tag:blogger.com,1999:blog-8825101291759149808.post2953517880059363559..comments2024-03-20T13:54:02.574+08:00Comments on जिन्दगी की पाठशाला: भला उसका धर्म मेरे धर्म से अच्छा कैसे ?Bhavesh (भावेश )http://www.blogger.com/profile/14963074448634873997noreply@blogger.comBlogger9125tag:blogger.com,1999:blog-8825101291759149808.post-44776891665803162722012-12-05T17:24:52.637+08:002012-12-05T17:24:52.637+08:00@ राकेश जी : आपकी दोनों टिप्पणियों के लिए धन्यवाद्...@ राकेश जी : आपकी दोनों टिप्पणियों के लिए धन्यवाद्. "शत्रु भाव रखने वाली" बात कहने का अर्थ इतना ही था की चाहे भाव या बिना भाव के कैसे भी कम से कम नाम तो जपा जा रहा है. @ कुंवर जी, अवधिया जी, महाशक्ति आप सभी का टिप्पणी करने के लिए आभार. @ Anonymous आपको राकेशजी ने समझा ही दिया है. शास्त्र कहते है एक ब्राह द्वितीय नास्ति. ब्राह तो एक ही है बस नाम अलग अलग है.Amyhttp://iiis.ne.jp/groups/3eaf3/weblog/ba455/noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8825101291759149808.post-40228243086699982512010-03-19T14:01:32.363+08:002010-03-19T14:01:32.363+08:00@ राकेश जी : आपकी दोनों टिप्पणियों के लिए धन्यवाद्...@ राकेश जी : आपकी दोनों टिप्पणियों के लिए धन्यवाद्. "शत्रु भाव रखने वाली" बात कहने का अर्थ इतना ही था की चाहे भाव या बिना भाव के कैसे भी कम से कम नाम तो जपा जा रहा है.<br />@ कुंवर जी, अवधिया जी, महाशक्ति आप सभी का टिप्पणी करने के लिए आभार.<br />@ Anonymous आपको राकेशजी ने समझा ही दिया है. शास्त्र कहते है एक ब्राह द्वितीय नास्ति. ब्राह तो एक ही है बस नाम अलग अलग है.Bhavesh (भावेश )https://www.blogger.com/profile/14963074448634873997noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8825101291759149808.post-30124908292280557762010-03-19T11:16:32.855+08:002010-03-19T11:16:32.855+08:00हम हिन्दुओं के साथ एक बड़ी दिक्कत ये है की हम अपने...हम हिन्दुओं के साथ एक बड़ी दिक्कत ये है की हम अपने धर्म से जुड़े सत्य को जानने का भरसक प्रयास ही नहीं करते | इधर उधर के अधकचरे - आधे अधूरे ज्ञान में ही उलझ के रह जाते हैं | Anonymus जी को ही देख लीजिये .. क्या फजूल की बाते कर रहे हैं ... बहुसंख्यक हिन्दुओं को देवी-देवता और वास्तविक इश्वर में कोई अंतर नहीं नजर आता | अब कितने लोगों को ये पता है की हमारे ३३ करोड़ देवी-देवता प्रशासनिक अधिकारी की तरह हैं जिनका काम प्रकृति में संतुलन बनाये रखना है, जैसे की वायु देव वायु के, वरुण जल के देवता हैं | वास्तव में सारे देवी-देवताओं एक इश्वर द्वारा ही निर्देशित होते हैं |Rakesh Singh - राकेश सिंहhttps://www.blogger.com/profile/03770667837625095504noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8825101291759149808.post-55709949528000207222010-03-19T10:27:39.629+08:002010-03-19T10:27:39.629+08:00ये बात सही है, की इसी बाहने ही सही, ये ईश्वर देवी ...ये बात सही है, की इसी बाहने ही सही, ये ईश्वर देवी देवता को याद तो कर लेते है. हमें तो अपने धर्म के तेतीस करोड़ देवी देवताओ से ही फुर्सत नहीं मिलती इसलिए इनके ईश्वर का स्मरण होने का सवाल ही नहीं उठता.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8825101291759149808.post-30018384447007493422010-03-18T14:50:28.572+08:002010-03-18T14:50:28.572+08:00राकेश जी, अवधिया जी, कुंवरजी और महाशक्ति जी से सहम...राकेश जी, अवधिया जी, कुंवरजी और महाशक्ति जी से सहमत..भारतीय नागरिक - Indian Citizenhttps://www.blogger.com/profile/07029593617561774841noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8825101291759149808.post-69378069742096587252010-03-18T13:58:14.885+08:002010-03-18T13:58:14.885+08:00आपकी बातो से सहमत हूँ, ईश की निन्दा का अधिकार किस...आपकी बातो से सहमत हूँ, ईश की निन्दा का अधिकार किसी को नही है। भगवान सभी के बराबर है यदि कोई किसी कि भावनओ को आहत करता है तो उसे सहने का भी साहस रखना चाहिये।Pramendra Pratap Singhhttps://www.blogger.com/profile/17276636873316507159noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8825101291759149808.post-11595812882905408512010-03-18T13:20:31.936+08:002010-03-18T13:20:31.936+08:00मैंने एक जगह पढ़ा था के
जहा धर्म या अध्यात्म होता...मैंने एक जगह पढ़ा था के <br /><br />जहा धर्म या अध्यात्म होता है वहा उसके सिवाय कुछ और हो ही नहीं सकता!<br /><br />वहीँ आगे था के अधर्म कही है ही नहीं!<br /><br />मेरी तो समझ के परे की चीज लगी जी ये!<br /><br /><br /><br />वैसे मै अवधिया जी से सहमत हूँ के "जिन्हें आप समझाना चाहते है वो कभी नहीं समझेंगे!"<br /><br />कुंवर जी,kunwarji'shttps://www.blogger.com/profile/03572872489845150206noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8825101291759149808.post-81250951549488187272010-03-18T12:52:21.307+08:002010-03-18T12:52:21.307+08:00भावेश जी! हम तो आपकी बात को समझ रहे हैं किन्तु हमा...भावेश जी! हम तो आपकी बात को समझ रहे हैं किन्तु हमारे साथ आप और जिन लोगों को समझाना चाहते हैं वे कभी नहीं समझेंगे।<br /><br />फूलहिं फलहिं न बेंत जदपि गरल बरसहिं सुधा।<br />मूरख हृदय न चेत जो गुरु मिलहिं बिरंचि सम॥Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/09998235662017055457noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8825101291759149808.post-22386413003657071972010-03-18T12:28:19.164+08:002010-03-18T12:28:19.164+08:00आलेख के मूल भाव से सहमत हूँ | पर ये कहना सरासर बे...आलेख के मूल भाव से सहमत हूँ | पर ये कहना सरासर बेमानी है की "हमारे प्रभु ... शत्रु भाव रखने वाले को अन्य भाव से भजने वालो से ज्यादा प्यार करते है." यदि ऐसा है तो हम सब लोग सत्रु भाव ही रखें | तुलसीदास, मीराबाई, हरिदास, संत तुकाराम, गुरुनानक, अर्जुन सब लोग सत्रु का ही भाव रखते, क्यूँ?<br /><br />कंश, रावन, शिशुपाल को भले ही मुक्ति मिल गई हो पर प्रभु का सामीप्य और प्यार ना मिला | प्रभु का सामीप्य तो सच्चे भक्तों को ही मिल पाता है |Rakesh Singh - राकेश सिंहhttps://www.blogger.com/profile/03770667837625095504noreply@blogger.com