श्रीजयसूर्या ने इस डूबे हुए रामसेतु पर भारत और श्रीलंका के बीच भू-मार्ग का निर्माण कराने का प्रस्ताव रखा था।
13.'नुवारा एलिया' पर्वत श्रृंखला : वाल्मीकिय-रामायण अनुसार श्रीलंका के मध्य में रावण का महल था। 'नुवारा एलिया' पहाड़ियों से लगभग 90 किलोमीटर दूर बांद्रवेला की तरफ मध्य लंका की ऊंची पहाड़ियों के बीचोबीच सुरंगों तथा गुफाओं के भंवरजाल मिलते हैं। यहां ऐसे कई पुरातात्विक अवशेष मिलते हैं जिनकी कार्बन डेटिंग से इनका काल निकाला गया है।
श्रीलंका में नुआरा एलिया पहाड़ियों के आसपास स्थित रावण फॉल, रावण गुफाएं, अशोक वाटिका, खंडहर हो चुके विभीषण के महल आदि की पुरातात्विक जांच से इनके रामायण काल के होने की पुष्टि होती है। आजकल भी इन स्थानों की भौगोलिक विशेषताएं, जीव, वनस्पति तथा स्मारक आदि बिलकुल वैसे ही हैं जैसे कि रामायण में वर्णित किए गए हैं।
श्रीवाल्मीकि ने रामायण की संरचना श्रीराम के राज्याभिषेक के बाद वर्ष 5075 ईपू के आसपास की होगी (1/4/1 -2)। श्रुति स्मृति की प्रथा के माध्यम से पीढ़ी-दर-पीढ़ी परिचलित रहने के बाद वर्ष 1000 ईपू के आसपास इसको लिखित रूप दिया गया होगा। इस निष्कर्ष के बहुत से प्रमाण मिलते हैं। रामायण की कहानी के संदर्भ निम्नलिखित रूप में उपलब्ध हैं-
* कौटिल्य का अर्थशास्त्र (चौथी शताब्दी ईपू)
* बौद्ध साहित्य में दशरथ जातक (तीसरी शताब्दी ईपू)
* कौशाम्बी में खुदाई में मिलीं टेराकोटा (पक्की मिट्टी) की मूर्तियां (दूसरी शताब्दी ईपू)
* नागार्जुनकोंडा (आंध्रप्रदेश) में खुदाई में मिले स्टोन पैनल (तीसरी शताब्दी)
* नचार खेड़ा (हरियाणा) में मिले टेराकोटा पैनल (चौथी शताब्दी)
* श्रीलंका के प्रसिद्ध कवि कुमार दास की काव्य रचना 'जानकी हरण' (सातवीं शताब्दी)
संदर्भ ग्रंथ :
1. वाल्मीकि रामायण
2. वैदिक युग एवं रामायण काल की ऐतिहासिकता (सरोज बाला, अशोक भटनागर, कुलभूषण मिश्र)
साभार (वेबदुनिया)
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Bhavesh (भावेश )
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Thursday, March 05, 2015
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धर्म
!! देश का नया राष्ट्रगान !!
आओ मित्रो तुम्हें दिखाए झाकी घपलिस्थान की इस मिट्टी पे सर पटको ये धरती है बेईमान की !
बंदों में है दम ...
राडिया-विनायकयम्
नंगे बेशरम...
उत्तर में घोटाले करती
मायावती महान है
दक्षिण में राजा-कनिमोझी
करुणा की संतान है !
मरघट से स्टेडियम देखो जो
कलमाडी की शान है
कदम कदम पर कमीनापन ही
सिब्बल की पहचान है !!
देखो ये जागीर बनी है
झूठो और मक्कार की
इस मिट्टी पे सर पटको
ये धरती है बेईमान की
बन्दों में है दम...नंगे बेशरम..
ये है दिग्गी जयचंदाना
नाज़ इसे गद्दारों पे
इसने केवल मूंग दला है
देशभक्तों की छाती पे !
ये समाज का कोढ़ पल रहा है
साम्यवाद के नारों पे
बदल गए हैं सभी अधर्मी
भाडे के हत्यारों में !!
हिंसा और मक्कारी ही अब
पहचान हिन्दुस्तान की
इस मिट्टी पे सर पटको
ये धरती है हैवान की
बन्दों में है दम...नंगे बेशरम..
देखो मुल्क दलालों का
ईमान जहां पे डोला था
सत्ता की ताकत को
चांदी के जूतों से तोला था !
हर विभाग बाज़ार बना था
हर वजीर इक प्यादा था
बोली लगी है यहाँ
सब मंत्री, अफसरान की !!
इस मिट्टी पे सर पटको
ये धरती है शैतान की
बन्दों में है दम... नंगे-बेशरम....!
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Bhavesh (भावेश )
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Monday, January 09, 2012
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छद्म लोकतंत्र और भ्रष्ट लोकतान्त्रिक मूल्य
अब लग रहा है कि भ्रष्टाचार को लेकर सारा देश आंदोलित है। जब हाड़तोड़ मेहनत कर बड़ी मुश्किल से अपने घर का खर्च चलाने वाला आम आदमी भ्रष्ट राजनेताओं और अधिकारियों के पास करोड़ों की दौलत देखता है तो देश की व्यवस्था पर से उसका विश्वास उठ जाता है। यहां तक कि वो खुद अपने ईमानदार होने को कोसने लगता है। ईमानदारी पर से और देश की व्यवस्था पर से लोगों का विश्वास न उठे, इसके लिए अब परिणाम दिखें ऐसे कदम तुरंत उठाना जरूरी हैं। किसी तरह की लीपापोती या दिखावा सहन करने के लिए देश के नेता चाहे कितनी भी कमर कसे लेकिन इसे सहने के लिए अब आमजन अब तैयार नहीं है। अनशन और धरने पर तो शायद अंग्रेज सरकार ने भी इतने प्रतिबंध नहीं लगाए थे जितने मनमोहन की सरकार लगा रही है। लोकतंत्र का ये कैसा असहनीय भद्दा मजाक है कि राजनीतिक रैलियों और जुलूसों में पैसे से खरीदकर और ढोकर लाई हुई भीड़ पर तो कोई प्रतिबंध न हो और जिस आंदोलन से पूरा देश जुड़ना चाहता है उसके लिए इतनी शर्तें? कांग्रेस का ये कैसा दोगला चेहरा है कि अगर अन्ना भ्रष्ट्राचार के विरोध में अनशन करे तो ब्लैकमेल और अगर गाँधी अनशन पर बैठे तो तो राष्ट्रपिता का देश के लिए त्याग.
दिल्ली पुलिस की शर्तों से नाराज़ अन्ना ने प्रधानमंत्री से हस्तक्षेप करने को कहाँ तो प्रधानमंत्री से जवाब मिला कि अन्ना अपनी शिकायत उचित दफ़्तर के समक्ष रखें. प्रधानमंत्री ने अपनी सरकार के मातहत आने वाली दिल्ली पुलिस के बारे में कहा है कि ये उनके कार्यालय के दायरे में नहीं आता. याद नहीं आता कि इतनी साफ़गोई से बात करने वाला कोई प्रधानमंत्री इससे पहले हमें मिला था.
सनद रहे टेलीकॉम के घोटाले के समय भी उन्होंने कहा था कि ये मेरे मंत्रालय का मामला नहीं. वो वित्त मंत्रालय और संचार मंत्रालय के बीच का मामला है. राष्ट्रमंडल खेल भी उनके विभाग का मामला नहीं था. वो खेल मंत्रालय, वित्त मंत्रालय और दिल्ली की कांग्रेस सरकार का मामला था. जनता को बात-बेबात प्रधानमंत्री को परेशान नहीं करना चाहिए. अगर महंगाई से मर रहे हैं तो वित्तमंत्री से कहिए, बारिश कम या ज्यादा हो, अन्न सड़ रहा हो तो कृषि मंत्रालय, अगर जनता ग़रीबी और भूख से त्रस्त है तो योजना आयोग, देश पर दुश्मन हमला करे तो रक्षा मंत्रालय, आतंकवादी हमला करे तो राज्य पुलिस आदि के पास जाना चाहिए, बेचारे प्रधानमंत्री कार्यालय का इससे क्या लेना देना?
देश का इससे ज्यादा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है जब देश का प्रधानमंत्री ये कहें की देश में क्या कुछ हो रहा है उन्हें और उनके मंत्रालय से उसका कोई लेना देना नहीं है. अब ये स्पष्ट हो गया है कि प्रधानमंत्री भी भ्रष्टाचार में बराबर के भागिदार हैं. कहते है खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है. इतने समय से निकृष्ट और निकारा नेताओ और नौकरशाहों से घिरे रहने के बाद अब प्रधानमंत्री भी उन्ही भ्रष्ट नौकरशाहों की श्रेणी में आ गए हैं, जो जानबूझ कर आम जनता को परेशान करने के लिए एक दफ़्तर से दूसरे दफ़्तर का चक्कर लगाने को मजबूर करते हैं. अपने इस कृत्य से मनमोहन ने अब ये सिद्ध कर दिया है कि वे सचमुच में वह एक खिलौना मात्र हैं.
दिल्ली पुलिस की शर्तों से नाराज़ अन्ना ने प्रधानमंत्री से हस्तक्षेप करने को कहाँ तो प्रधानमंत्री से जवाब मिला कि अन्ना अपनी शिकायत उचित दफ़्तर के समक्ष रखें. प्रधानमंत्री ने अपनी सरकार के मातहत आने वाली दिल्ली पुलिस के बारे में कहा है कि ये उनके कार्यालय के दायरे में नहीं आता. याद नहीं आता कि इतनी साफ़गोई से बात करने वाला कोई प्रधानमंत्री इससे पहले हमें मिला था.
सनद रहे टेलीकॉम के घोटाले के समय भी उन्होंने कहा था कि ये मेरे मंत्रालय का मामला नहीं. वो वित्त मंत्रालय और संचार मंत्रालय के बीच का मामला है. राष्ट्रमंडल खेल भी उनके विभाग का मामला नहीं था. वो खेल मंत्रालय, वित्त मंत्रालय और दिल्ली की कांग्रेस सरकार का मामला था. जनता को बात-बेबात प्रधानमंत्री को परेशान नहीं करना चाहिए. अगर महंगाई से मर रहे हैं तो वित्तमंत्री से कहिए, बारिश कम या ज्यादा हो, अन्न सड़ रहा हो तो कृषि मंत्रालय, अगर जनता ग़रीबी और भूख से त्रस्त है तो योजना आयोग, देश पर दुश्मन हमला करे तो रक्षा मंत्रालय, आतंकवादी हमला करे तो राज्य पुलिस आदि के पास जाना चाहिए, बेचारे प्रधानमंत्री कार्यालय का इससे क्या लेना देना?
देश का इससे ज्यादा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है जब देश का प्रधानमंत्री ये कहें की देश में क्या कुछ हो रहा है उन्हें और उनके मंत्रालय से उसका कोई लेना देना नहीं है. अब ये स्पष्ट हो गया है कि प्रधानमंत्री भी भ्रष्टाचार में बराबर के भागिदार हैं. कहते है खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है. इतने समय से निकृष्ट और निकारा नेताओ और नौकरशाहों से घिरे रहने के बाद अब प्रधानमंत्री भी उन्ही भ्रष्ट नौकरशाहों की श्रेणी में आ गए हैं, जो जानबूझ कर आम जनता को परेशान करने के लिए एक दफ़्तर से दूसरे दफ़्तर का चक्कर लगाने को मजबूर करते हैं. अपने इस कृत्य से मनमोहन ने अब ये सिद्ध कर दिया है कि वे सचमुच में वह एक खिलौना मात्र हैं.
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Bhavesh (भावेश )
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Tuesday, August 16, 2011
आपका क्या कहना है?
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तब और अब
तब दोस्तों से घंटो बाते होती थी,
अब मोबाइल SMS से हाय हैलो होती है
तब क्रिकेट का बैट हाथ में होता था और सड़क पर क्रिकेट खेलने लग जाया करते थे,
अब लेपटोप और मोबाइल साथ में होता है और सड़क पर ही टिपियाने लग जाते है
तब शांत खड़े होकर चिड़िया और कोयल की आवाज़ सुना करते थे,
अब कंप्यूटर पर mpeg फाइल सुनते है
तब रात में छत पर लेट कर चमकते तारे देखा करते है,
अब काम के टेंशन में रात में तारे नज़र आते है
तब शाम को दोस्तों के साथ बैठ कर गपशप करते है,
अब चैट रूम में बनावटी लोगो से बाते करते है
तब ज्ञान प्राप्ति के लिए पढाई करते थे,
अब नौकरी बचाने के लिए पढ़ना पड़ता है
तब जेब खाली पर दिल उमंगो से भरा होता था,
अब जेब ATM, Credit/Debit card से भरी है लेकिन दिल खाली है
तब सड़क पर खड़े हो कर भी चिल्ला लेते थे,
अब घर में ही जोर से नहीं बोल पाते
तब लोग हमें ज्ञान का पाठ पढाते थे,
अब हम सबको ज्ञान देते फिरते है
वाह री आधुनिकता !! सोचो तुमने और मैंने क्या पाया इंसान बन के....
अब मोबाइल SMS से हाय हैलो होती है
तब क्रिकेट का बैट हाथ में होता था और सड़क पर क्रिकेट खेलने लग जाया करते थे,
अब लेपटोप और मोबाइल साथ में होता है और सड़क पर ही टिपियाने लग जाते है
तब शांत खड़े होकर चिड़िया और कोयल की आवाज़ सुना करते थे,
अब कंप्यूटर पर mpeg फाइल सुनते है
तब रात में छत पर लेट कर चमकते तारे देखा करते है,
अब काम के टेंशन में रात में तारे नज़र आते है
तब शाम को दोस्तों के साथ बैठ कर गपशप करते है,
अब चैट रूम में बनावटी लोगो से बाते करते है
तब ज्ञान प्राप्ति के लिए पढाई करते थे,
अब नौकरी बचाने के लिए पढ़ना पड़ता है
तब जेब खाली पर दिल उमंगो से भरा होता था,
अब जेब ATM, Credit/Debit card से भरी है लेकिन दिल खाली है
तब सड़क पर खड़े हो कर भी चिल्ला लेते थे,
अब घर में ही जोर से नहीं बोल पाते
तब लोग हमें ज्ञान का पाठ पढाते थे,
अब हम सबको ज्ञान देते फिरते है
वाह री आधुनिकता !! सोचो तुमने और मैंने क्या पाया इंसान बन के....
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Bhavesh (भावेश )
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Friday, September 24, 2010
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